BY- सलमान अली
जीडीपी के आंकड़े आने के बाद कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सर्वप्रथम सरकार को यह सोचना बंद करना होगा कि सब कुछ नियंत्रण में है।
देश की आर्थिक स्थिति के लिए मात्र वैश्विक कारकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा होता तो चीन और बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था क्रमशः 6 और 7 फ़ीसदी की दर से विकास नहीं करती।
नए आंकड़े में भारत की जीडीपी 4.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है। जाहिर है मोदी सरकार द्वारा किये गए कार्य अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में विफल रहे हैं।
लगातार गिरती जीडीपी के कारण यह तो तय हो गया है कि अर्थव्यवस्था पर मंदी की आशंकाएं और प्रबल हो गई हैं। इसके बावजूद यदि वित्त मंत्री कहती हैं कि सब कुछ ठीक है तो उनके कहने में भी हमको पूरा सच नजर नहीं आता है। जाहिर है शक बढ़ जाता है।
और यदि चीन औऱ बांग्लादेश भी भारत से आगे निकल गए हैं तो सरकार को गंभीरता को समझना होगा। वित्त मंत्री को बयान से आगे जाकर काम करना पड़ेगा। बांग्लादेश से सीखना पड़ेगा जो भारत को पिछाड़ते हुए आगे बढ़ रहा है।
क्षेत्र विशेष में हस्तक्षेप का दृष्टिकोण कुछ हद तक देश की आर्थिक स्थिति को सुधार सकता है लेकिन स्थिर और टिकाऊ विकास के लिए अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाले गहन संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।
सरकार सिर्फ चुनाव जीतकर कुर्सी तोड़ने की लिए नहीं बनी है। उसका काम बहुआयामी है। सरकार का काम चुनाव प्रचार नहीं देश विकास होना चाहिए।
जिस प्रकार से झारखंड में हमारे प्रधानमंत्री रैलियां कर रहे हैं वह दिखाता है कि सरकार अर्थव्यवस्था को लेकर कितनी गंभीर है। और जिस प्रकार से मंत्रियों की जवाबदेही तय नहीं हो पा रही है वह और भी गंभीर मसला है।
यदि प्रधानमंत्री या फिर वित्त मंत्री को गिरते हुए आंकड़े नजर नहीं आ रहे हैं तो अफसोस के अलावा हम कर भी क्या सकते हैं और आप भी क्या कर सकते हैं?
बस देखते रहिए प्रधानमंत्री की रैलियां और सोचते रहिए की अर्थव्यवस्था कभी तो सुधरेगी? क्या पता कल वित्त मंत्री की जगह शायद मनमोहन सिंह जी ही ले लें और एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने में अपना बहुमूल्य योगदान दें।
उम्मीद पर दुनिया कायम है और हमको, आपको भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। भले ही आंकड़े कितने ही नीचे क्यों ना चले गए हों या भले सरकार जो सही आंकड़े हैं वह कितना ही क्यों ना छुपा रही हो।
अभी तक आपने यदि अर्थव्यवस्था को लेकर सोचने का कष्ट नहीं किया है तो आंकड़े जानने के बाद जरूर करेंगे। दरअसल जो भी आंकड़े हमारे सामने आ रहे हैं वह बेहद चौकाने वाले हैं।
मसलन एनएसओ के आंकड़े के अनुसार चालू वित्त वर्ष के दूसरे तिमाही में सकल स्थाई पूंजी निर्माण भी बीते वर्ष की दूसरी तिमाही के 11.8% से गिरकर 1% पर आ गया है।
पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में निजी अंतिम उपभोग 9.8% था वहीं इस वर्ष की तिमाही में या गिरकर 5.1% पर आ गया है।
विनिर्माण का सबसे बुरा हाल है। पिछले साल की तिमाही में जहाँ यह 6.9 फीसदी से वृद्धि कर रहा था वहीं इस बार यह ऋणात्मक हो गया है। मतलब 0 फीसदी से भी कम।
बेरोजगारी पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा है। यही नहीं जो नौकरी कर रहे थे उनकी भी चली गई है।
2016 से 2018 के बीच लाखों लोगों की नौकरी चली गई।
सरकार ने आरबीआई से लाखों करोड़ रुपये लिए उसका क्या हुआ अभी तक कुछ ठोस जानकारी नहीं मिली है।
कुल मिलाकर देश की अर्थव्यवस्था सुस्त नहीं, रुक गई है। वित्त मंत्री को चाहिए कि इसको गंभीरता से लेकर काम करें। केवल बयान दे देने से देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा नहीं जा सकता।