हत्यारे को बेल, बालात्कार पीड़िता को जेल आखिर क्यों?


BY- सलमान अली


हमारा संविधान दुनिया का सबसे बेहतरीन संविधान है। हमारा लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। सबके लिए सामान न्याय की व्यवस्था की गई है। सबको निर्दोष साबित करने का मौका भी समानता के साथ दिया जाता है।

इस समय भी क्या ऐसा हो रहा है? क्या न्याय समानता के साथ मिल रहा है? पेंडिंग पड़े केस तो अलग बात क्या केस सही से हो भी रहे हैं? ये कुछ सवाल हैं जो आपको भी परेशान करने चाहिए।

आपको उन्नाव जिले का केस याद होगा जिसमें पीड़िता को केस करने के लिए मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्महत्या करने का प्रयास करना पड़ा।

अब एक मामला और आया है और वह भी उत्तर प्रदेश का है। ये मामला चिन्मयानंद से जुड़ा हुआ है। इस मामले में करीब 43 वीडियो भी एसआईटी को उपलब्ध कराए गए हैं।

43 वीडियो के सामने आने के बाद जब एसआईटी ने चिन्मयानंद को गिरफ्तार किया तो उसने कुछ गुनाह कबूल भी किये।

इस सब खेल में अब लड़की के ऊपर मुकदमा करके गिरफ्तार कर लिया गया है। और दूसरी तरफ चिन्मयानंद को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

लड़की पर एफआईआर करने वाली उत्तर प्रदेश पुलिस भाजपा नेता चिन्मयानंद पर केस करने की हिम्मत नहीं कर पाई।

लड़की और उसके कुछ परिचित को इसलिए गिरफ्तार किया गया है क्योंकि उन्होंने फिरौती की मांग की थी। इस बात को एसआईटी ने सच भी बताया  है।

सच भी हो लेकिन लड़की की गिरफ्तारी और चिन्मयानंद की गिरफ्तारी न होना कहाँ तक सही है? और जब सत्ता में वह पार्टी हो जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देती हो।

सपा सरकार के समय हो हल्ला करने वाले अब शांत हैं तो जाहिर है वे सब मानशिक पीड़ित व्यक्ति हैं।

एक तरफ बीजेपी अपने विधायक को बचाने के लिए साल भर उसका साथ देती और दूसरी तरफ पूर्व सांसद को बचाने के लिए अस्पताल में भर्ती करवाती है।

क्या इसी शासन की उम्मीद जनता को थी जब उसने बीजेपी को प्रचंड बहुमत से सत्ता में लेकर आई थी।

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हमारे देश की स्थिति अच्छी पहले से नहीं है और अब अपराधी को ऐसे बचाया जाएगा तो फिर क्या हालात होंगे यह आप और मैं कल्पना भी नहीं कर सकते।

हर रोज महिलाओं के साथ बालात्कार जैसी घटनाएं देश के किसी न किसी कोने में होती रहती हैं। इन सब के बावजूद महिलाएं शिकायत करने से भी कतराती हैं।

और अब अगर उनको ही जेल जाना पड़ेगा तब तो वह और भी शिकायत नहीं करेंगी।

बात केवल प्रशासन तक सीमित नहीं रह गई है। यदि न्यायालय भी चपेट में आने लगे तो सवाल कौन करेगा।

संवैधानिक संस्थाओं को खत्म कर दिया जाएगा तो आवाज दबेगी नहीं तो क्या होगा?

अब हत्यारे अगर जेल से बाहर आएंगे तो क्या होगा? क्या क्राइम वह दोबारा नहीं करेगा? उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट ने पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या करने वाले मुख्य अरोपी को बेल दे दी है।

इस हत्या में शामिल अन्य लोगों को पहले ही बेल मिल चुकी है। न्यायालय का निर्णय सर्वोपरि है लेकिन कब तक?

 

 

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