आज देश में कोरोनावायरस संक्रमण की भयावह स्थिति होने के कारण लाखों की संख्या में लोगों की मृत्यु हुई है जिसे भूल पाना बड़ा ही कठिन है.
लोगों ने अपनों की मौत का जो मंजर देखा है वह बड़ा ही दर्दनाक है, शवों को दफनाने/जलाने की प्रक्रिया अलग-अलग धर्मों में है किंतु कोविड ने तो दाह संस्कार की संस्कृति को ही बदल दिया.
कंधों पर उठाए जाने वाले लाश को जेसीबी मशीन से उठाकर दफनाया गया, गंगा में तो सैकड़ों की संख्या में लाशें लावारिस अवस्था में प्रवाहित कर दी गईं.
मीडिया में खबर आने के पश्चात इस पर राज्य सरकारों की काफी किरकिरी हुई. आइए आपको बताते हैं कि भारतीय संविधान में मृत शरीर को दफनाए अथवा अंत्येष्टि के संबंध में कानून की व्यवस्था क्या है?
कॉमन कॉज बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक फैसले में वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ में हमें सम्मान के साथ मरने का अधिकार भी शामिल है.
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यदि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो गई है तो उसे बिना किसी देरी के अंतिम संस्कार का अधिकार है. 1995 में परमानंद कटारा बनाम भारत संघ तथा अन्य मामलों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने
सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के अधिकार को मान्यता दिया था. किसी भी तरह की संपत्ति का अधिकार अपने आप में मृत शरीर में नहीं होता. हालांकि मृत्यु के बाद शरीर को जलाना/दफनाना QUASI PROPERTY माना जाता है.
अंतिम संस्कार के संपन्न कराने से पूर्व मृत शरीर पर अधिकार उसके परिजनों का होता है किंतु विशेष परिस्थितियों में न्यायालय के विशिष्ट निर्देशों के बाद मृत शरीर के साथ छेड़छाड़ किया जा सकता है.
हालांकि सामान्य तौर पर न्यायालय मृतक शरीर के साथ किसी भी तरह के ‘डिसइंटरटेमेंट’ के पक्ष में नहीं होता है क्योंकि हर परिस्थिति में मृत शरीर की पवित्रता को बनाया रखने का प्रयास किया जाता है.
यही वजह है कि अनुच्छेद 25 के तहत प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार में भी इसकी संभावना तलाशी जा रही है.