BY–सुशील भीमटा
वतनपरस्ती आवेश दिखाकर नहीं दिखाई जाती। आफत कभी गुस्से से नहीं टाली जाती। सूझ-बूझ लाजमी है वतनपरस्ती के लिए। तंदरुस्त दिमाग जरूरी है सरपरस्ती के लिए।
काबिल सुरक्षाकर्मी और आधुनिक सुरक्षा साधन कभी युद्ध नहीं होनें देते। कुछ कमी है जो चंद आतंकी सीमा पार कर जाते हैं और खून की नदियां बहाकर माँ भारती का दामन लाल कर जाते हैं।
सरहद पर खड़े जवान तो बखूबी अपना देश प्रेम निभाते हैं और देश की खातिर कुर्बान हो जाते हैं मगर कुछ सियासी बाजीगर सुरक्षा में कोताई बरत जाते हैं और तभी कारगिल, पठान कोट, ताज, और पुलवामा जैसे खौफनाक मंजर सामने आते हैं। जो मौत का सैलाब लाकर वतन से अमनों चैन और सुख समृद्धि को तहस नहस कर जाते हैं।
देश के विकास की राह पर चलते कदम पीछे हट जाते हैं और भुखमरी, गरीबी, गुररबत को अंजाम दे जाते हैं। वतन की सुरक्षा को बल देना ही हल है जिससे सरहद पर ही निकल जाता हर मुसीबत का हल है। वतन में बना रहता है अमनों चैन-सुख समृद्धि अगर सुरक्षा साधन और सुरक्षा कर्मी अब्बल हैं।
देश की सुरक्षा व्यवस्था या सुरक्षा साधनों में कहीं ना कहीं कोई कमी जरूर है शायद। जो हर वर्ष देश में घुसपेटियों की इतनी बड़ी तादाद घुस आती है कि वो एक गहरा जख्म दे जाती है और 20, 40 ज़िंदगियां निगलकर देश में खौफ फैला जाती है। सुरक्षा में कमी इसलिए लिख रहा हूं कि देश में घुसकर और देश में गद्दारों को ट्रेंनिग देकर देश की बर्बादी का सामान गोला बारूद भारी मात्रा में जुटाकर हर बार खौफनाक वारदातों को जन्म दिया जाता है और आतंकी गद्दार सेना के बेस कैम्प तक में घुस जाता है और सुरक्षा घेरा धरा का धरा रह जाता है। ये वाक्या सुरक्षा की कमीं का सवाल जहम में उठाता है?
माइनें बहुत कुछ निकाले जा सकते हैं और शायद सही भी हों मगर ये कोताई क्यों और कैसी बरती जाती है ?
सेना के बड़े-बड़े योग्य अधिकारी इतनें सुरक्षा के आधुनिक यंत्र देश के 15 लाख सैनिको का बल। सैनिकों की सुरक्षा और युद्ध के आधुनिक हथियारों के लिए विशेष बजट का प्रावधान और फिर भी ऐसा खौफनाक अंजाम?
क्या सियासत की आड़ पर साजिशों का पहाड़ तो नहीं बन रहा? क्या कोई अपना ही अपनों को तो नहीं छल रहा? क्या सरहद पर खड़े जवानों की जानों को कोई बड़ा मगरमच्छ तो नहीं निगल रहा? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो हर देशवासी के जहम को झिंझोड़ते और भरोसे को तोड़ते हैं।
आखिर कब तक सरहदों पर खड़े जवान और देश का आवाम इस बेरहमी के दौर को झेल पाएंगे, एक दिन ये घुसपेटिये देश में फैलकर संसद को ही उड़ा जाएंगे फिर ये सियासी खिलाडी क्या वतनपरस्ती दिखाएंगे? देश की आवाम का और देश के जवान का जागना ही हल है वर्ना गुलामी और तबाही से भरा कल है। सीमा ही सुरक्षित नहीं तो देश कैसे सुरक्षित रह पायेगा अगर जागे नहीं आवाम-जवान तो ये जम्मू-काश्मीर की धारा 370 का सियासी खेल देश निगल जाएगा और हिन्दोस्तान जाति -धर्म वर्ग और आतंक की आग में जलता नजर आएगा।
देश वासियों ये देश हमारा है हमनें जो नुमायदे देश को चलानें के लिए चुने हैं उनको अहसास करवाना होगा कि देशहित सरोपरी है। मैं सिर्फ आज की बात नहीं कर रहा आजादी के बाद से यही होता रहा है कि सियासत बेलगाम रहकर हिंदोस्तान के आवाम पर सितम ढहाती रही है और जम्मू-कश्मीर की धारा 370 जवान और आवाम की ज़िदगी निगलती आई है।
1.25 की आबादी 125 करोड़ जनता का सुख चैन उड़ाती आई और तबाही लाई है। ये गलती आज सियासत दानों के लिए अपने मनसूबों की सीढ़ी बन आई है। हर राजनीतिक दल इसका हल जानता है मगर अपने मनसूबों को पूरा करने के लिए जम्मू-काश्मीर के नाम पर जाति-धर्म की आग जलाकर राजनितिक रोटियां सेकता और अपना पेट भरता है। देश के आवाम को जागना होगा और देश में समता के कानून की मांग को उठाकर 370 को हटवाना होगा।
आजादी के बाद से बर्बादी का एक ही कारण रहा जम्मू-काश्मीर के लिए अलग कानून। जो गलती बंटवारे के समय हुई उसे आज भी दूर किया जा सकता है ये मुमकिन है नामुमकिन नहीं। कबरों को खोदने से मुर्दे ज़िंदा नहीं हुआ करते मगर मर चुके जो आफत डालकर उनकी गलती पर ज़िंदा नहीं दफनाएं जा सकते। सुधार कीजिये संघार नहीं, विचार कीजिए मुर्दों पर प्रहार नहीं। वो चले गए अपने हिसाब से जीकर अब हमें अपने हिसाब से जीना है।
आवाम की आवाज लाजमी है वतनपरस्ती के लिए नहीं तो यूँ ही बुझते रहेंगे ज़िन्दगी और अरमानों के दीये.
निगल जायेगी वतन सारा ये धारा 370 कुछ तो करो अपने वजूद के लिए। जल रहा वतन बेफिक्र बेपरवाह कर्णधार हर बार ये खौफनाक मंजर भुला दिया करते हैं उजड़ती है मांग कितनी बेटियों की कितनी माँओं के लाल बिछड़ जाते हैं, हर बार ये कर्णधार खाली दिलासा देकर अपना पल्लू झाड़ जाते हैं।
फिर आतंकी नाग फन उठाकर वही मंजर दिखा जाते हैं पिछले 70 सालों से यही हाल, माँ भारती की छाती पर यूँ ही पुलवामा सा मौत का तांडव कर जाते हैं।
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं।