BY- राधेश्याम शर्मा
कल एक बार फिर हम दशहरा मना रहे होंगे और हर बार की तरह इस बार भी हम ये ही कहेँगे की आज हमने अच्छाई पर बुराई की जीत दर्ज कर ली है।
ये बात और है की प्रदूषण करके एक बुराई को हम जरूर बढ़ावा दें रहे हैं। मेरा यहाँ मतलब प्रदूषण से नहीं है मेरा मतलब इस बात से है की रावण ने ऐसा कौन सा पाप किया है जो उसे हर बार इस कदर जलाया जाता है।
और राम जी ने कौन से पुण्य किये हैं कि उनको सुप्रीम कोर्ट ढूंढ रहा है? आइये एक नज़र दोनों ही व्यक्तित्व पर डालते हैं?
राम चंद्र जी दैवीय उत्पत्ति माने जाते हैं, सारी शक्तियो से परिपूर्ण जिन्हें बचपन से ही सारी सुख सुविधाएं मिली हुईं थीं।
चार माओ का प्यार, भारत के प्रमुख शिक्षक से शिक्षा। व्यक्तिव, प्रजा का प्यार और बड़ी बात सीता जी जैसी जीवन साथी।
क्या त्याग था आइये ये भी जान ले। अपने परिवार के द्वेष के कारण घर छोड़ा ना कि किसी प्रजा की भलाई के लिए। पिता की मृत्यु हुयी वो भी घर की समस्याओ के कारण।राम जी जंगल में गए वहाँ भी उन्हें बहुतों का साथ मिला चाहे वह सुग्रीव हो ये हनुमान जी।
पूरी एक सेना का साथ मिला जिससे उन्होंने रावण का वध किया और जब सीता माँ वापस आयी तो उनपर आरोप लगाया, अग्नि परीक्षा ली।
अयोध्या वापस आने पर किसी के कहने पर सीता को जंगलों में भटकने को छोड़ दिया। इतनी कठिन तपस्या के बाद जब उनका मिलना हुआ तो भी उन्हें प्रताड़ित किया जिससे की वो धरती में समा गई।
ये एक छोटा सा जीवन वृत्तांत था श्री राम चंद्र जी का जो आज भी बहस का मुद्दा बने हुए हैं।
अब बात उस पापी की जो हर साल जलाया जाता है। अगर त्याग भरत का है तो त्याग तो कुम्भकरण, मेघनाथ अक्षयकुमार का भी होना चाहिए।
रावण नाम ही बहुत बुरा सा दिखाया गया है जिसे शक्ति दैवीय नहीं मिली देवताओं की तरह। ना ही देवताओं की तरह वह नृत्य का शौकीन था। शिव जी का परम भक्त और पुजारी था ख़ुद के राज्य की शक्ति को बढ़ाने के लिए अपने सभी भाइयो को लेकर पूजा की, देवता उसमें भी परेशान हो गए।
अंततः शिव जी प्रसन्न हुए और सभी को वर दिया वहाँ भी कुम्भकरण के साथ धोखा हुआ। पर सज़ा धोखे की नही मिली आज तक देवताओं को।
जैसे आज बलात्कारी बाबा मौज करते हैं क्योंकि बलात्कार तो धोखे से कम माना जाता है शायद आज।
अपनी बहन की नाक काट दिए जाने के बाद हर भाई जो करता वो रावण ने भी किया जो गलत था। गलत तो नाक कटते हुए देखना भी था, पर ये गलती तो देवताओं ने की थीं इंसान नहीं थे ये, आज के बाबाओ की तरह।
रावण ने सीता के सतीत्व को हाथ भी नहीं लगाया। उनकी मर्जी को सराहते रहे, उनके साथ कभी किसी तरह की जबरदस्ती नहीं की। ये भी पाप था?
हनुमान जी ने जब छोटी सी बात पर पूरी लंका जला दी तब उसने अपनी प्रजा के हित के लिए दोबारा सबको रहने के लिए घर कपड़ा खाना-पानी कि व्यवस्था की। जो शायद राम जी से बढ़कर था पर ये देवता तो नहीं था, तो ये भी पाप ही था।
अपनी प्रजा के लिए उसने अंतिम सांस तक जान लड़ा दी भागा नहीं, ना ही किसी मोक्ष की कामना की और अंतिम समय में भी लक्ष्मण को उपदेश देकर ही गया।
सोचिये कितना गलत था रावण जिसकी सज़ा समाज आज तक उसे दें रहा है।
ऐसे दीन हीन समाज से आप कल्पना ही क्या कर सकते हैं? जो आज के समय में बाबाओ के चरणों में गिरा पड़ा है।
जिन्होंने श्रद्धा को बाजार और मंदिर को व्यापार बना रखा है ऐसे समाज से क्या उम्मीदें लगाएंगे रावण के त्याग को समझ पाने की। खैर जो भी हो ये तो सोचनीय है और रहेगा। तय हमें करना है जरुरी क्या है?
प्रश्न-रावण जो प्रजा पालक था, स्त्री का सम्मान करता था और विद्वान् भी था, क्या उसे हर साल सज़ा देना जरुरी है?
A- हा
B- ना
C- कह नहीं सकते
लेखक रिसर्च स्कॉलर तथा स्वतंत्र विचारक हैं। लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं।