त्रिकोणीय लड़ाई में फंसते दिख रहे हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, यहाँ जानिए चुनावी गणित

  • भाजपा व सपा के सीधी टक्कर में सेंधमारी कर लड़ाई में दिखने लगी है बसपा

चुनाव का गणित कभी नेताओं के कर्म और पार्टियों के काम के आधार पर होते थे लेकिन आज का चुनाव धर्म, जाति, अगड़ा व पिछड़ा पर पहुँच गया है.

इसीलिए चुनाव पूर्व का समीकरण जो पार्टियों के विचारधारा पर दिखता है, वह प्रत्याशियों के घोषित होते ही बदल जाता है. 332 फाजिलनगर विधानसभा में जातीय आंकड़े के अनुसार

सबसे अधिक मतदाताओं की संख्या अल्पसंख्यकों का है, उसके बाद ब्राह्मण, फिर (चनाउ, अवधिया, कुर्मी) मतदाताओं का है.  चौथे नम्बर पर कुशवाहा, पांचवे नम्बर पर दलित समाज तो छठवें नम्बर पर यादव व वैश्य समाज की है.

कुशवाहा समाज से भाजपा ने यहां से लगातार दो बार विधायक गंगा सिंह कुशवाहा के पुत्र सुरेंद्र कुशवाहा को तो सपा ने प्रदेश के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को प्रत्याशी बनाया है.

जबकि बसपा ने सपा के कद्दावर नेता व मजबूत दावेदार रहे इलियास अंसारी को अपने साथ जोड़ मैदान में उतारा है. राजनैतिक जानकार बताते है कि फाजिलनगर का चुनाव भाजपा के नाक का सवाल है.

स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा सरकार में मंत्री थे और दर्जन भर नेताओं के साथ भाजपा पर गम्भीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ सपा का दामन थामते हुए प्रदेश में

सपा की सरकार बनाने के लिए पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार में लगे थे और यहां उनके पुत्र अशोक मौर्य उनके चुनावी जंग का पिच बना रहे थे. अब स्वामी प्रसाद मौर्य खुद क्षेत्र में पहुँच कमान संभाल चुके है.

जबकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ने स्वामी प्रसाद मौर्य को घेरने के लिए चक्रब्युहु रचना शुरू कर दिया है. इसके लिए पार्टी ने अपने स्टार प्रचारकों को यहां भेजना शुरू कर दिया है.

बसपा प्रत्याशी दलित समाज के साथ अल्पसंख्यक समाज को अपने साथ जोड़ बड़ा धमाल करने की रणनीति बना रहे है. बसपा प्रत्याशी इलियास अंसारी का सर्वसमाज में अच्छी पकड़ बताई जा रही है.

ऐसे में बसपा प्रत्याशी भाजपा और सपा दोनों ही दलों के मतदाताओं को साधते दिख रहे है. राजनीतिक जानकार यह भी बता रहे है कि फाजिलनगर के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अल्पसंख्यक,

ब्राह्मण एवं (चनाउ, अवधिया और कुर्मी) मतदाताओं की हो सकती है। वर्तमान स्थिति में अल्पसंख्यक सपा और बसपा दोनों के पाले में दिख रहा, लेकिन चुनाव के समय उसकी स्थिति क्या होगी यह समय बताएगा.

जबकि ब्राह्मण के अधिकांश मतदाता भाजपा के पाले में जाता दिख रहा जबकि कुछ ब्राह्मण सपा व बसपा के पक्ष में दिख रहा. वहीं चनाउ, अवधिया और कुर्मी मतदाता भाजपा और सपा दोनों तरफ झुकता दिख रहा.

कुशवाहा समाज भाजपा व सपा दोनों ओर जा रहा है जबकि यादव सपा और वैश्य भाजपा के साथ दिख रहा है.
सब मिलाकर जो पार्टी ब्राह्मण एवं चनाउ, कुर्मी और अवधिया मतदाताओं को अपने ओर आकर्षित कर लेगा उसे चुनाव में बड़ा लाभ मिल सकता है.

राजनीतिक जानकार यह बता रहें कि चुनाव में छोटी तदात में सैनी, मुसहर, गौंड़, भर, शर्मा (लोहार, बढ़ई), साहनी, रावत, भेड़िहार, चौहान व अन्य दर्जनभर समाज के मतदाताओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकता है.

वे बताते है कि इस समाज के लोगों को समाज में कम देखा जाता है, इनका भी आरोप रहता है कि हमें कोई नहीं पूछत. ऐसे में इनको जो दल या प्रत्याशी साध लेगा, परिणाम अचानक बदल जायेगा.

राजनीतिक जानकार अपनी गणित के अनुसार जो तस्वीर दिखा रहे है, उसके अनुसार यहां की लड़ाई त्रिकोणीय दिख रहा है. अगर बसपा ने ठीक से चुनाव लड़ा तो चुनाव आश्चर्य चकित करने वाला हो सकता है.

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