प्रधान सेवक ही भारत के प्रधान इतिहासकार घोषित हों


BYRAVISH KUMAR


रबींद्रनाथ टैगोर अपने जीवन में पाँच बार अमरीका आए। इसके लिए भाप इंजन वाले पानी के जहाज़ से लंबी यात्राएँ की। राष्ट्रवाद के ‘कल्ट’ पर भाषण दिया। इसी क्रम में 6 दिसंबर 1916 को न्यू हेवन पहुँचे जहाँ येल यूनिवर्सिटी है।

आप इस पोस्ट के साथ एक इमारत की तस्वीर देखेंगे। इसका नाम है टाफ्ट( TAFT) अपार्टमेंट। तब यह होटल था जहाँ टैगोर रूके थे।

टैगोर के स्वागत के लिए यहाँ भारतीय छात्र काफ़ी उत्साहित थे। काश इन छात्रों पर कोई किताब होती जो बताती कि उस समय ऑक्सफ़ोर्ड छोड़कर येल क्यों आए? आने वाले कौन थे और लौट कर भारत जाकर क्या किया? ख़ैर।

टैगोर का स्वागत उस समय संस्कृत के विद्वान प्रो. हॉपकिन्स ने किया। न्यूज़ बुलेटिन में रबींद्रनाथ टैगोर को सर कहकर संबोधित किया है। टैगोर ने यहाँ कविता पाठ किया था। हाँ तो बता रहा था कि ये टाफ्ट इमारत अब भी है। होटल की जगह इसे रहने की जगह में बदल दिया गया है।

टैगोर से संबंधित जानकारी जमा करते हुए यह भी पता चला कि स्वामी विवेकानंद (1893) से पहले ब्रह्म समाज के पी. सी. मज़ूमदार (1883) अमरीका आए थे। तब पी.सी. मजूमदार ने यहाँ घूम-घूम कर भाषण दिया था। 1893 में पी. सी. मजूमदार और विवेकानंद एक साथ आए थे।

एक बुलेटिन से पता चलता है कि शिकागो की धर्मसंसद में स्वामी विवेकानंद के साथ पी. सी. मजूमदार ने भी भाषण दिया था। जिनके बारे में पब्लिक में कम जानकारी है। दोनों के भाषणों का अध्ययन हो सकता है। ज़रूर हुआ होगा। पर कुछ सामग्री का पता चले तो पढ़ूँगा ज़रूर।

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photo: Ravish Kumar/facebook page

यह बात कोई प्रधानमंत्री को भी बता दे। वो इन दिनों नायकों को याद करने और सम्मान करने का काम कर रहे हैं। इससे होगा यह कि इसी बहाने उन्हें एक और कार्यक्रम और भाषण देने का बहाना भी मिल जाएगा। कहने का मौक़ा मिलेगा कि कैसे एक परिवार ने या उस एक परिवार के लिए इतिहास के नायकों का सम्मान नहीं किया गया।

जिस नेताजी बोस पर दर्जनों किताबें लिखी गई, गाने बने( उपकार का तो गाना सुन लेते) करोड़ों कैलेंडर छपे जिनमें नेताजी की तस्वीर अनिवार्य रूप से होती ही थी और है, अनेक चौराहों पर उनकी प्रतिमा है, सड़कों के नाम हैं, नेताजी नगर है, देश के करोड़ों बच्चे फ़ैन्सी ड्रेस पार्टी में नेताजी बन कर जाते हैं उस नेताजी के बारे में प्रधानमंत्री ही कह सकते हैं कि इन्हें भुला दिया गया। उन्हें भुला दिया गया।

प्रधानमंत्री के याद करने का एक ही पैटर्न है। उसे देखते हुए लगेगा कि एक अकेले नेहरू ने भारत की आज़ादी के सारे नायकों को किनारे कर दिया था। इतने सारे नायक नेहरू से किनारे हो गए। नेहरू आज़ादी की लड़ाई में कई साल जेल गए। यात्राएँ की। मगर प्रधानमंत्री के भाषणों से लगता है कि नेहरू अंग्रेज़ी हुकूमत से नहीं बल्कि उन महापुरुषों को ठिकाने लगाने की लड़ाई लड़ रहे थे।

नेताजी और नेहरू की दोस्ती पर दो लाइन भी नहीं बोलेंगे, पटेल और नेहरू के आत्मीय संबंधों पर दो लाइन नहीं बोलेंगे मगर हर भाषण का तेवर ऐसा होगा जैसे नेहरू ने सबके साथ काम नहीं किया बल्कि उनके साथ अन्याय किया।

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प्रधानमंत्री इसीलिए आज के ज्वलंत सवालों के जवाब देना भूल जा रहे हैं क्योंकि वे इन दिनों नायकों के नाम, जन्मदिन और उनके दो चार काम याद करने में लगे हैं। मेरी राय में उन्हें एक मनोहर पोथी लिखनी चाहिए जो बस अड्डे से लेकर हवाई अड्डे पर बिके। इस किताब का नाम मोदी-मनोहर पोथी हो।

प्रधानमंत्री के लिए आज भी इतिहास सिर्फ याद करने का विषय है। रट्टा मारने का विषय। इतिहास में किसी प्रधानमंत्री ने इतिहास का ऐसा सतहीकरण नहीं किया जितना हमारे प्रधानमंत्री ने किया। मैं इसे सतहीकरण के अलावा इतिहास का व्हाट्सअपीकरण कहता हूँ। इन मौक़ों पर मोदी के भाषण का कंटेंट और व्हाट्स एप मीम में किसी नायक के जन्मदिन पर जो कंटेंट होता है, दोनों में ख़ास अंतर नहीं होता है। मोदी को प्रधान सेवक के साथ-साथ भारत का प्रधान इतिहासकार ( Prime Historian of India) घोषित कर देना चाहिए। यह पद प्राप्त करने वाले वे दुनिया के पहले प्रधानमंत्री होंगे।

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