70 वर्षो का इतिहास समेटता हफुआ चतुर्भुज का डोल मेला आज के माहौल में कहाँ पहुँचा है?

तरयासुजान, कुशीनगर: ऐतिहासिकता को जीवंत रखने के प्रयास में एक बार फिर से सेवरहीं विकास खण्ड के हफुआ चतुर्भुज में

कार्तिक पूर्णिमा को करीब 70 सालों से अनवरत चले आ रहे डोल मेला का आयोजन भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच शुरू किया गया.

ऐतिहासिकता की बात करें तो तकरीबन 65-70 साल पूर्व जरूरी चीजों की आपूर्ति के लिए मेला की शुरुआत नहर के किनारे स्थापित नेटुआवीर बाबा के स्थान पर हुई थी.

तब यहां नहर न थी बल्कि एक बड़ा बगीचा हुआ करता था. लोगों का मूल व्यवसाय खेती पर आधारित थी जो पशुओं से लिया जाता था.

कुछ ग्रामीणों का मानना है कि यह मेला उस दौर के कुश्ती प्रतियोगिता की देन है. लोग कुश्ती के जरिये गांवों मे अपनी पहचान बनाते थे.

वर्चस्व के अधिकतर मामले कुश्ती अखाड़े में ही तय हो जाया करते थे. राह चलते लोग कुस्ती आजमाइश के लिए ललकारते देखे जाते थे.

हारने वाला प्रतिभागी जीत की खातिर अगले मेला दिवस का इंतजार कर रहा होता था. वहीं  बहुत से लोग दंगल दांव से अनजान इस दिन

अपने पशुओं को मेले में लाकर उचित दाम पर बेच जरूरी सामानों की खरीदारी करते थे. कालांतर में बदलते परिवेश ने मेला का रंग रूप भी बदल कर रख दिया.

दंगल की जगह मनोरंजन के लिए युवा आरकेष्ट्रा और डीजे के माध्यम से भोजपुरी के अश्लीलता के दलदल में घुसे हुए देखे जा रहे हैं.

इसके पीछे एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है. गौरतलब हो कि इन आयोजनों के ठीक बाद शादी विवाह का मौसम शुरू हो जाता है जो तकरीबन जून जुलाई तक चलता है.

यह मौका होता है युवाओं के बीच उनके मनपसंद गानों को परोसने का भले ही व अश्लीलता की सभी हदें क्यों न पार कर दे.

वैसे ही आर्केस्ट्रा संचालक भी कम कीमतों पर अपने नृत्यांगनाओं का अंग प्रदर्शन करवा कर  नाम कमाना चाहते हैं ताकि पूरा सीजन धूम से गुजरे.

पर आज भी इस गाँव में उन्ही पुराने परंपरागत चीजों के साथ मेला का आयोजन होता है.  यहाँ आर्केस्ट्रा की जगह नाच जैसे लोक नृत्य का मजा लेते देखे जाते हैं.

यही वजह है कि हर वर्ष ठीक ठाक भीड़ जुट जाया करती है. यहाँ तक कि बुजुर्ग अपने लाठी का भरोसा लिए यहाँ तक का सफर कर पहुँच अपने पुराने मित्रों के साथ उस दौर को याद करते देखे कहे सुने जाते हैं.

हांलाकि इस दौर में उस दौर को स्थापित कर पाना कठिन क्या नामुमकिन सा है. पर सभ्यता और संस्कृति के दृष्टिगत ग्रामीणों का यह प्रयास तारीफ के काबिल है.

इस संबंध में बातचीत के दौरान ग्राम प्रधान प्रतिनिधि चंदन ठाकुर ने बताया कि बदलते दौर के साथ चीजे भी बदली हैं. युवाओं को खुद पता नहीं है कि वे किस ओर बढ़े चले जा रहे हैं.?

फिलहाल परंपरागत चीजें जीवंत रहें इसको बनाए रखने में पुलिस प्रशासन का पूरा सहयोग मिल रहा है, जनता सुरक्षित माहौल में अपना त्योहार मना रही है.

{विकास पाण्डेय}

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