BY- THE FIRE TEAM
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती दरगाह पर हुई आतंकी घटना के आरोपी इंद्रेश कुमार को संघी एजेंडे के तहत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी–फारसी विश्वविद्यालय द्वारा दिलवाई गई डीलिट की उपाधि
- धार्मिक ग्रंथों का संस्कृत में होने का अर्थ यह नहीं कि संस्कृत भाषा ही धर्म
रिहाई मंच़ ने आतंक आरोपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर को रक्षा मंत्रालय की 21 संसदीय सलाहकार समिति का सदस्य बनाए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
इसके अलावा मंच ने आतंक आरोपी रहे इंद्रेश कुमार को ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी–फारसी विश्वविद्यालय द्वारा डीलिट की मानद उपाधि दिए जाने को अनैतिक बताया।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के आरोपों का सामना कर रही प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आतंक के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली कथित राष्ट्रवादी पार्टी ने न केवल संसद में पहुंचाया बल्कि उसी सरकार ने उसे अब रक्षा मंत्रालय की संसदीय सुरक्षा समिति सदस्य भी बना दिया।
उन्होंने कहा कि सरकार इस तरह से देश को संदेश दे रही है कि एक खास विचारधारा का सत्ता और समाज पर वर्चस्व इस हद तक हो चुका है कि वह बिना किसी विरोध के एक आतंक आरोपी को न केवल संसदीय चुनाव जितवा सकती है बल्कि देश की सुरक्षा से जुड़ी समिति का सदस्य भी बना सकती है।
उन्होंने कहा कि सरकार इस फैसले से एक तरह से भारतीय समाज की परीक्षा ले रही है कि जनता को किस हद तक भावनात्मक रूप से सम्मोहित और भयग्रस्त किया जा सकता है।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि यह बहुसंख्यकवाद के सामने घुटने टेक देने की स्थिति है।
इसका एक उदाहरण फिरोज खान के संस्कृत के असिसटेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के खिलाफ बीएचयू में आरएसएस समर्थित छात्रों और बाहरियों का विरोध प्रदर्शन भी है।
फिरोज़ खान का विरोध साफ तौर पर यह कहते हुए किया जा रहा है कि वह मुसलमान हैं इसलिए वह हिंदुओं को धर्म कैसे पढ़ा सकते हैं। हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों का संस्कृत में होने का अर्थ यह नहीं कि संस्कृत भाषा ही धर्म हो गई।
इसी बीएचयू में अभी कुछ समय पहले ही संघ का झंडा उतरवा देने के आरोप में महिला असिसटेंट प्रॉक्टर को एफआईआर तक झेलनी पड़ी थी।
उन्होंने कहा कि आरएसएस कानूनी तौर पर न तो कोई संस्था है, न राजनीतिक दल है और न ही इसकी कोई संवैधानिक हैसियत है इसके बाद भी उसके झंडे को हटाना अगर इतना बड़ा अपराध बन जाता है तो वह केवल सत्ता पर उसकी पकड़ और बहुसंख्यकवाद की हनक है।
इसी सत्ता के भय और सम्मोहन के मिले-जुले रूप को ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी–फारसी विश्वविद्यालय द्वारा आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार को डीलिट की मानद उपाधि दिए जाने में भी देखा जा सकता है।
वरना किसी आरएसएस प्रचारक को उर्दू, अरबी–फारसी विश्वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि दिए जाने का क्या औचित्य हो सकता है।
2007 में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती की अजमेर स्थित दरगाह में हुई आतंकी घटना के आरोपी इंद्रेश कुमार को यह उपाधि ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी–फारसी विश्वविद्यालय द्वारा दिलवाने की मंशा को समझा जा सकता है।
विश्वविद्यालय के कुलपति माहरूख खान, जिनकी अपनी अकादमिक योग्यता भी संदिग्ध बताई जाती है, से पूछा जाना चाहिए कि इंद्रेश कुमार ने समाज में ऐसा कौन सा योगदान दिया है कि उन्हें मानद डी.लिट. की उपाधि दी गई।
इन्द्रेश कुमार को सम्मानित करने वाले कुलपति को ये भी बताना चाहिए कि जब छात्र कश्मीरी अवाम के समर्थन में मार्च निकलना चाहते थे तो उन्होंने क्यों रोका।
वहीं राज्यपाल आनंदी बेन पटेल द्वारा विश्वविद्यालय के नाम से उर्दू, अरबी, फ़ारसी हटाए जाने की मंशा को साफ समझा जा सकता है।
द्वारा-
राजीव यादव
रिहाई मंच
9452800752
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