आज-कल गली, मुहल्लों, मार्केट के नुक्कड़ पर सिल्वर के स्टीमर में उबलते हुए मोमोज, तीखी लाल मिर्च की चटनी के साथ खाते हुए युवा किशोर (टीनएजर्स) आपको भारी संख्या में दिख जायेंगे.
अक्सर शाम के समय ये मासूम युवा किशोर नहीं जानते कि वह मोमोज खाकर, अपने स्वास्थ्य को किस हद तक बर्बाद कर रहे हैं?
जैसा कि ये मोमोज़ मैदा के बने हुए होते हैं और मैदा गेहूं का ही एक उत्पाद है जिसमें से प्रोटीन व फाइबर निकाल लिया जाता है., मृत स्टार्च ही शेष बचता है.
जी हां, उसे और अधिक चमकीला बनाने के लिए बेंजोयल पराक्साइड मिला दिया जाता है जो एक रासायनिक बलीचर है. वही ब्लीचर्स जिससे चेहरे की सफाई की जाती है.
यह ब्लीचर शरीर में जाकर किडनी को नुकसान पहुंचाता है, मैदे के प्रोटीन रहित होने से इसकी प्रकृति एसिडिक हो जाती है. यह शरीर में जाकर हड्डियों के कैल्शियम को सोख लेता है.
तीखी लाल मिर्च की चटनी उत्तेजक होती है जिससे नपुंसकता जैसी महाभयंकर बीमारियां देश के किशोर व युवा को खोखला करती जा रही हैं.
इसमें ऐसे केमिकलों को मिलाया जाता है जो बच्चों के दिमाग में चले जाते हैं जिससे बच्चों का मन बार-बार खाने को करता है.
यह केमिकल बच्चियों में बांझपन और लड़कों में नपुंसकता पैदा करते हैं जिसकी खाने वालों को भनक भी नहीं लगती.
यह खाना आपकी आंतों में जाकर चिपक जाता है, आंतों का सत्यानाश हो जाता है जिससे बच्चों में नया खून बनना बंद हो जाता है और शरीर का विकास रूक जाता है.
जीभ के स्वाद में आकर युवा किशोर अपने स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं. ये जानलेवा मोमोज़ पूर्वी एशियाई देशों चीन,
तिब्बत का खाना है क्योंकि वहां की जलवायु के अनुकूल होता है, ये भारत की गर्म जलवायु के अनुकूल नहीं है.
क्षमा करें किंतु सच में इस बर्बादी के जिम्मेदार कोई नहीं बल्कि इन बच्चों के अभिवावक जिम्मेदार हैं.
क्या आप अपने इन बच्चों के जीवन को बचाना चाहते हैं तो फिर आज ही शुभ संकल्प लें कि इस स्वास्थ्य नाशक रोग प्रधान आहार को कभी नहीं खाएंगे और ना ही किसी को खाने देंगे.