BY- Salman Ali
अगर किसी की संपत्ति 660 करोड रुपए की हो और उसे संसद में कम पैसे में खाना मिले तो अजीब नहीं लगेगा क्या? अजीब तो शायद 660 करोड रुपए वाले व्यक्ति को भी लगे।
लेकिन यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि गरीब की सब्सिडी को खूब बताया जाता है और अमीर की सब्सिडी को छुपाने का काम किया जाता है।
संसद में 88 प्रतिशत सांसद इस बार यानी 17वीं लोकसभा में करोड़पति चुनकर आए हैं। मतलब 545 सांसदों में से 475 सांसद करोड़पति हैं। सबसे अमीर सांसद कांग्रेस के नकुल नाथ हैं जिनकी संपत्ति 660 करोड़ की है।
इन सांसदों को हमारी सरकार एक रुपए में चाय और 4 रुपये में दाल फ्राई खिलाती है। इसके लिए हर साल करोड़ों की सब्सिडी देती है। 2016-17 में सरकार ने 15.40 करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में पास किये।
मतलब कि 245 राज्यसभा के सांसद और 545 लोकसभा के सांसद एक रुपए में चाय की चुस्की सब्सिडी पर लेते हैं।
आपको भी अजीब लगेगा और शायद लगना भी चाहिए कि जिस देश में 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं वहाँ करोड़पति सांसदों को सब्सिडी दी जाती है।
यह डाटा इसलिए बता रहे हैं ताकि आप जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के साथ खड़े हों। क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर कम पैसे में पढ़ाई नहीं प्राप्त करवानी चाहिए।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को बदनाम करने के लिए ना जाने क्या-क्या साजिश रची गई। लेकिन यह विश्वविद्यालय ना तो इंदिरा गांधी जी के समय झुका और ना आज झुक रहा है।
इसका कारण है क्योंकि यहां छात्र ज्यादातर गरीब और पिछड़े इलाके से आते हैं। उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है बस पाना ही पाना है। जब आदमी के पास खोने के लिए कुछ नहीं होता है तो भला वह किस बात के लिए डरे।
मैं भी छात्र हूं, मैं भी चाहता हूं कि मुझे भी शिक्षा अच्छी और सस्ती मिले। मैंने भी प्रेमचंद को पढ़ा हैै जो सबको सस्ती शिक्षा की वकालत करते हैं।
हमने पढ़ा है तो इसका मतलब हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी शायद पढ़ा ही होगा। वह भी बताते हैं कि उन्होंने ग्रेजुएशन किया है। अगर किया है तो जाहिर है छात्रों के दुख-दर्द को समझते होंगे। ऊपर से वह भी गरीब परिवार से थे, ऐसा उन्होंने बताया है तो और ज्यादा दर्द को महसूस कर सकते हैं।
अगर समझते हैं तो फीस बढ़ोतरी को वापस लेना भी चाहिए। यदि 3000 करोड़ एक मूर्ति पर खर्च हो सकता है तो देश के भविष्य के लिए मुफ्त शिक्षा क्यों नहीं?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में करीब 40 प्रतिशत ऐसे छात्र हैं जिनके परिवार की सालाना आय 144000 रुपये भी नहीं है तो फिर इस परिवार का बच्चा 55000 रुपए की फीस जो कि बढ़ोतरी के बाद इस विश्वविद्यालय की हो गई है कैसे भर पाएगा? या फिर फीस बढ़ोतरी कर इन छात्रों को शिक्षा से वंचित करने का एक षड्यंत्र है?
जहां देश के सिर्फ 6 विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप 500 विश्वविद्यालय में अपना स्थान बनाने में कामयाब हो पा रहे हैं। वहां विश्व गुरु बनने का जो सपना हमने देखा वह ऐसे कैसे पूरा किया जा सकता है?
या यह भी बस चुनाव जीतने का एक पैंतरा है। यदि करोड़पति सांसदों के लिए संसद की कैंटीन में एक रुपए की चाय और 4 रुपए की दाल फ्राई मिल सकती है तो 10 रुपये में या 20 रुपये में छात्रों को एक कमरा क्यों नहीं?