BY- रिंकु यादव
हमारे मुल्क में जाति यथार्थ है, आपके देखने या न देखने, मानने या न मानने से परे जाति का अस्तित्व है।
समाज व राजनीति जाति व वर्ग निरपेक्ष नहीं चल रहा है। हमारे समाजिक-राजनीतिक जीवन व व्यवहार को जाति व वर्ग तय करता है। हमारे सवाल उठाने या न उठाने से जाति का अस्तित्व तय नहीं होता है।
डॉ अंबेडकर जाति को राष्ट्र व लोकतंत्र के खिलाफ मानते थे. वे जाति के उन्मूलन के पक्ष में थे।
सवाल है, जाति पर बात होगी, तब तो जाति उन्मूलन पर बात होगी. बहुतेरे जातिवादी पाखंडी जाति पर बात करने पर जातिवादी ठहराने लगते हैं। मानो हमारे जाति पर बात करने से ही जाति अस्तित्व में आ गया।
बहुतेरे बुद्धिजीवी कहते हैं कि मैं जाति नहीं मानता!
मैं कम्युनिस्ट हूं,मार्क्सवादी हूं। क्या आपके नहीं मानने के उद्घोष से आप जाति मुक्त हो गये। जाति खत्म हो गई।
डॉ भीमराव अंबेडकर एनिहिलेशन ऑफ कास्ट के 1937 के संस्करण के अंत में कहते हैं-
आप जाति पर बात नहीं करके उसे कायम रखना चाहते हैं. मैं आपको जाति पर बात करने के लिए मजबूर कर दूंगा। बीमारी पर बात करनी पड़ेगी. बीमार न चाहे तो भी। क्योंकि उसकी बीमारी से बाकी लोगों के बीमार होने का खतरा है। आपका इलाज तो मैं करके रहूंगा।
….B. R. AMBEDKAR, एनिहिलेशन ऑफ कास्ट के दूसरे संस्करण (1937) की भूमिका का आखिरी पैरा।
इसलिए बात तो जाति पर होगी,सबकी जाति पर होगी। कोई इससे परे नहीं है। हमारी सदिच्छा या चाहने,न चाहने से कुछ नहीं होना है। बात होती भी है।
यह यथार्थ है कि हम किसी जाति और वर्ग में पैदा होने का फायदा व नुकसान दोनों झेलते हैं। इससे कोई इंकार नहीं ही कर सकता। यह हमारे मानने- न मानने से तय नहीं होता है।
जरूर ही हमारे सामाजिक-राजनीतिक व्यवहार को जाति-वर्ग तय करता है। यह महत्वपूर्ण है कि हम जाति व वर्गीय पृष्ठभूमि से कितना बाहर जाकर सामाजिक-राजनीतिक व्यवहार करते हैं?
जातीय व वर्गीय शोषण-उत्पीड़न-वर्चस्व के खिलाफ किस हद तक खड़ा होते हैं? आप अपनी जाति आधार-पहचान और वर्ग आधार को कितना तोड़ते-छोड़ते और अपने आपको डी कास्ट व डी क्लास करने की दिशा में आगे बढ़ते हैं?
किसी कम्युनिस्ट पार्टी का टैग लग जाने भर से या किसी अंबेडकरवादी संगठन से जुड़े होने से आप जाति और वर्ग से मुक्त कर दिये जाऐंगे, यह संभव नहीं है। आपको अपने सामाजिक-राजनीतिक जीवन में हरेक पल, हरेक दिन परीक्षा देनी होता है। सामाजिक-राजनीतिक मसले पर आपका स्टैंड-एक्शन यह बताता है कि आप कहां खड़े हैं?
‘जाति से ऊपर उठिए’ एक भाववादी आह्वान है।
जातिवाद विरोधी नारा लगाने, कविता-गजल गुनगुनाने से जाति खत्म नहीं होगी। जाति उन्मूलन के ठोस एजेंडा पर एक्शन में जाना होगा। जाति के आधार पर समाज के एक हिस्से के हासिल विशेषाधिकारों पर चोट करना होगा।
आप जाति का खात्मा चाहते हैं, यह सामाजिक न्याय के व्यापक मुद्दे पर संघर्ष के साथ आपकी प्रतिबद्धता से तय होगा।
आप सामाजिक न्याय को लालू-मुलायम-मायावती…के दायरे में कैद मत कीजिए और फिर सामाजिक न्याय पर ही सवाल पर खड़ा मत कर दीजिए। संविधान के संदर्भ से सामाजिक न्याय पर बात कीजिए। मनुवाद के खात्मे व जाति उन्मूलन के लिए सामाजिक न्याय पर बात कीजिए।
कन्हैया के वर्गीय पृष्ठभूमि को प्रचारित किया जाएगा.बात होगी.तो उसके जाति पर भी बात होगी.उसके सामाजिक-राजनीतिक व्यवहार पर जाति के परिप्रेक्ष्य से भी बात होगी। कन्हैया ही नहीं, हर किसी की
जाति पर बात होगी, मेरी भी और होती है।
सामाजिक न्याय के मुद्दों पर आपका स्टैंड-एक्शन आपके जाति पहचान से बाहर निकलने का पैमाना होगा।
बेशक,हम किसी जाति,लिंग व वर्ग में पैदा होना तय नहीं करते हैं,लेकिन इन सीमाओं से बाहर खड़ा होना जरूर ही हम तय करते हैं।
सवर्ण आरक्षण पर चुप्पी,सामाजिक न्याय के साथ घात को आप डॉ अंबेडकर के छाया चित्र पर माला पहनाकर ढ़क नहीं सकते।
आप सवालों से बचकर निकल नहीं सकते।
लेख में दिए गए विचार निजी विचार हैं।