BY-Sushil Bhimta
पहाड़ो में नामुमकिन है नेट बैंकिंग। क्या ऐसे में पहाड़ी क्षेत्रों में नेट बैंकिंग संम्भव है?
जहां अभी से मार्च तक बर्फबारी और बरसात की वजह से सड़के तक बंद हो जाया करती हैं, बिजली पानी व्यवस्था ठप्प पड़ जाती है किनौर, लाहोल, स्पीति और शिमला के बहुत सारे पहाड़ी क्षेत्रों का सम्पर्क समस्त प्रदेश से टूट जाती है। लोग चार महीने तक खाने-पीने की चीजों से लेकर जीवन की सारी मूलभूत चीजों को दो महीने पहले ही अपने घरों में भंडारित करके सर्दी के मौसम से बचने का इंतजाम करके ऱखते हैं।
हिमाचल प्रदेश, जम्मू -काश्मीर और कुछ अन्य राज्यों के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में सात-आठ फुट तक बर्फबारी होती है
तो क्या ऐसे में पहाड़ी राज्यों में satellite चलेगा?
कैसी अनदेखी है ये केंद सरकार की कि हजारों गांवों में जहाँ बिजली पानी नहीं मिलेगा वहां आपने नेट बैंकिंग चला दी। लोगों को एटीएम कार्ड्स तो थमा दिए मगर जब आवागमन ही बंद हो जाए और समस्त सुविधाओं से जनता महरूम हो जाए तो वो कैसे एटीएम बूथ और बैंक तक जाएं। बैंकों में भी कैश निकालने की सीमा रखी गई है अगर अचानक बर्फबारी हो जाए तो लोग कैसे पैसों के लिए बैंकों तक जा पायेंगे?
सबसे अहम और मुख्य बात तो ये है कि अभी तक इन दुर्गम क्षेत्रों में ही नही बल्कि दूसरे सामान्य क्षेत्रों में भी नेट बैंकिंग सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। आये दिन सर्वर डाउन रहते हैं और पेटीएम भी सभी व्यापारियों द्वारा नहीं रखे जा रहे।
आज भी 50% नकदी ही ली जाती है, यहां तक अगर एटीएम किसी कारण वश खराब हो जाए तो जरूरत की दवाइयां व रोज मर्रा की वस्तुएँ भी नही मिल पाती। एटीएम जाओ तो कैश नहीं उपलब्ध रहता, फिर कैसे सम्भव है नेट बैंकिंग ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में?
बिस्तर में सोचा और देश पर थोप दिया, देश के सुख चैन पर ख़ंजर घोंप दिया।
आज बरसात में आपदा आने से जगह-जगह फसे लोगों की जेब में एटीएम कार्ड्स, पेटीऍम तो हैं पर इस्तेमाल कहां करें?
मुफ्त में कोई रोटी और ठहरने की जगह क्यों देगा?
सलाम आपको आपकी नीतियों को और आपके मूंगेरी लाल के सपनों को जहां आज बिजली पानी जैसी सुविधाओं से देश वंचित है आपने नेट बैंकिंग चला दी।
आपको याद किया जाएगा जरूर मगर तानाशाह के रूप में। बस करो भाई इस देश को नेट बैंकिंग और बुलेट ट्रेन की नहीं बल्कि दो वक्त की रोटी और एक छत की जरूरत है।
यहां जो लोग अनपढ़ हैं, गरीब हैं, फुटपातों, झोपड़ियों में रहते हैं उन्हें एक छत और दो वक्त की रोटी के लिए नीति बनाओ। आज आजादी के 70 साल बाद भी देश का मजदूर, किसान बिलख रहा है तड़फ रहा है। जो किसान पूरे देश को रोटी खिलाता है वो आज सूली चढ़ रहा है। जो मजदूर आप सभी के घर, गलियों, देश की साफ सफाई से लेकर आलीशान बंगलों को बनाने तक अपना खून पसीना बहाकर आप कर्णधारों और समस्त जनता को ऐशो आराम में रखे हुए हैं वो खुद बेघर बंजारे की तरह फुटपातों पर खुले आसमान की छत और धरती के बिछोने पर सोता और सर्दियों, बरसातों में ज़िन्दगी खोता है।
विदेशों को बाढ़, भूकम्प के समय में सहायता दी जाती है मगर अपने देश के उन नागरिकों को जो पेट की भूख से लेकर आलीशान बंगलों तक बनाने में अपनी पुश्तें गुजार देता है उसपर लाठियां बरसाई जाती हैं। अगर वो जीने के लिए अपनी जायज मांग भी उठाता है,, ऐसा क्यों?
आजाद देश के नागरिक के लिए ऐसी नीतियां क्यों नही बनाई जाती कि कम से कम हर परिवार को एक छत मिल पाए। बड़े-बड़े उद्योगपतियों द्वारा लिए गए कर्जों और घोटालों की भरपाई के लिए आए दिन टैक्स लगाये जातें हैं। मगर गरीब मजदूर को एक छत देने के लिए इन मुनाफाखोरों पर या उच्च वर्ग के या सम्पूर्ण परिवारों पर कोई टैक्स लगाने की नीति क्यों नहीं बनाई जाती?
जब इतने टैक्स लगा ही रहे हैं एक टैक्स और सही, हमें मंजूर है। लेकिन नेताओं की पेंशन का दो-दो, तीन-तीन पदों से मिलना क्या न्याय है?
नेताओं को मिलने वाला बेतहाशा वेतन क्या जायज है?
इसके अलावा उनके घरों पर मिलने वाली मुफ्त दूरभाष सुविधाएं, महंगी गाड़ियां आदि सुविधाएं क्या जायज है?
देश की सुरक्षा सम्बन्धी मामलों में पांच वर्ष के लिए चुने जाने वाले नेताओं को आजादी देना क्या जायज है?
बहुत से और मुद्दे हैं जो देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति और गरीब की बदहाली से जुड़े हैं। कानून व्यवस्था किसी भी देश में इसलिए बनाई जाती है ताकि उस देश के नागरिकों के हितों की अवहेलना ना हो, देश की सुरक्षा मामलों में कोई घोटाले या कोताही ना बरती जाए और जनता पर लगाये टैक्सों से जमा पूंजी पर ऐशो आराम पर खर्च ना करके देश के विकास और गरीब जनता की मूलभूत सुविधाओं पर निवेश किया जाए।
अतः देश की सुरक्षा, गरीब जनता के हितों की सुरक्षा, देश के आर्थिक उत्थान के लिए जरूरी है कि सर्वोच्च न्ययालय इन तीनों विषयों को अपने अधीन करके देश की आगवानी करे और सिर्फ पाँच वर्षों के लिए चुने जाने वालों के इन विषयों को ना करें।
समाधान है बस देर है तो ये की देश का कानून और कानूनदानों की कलम कब आजाद हो ? जब ये आजाद हुआ तो उसी पल देश भी आजाद हुआ और आबाद भी हुआ।
जागो वतनवालों, कानूनदानों हर झोपड़ी-फुटपात, हर किसान हर जवान पूकार रहा, बेबस हुआ ये बेलगामों के हाथों मारा जाता हर पल देश में हाहाकार मचा रहा।
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं और हिमांचल प्रदेश में रहते हैं।