(चंद्रप्रकाश अग्रहरि संवाददाता ‘स्वतंत्र जनमित्र’ की रिपोर्ट)
कानपुर महानगर के शहर मे लाल इमली जैसी फ़ैक्टरी के कपड़े प्रेस्टीज सिम्बल होते थे. वह सब कुछ था जो एक औद्योगिक शहर में होना चाहिए.
मिल का साइरन बजते ही हजारों मज़दूर साइकिल पर सवार टिफ़िन लेकर फ़ैक्टरी की ड्रेस में मिल जाते थे. बच्चे स्कूल जाते थे, पत्नियाँ घरेलू कार्य करतीं और इन लाखों मज़दूरों के साथ ही लाखों सेल्समैन,
ये हैं कानपुर का लाल इमली , जहां के कपड़े पूरे देश में प्रसिद्ध थे। यूनिफार्म में हजारों मजदूर काम पर जाते थे,उनके बच्चे स्कूल।उनका जीवन स्तर मिडिल क्लास का,फिर लाल सलाम की नजर पड़ी, मजदूरों को आठ घंटे नहीं चार घंटे काम कराओ।मालिक क्यो गाड़ी में घूम रहा है? नतीजतन मिल बंद,लाखों🖕 pic.twitter.com/y54Rf5wgFA
— Kala Chaturvedi (@kala_chaturvedi) January 3, 2021
मैनेजर, क्लर्क सबकी रोज़ी रोटी चल रही थी. फ़िर कम्युनिस्ट कुत्तों की निगाहें कानपुर पर पड़ीं तभी से बेड़ा गर्क हो गया. आठ घंटे मेहनत मज़दूर करे और गाड़ी से चले मालिक, ढेरों हिंसक घटनाएँ हुईं, मिल मालिक तक को मारा पीटा भी गया.
नारा दिया गया- काम के घंटे चार करो, बेकारी को दूर करो
अलाली किसे नहीं अच्छी लगती है. ढेरों मिडल क्लास भी कॉम्युनिस्ट समर्थक हो गया. मज़दूरों को आराम मिलना चाहिए, ये उद्योग खून चूसते हैं.
कानपुर में कम्युनिस्ट सांसद बनी सुभाषिनी अली, बस यही टारगेट था, कम्युनिस्ट को अपना सांसद बनाने के लिए यह सब पॉलिटिक्स कर ली थी.
Kanpur ki famous cotten meal #LAL_IMLI Ke Employees ko nahi mili 28 month ki Salery or Yha Employees ka 6th pay commission bhi start nahi hua
Respected Smriti Zubin Irani mam
Jo ministry of textiles ka karya bhaar sambhaal rhi h unhone bhi nahi diya dhyan pic.twitter.com/oUb9ufXmT1— Ankit Singh (@ankits9459) November 28, 2020
अंततः वह दिन आ ही गया जब कानपुर के मिल मज़दूरों को मेहनत करने से छुट्टी मिल गई. मिलों पर ताला डाल दिया गया. मिल मालिक आज पहले से शानदार गाड़ियों में घूमते हैं, उन्होंने अहमदाबाद में कारख़ाने खोल दिए.
कानपुर की मिल बंद होकर भी ज़मीन के रूप में उन्हें (मिल मालिकों को) अरबों देगी. उनको फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मिल मालिक कभी कम्युनिस्ट के झांसे में नही आए.
कानपुर के वो 8 घंटे यूनिफॉर्म में काम करने वाला मज़दूर 12 घंटे रिक्शा चलाने पर विवश हुआ. जब खुद को समझ नही थी तो कम्युनिस्ट के झांसे में क्यों आ जाते हो.? स्कूल जाने वाले बच्चे कबाड़ बीनने लगे
और वो मध्यम वर्ग जिसकी आँखों में मज़दूर को काम करता देख खून उतरता था, अधिसंख्य को जीवन में दुबारा कोई नौकरी ना मिली. एक बड़ी जनसंख्या ने अपना जीवन बेरोज़गार रहते हुए डिप्रेशन में काटा.
कॉम्युनिस्ट अफ़ीम बहुत घातक होती है, उन्हें ही सबसे पहले मारती है, जो इसके चक्कर में पड़ते हैं, कॉम्युनिज़म का बेसिक प्रिन्सिपल यह है-
दो क्लास के बीच पहले अंतर दिखाना फ़िर इस अंतर की वजह से झगड़ा करवाना और फ़िर दोनों ही क्लास को ख़त्म कर देना.