जब से देश में कोरोना वायरस का संकट छाया हुआ है तभी से भारत के लोगों तथा वैश्विक स्तर पर इस बीमारी के संक्रमण को कैसे रोका जाए तथा जो प्रवासी और कामगार मजदूर के रूप में लोगों का पलायन,
एक जगह से दूसरी जगह हुआ है, औद्योगिक फैक्ट्रियां बंद हुई हैं, लोगों की नौकरी चली गई है जिसके कारण अर्थव्यवस्था पूरी तरीके से डावांडोल हो चुकी है.
अगर देखा जाए तो करोना संकट की सबसे अधिक मार किसी पर पड़ी है तो वे छोटे मजदूरों और काम कामगार तथा कारोबारी हैं. इनके संबंध में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सरकार यहां असंगठित क्षेत्र को अर्थव्यवस्था का हिस्सा ही नहीं मानती है.
इस संदर्भ में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस का कहना है कि- भारत और बांग्लादेश जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों की दुविधा है कि वह आर्थिक मामलों में पश्चिमी देशों की नकल करते हैं.
यदि हम अपने मजदूरों और कारोबारियों के टैलेंट को पहचान कर उनको विकसित होने का मौका देते तो हमारे देश के शहरी और ग्रामीण दोनों की आधारिक संरचना में ढांचागत सुधार होता तथा इसे पनपने का मौका मिलता.
बांग्लादेश के प्रसिद्ध विद्वान और गरीबों के मसीहा तथा नोबेल पुरष्कार विजेता मोहम्मद युनूस ने आर्थिक क्षेत्र में गरीबों में रखकर सदैव नीतियों का निर्माण करने की वकालत करते रहते हैं.
इसी संदर्भ में प्रवासी मजदूरों के पलायन और उनके रोजगार के छीन जाने की समस्या को प्रारम्भ से ही राहुल गाँधी बड़े संजीदा ढंग से उठाते रहे हैं. मोहम्मद यूनुस के उनके साथ हुई वार्ता में भी उन्होंने इन कामगारों की भलाई को लेकर चर्चा किया है.