BY– नरेंद्र चौहान
पुलवामा में देश ने 44 रणबांकुरे खो दिए पुरा देश गम और आक्रोश के अंगारो पर धहक रहा है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ इससे पूर्व 18 जवान शहीद हुए थे। सरहद पर कितने ही जवान अपने प्राणों की आहूति दे चुके हैं और सीमा पर चौकस हर जवान मातृभूमि के लिए मर मिटने को तैयार बैठा है।
क्या हमने सोचा है कभी कि ये सैनिक हंसते हंसते क्यों प्राणों की बाजी लगा देते हैं। क्यों इन्हें अपने मां पिता, भाई बहन, पत्नी मासूम बच्चों के अनाथ होने व उनसे दूर होने का डर नहीं सताता। जरा सोचिएगा। ये दिवाने अपनी मातृ भूमि व अपने देशवासियों की सुरक्षा के लिए हंसते हंसते शहादत को गले लगा देते हैं
जिस मकसद के लिए भारत मां के ये लाल मर मिटते हैं इनकी शाहदत के चंद मिनटों के अंदर ही कुछ तथाकथित राष्ट्र भक्त देश के सौहार्द व एकता को नफरत की आग में झोकना शुरू कर देते हैं। कभी संप्रदाय विशेष व क्षेत्र के नाम पर आंतकवादियों के खिलाफ हमारे गुस्से व नफरत का रूख निर्दोष लोगों की तरफ मोडने का प्रयास शुरू करते हैं। नफरत की आग भडका कर ये ओछी सोच के लोग अपनी राष्ट्र भक्त छवि को चमकाने के लिए चालाकी के साथ शहीदों के बलिदान पर भी अपने स्वार्थ की रोटियां सेकने से नहीं चूकते।
ऐसा ही कुछ पुलवामा में शहीद हुए जवानों की शहादत के बाद भी किया जा रहा है। याद रखिए देश का कोई भी सैनिक अपने देश को टूकडों में बंटने व निर्दोष नागरिकों की जान को संकट में डालने के लिए प्राणों का बलिदान नहीं देता। कृपा कर सोशल मीडिया पर किसी धर्म, संप्रदाय व क्षेत्र विशेष के लोगों के खिलाफ जहर फैला रहे शातिरों की अफवाहों के बहकावे में न आएं।
देश की जिस एकता शांति व सुरक्षा के लिए हमारे जवान निसंकोच अपनी जान की बाजी लगा देते हैं उसी के दुश्मन न बनें। शहीद सैनिकों के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए देश के हर सैनिक का दिल से सम्मान करें व उनके बलिदान के आधार को समझते हुए देश की एकता अखंडता, सांप्रदायिक व खुशहाली पर ग्रहण लगाने वाली सोच का मुंह तोड जवाब दें। फिर चाहे वो आंतकवाद हो या देश की अखंडता को नुक्सान पंहुचाने वाला नफरत का जहर।
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं।