BY– सुशील भीमटा
भारत भूमि पर प्राण न्यौछावर करने वाले रणबांकुरों की शहादत को सलाम देने के नए आगाज के साथ समस्त देश और हिमाचल प्रदेश को पैगाम देती संजीवी सहारा समिति रोहडू और व्यापार मण्डल रोहडू।
जी हां पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए हिमाचल प्रदेश के सैनिक तिलकराज जी की शहादत को सलाम देने और देश की माटी पर उनके बलिदान का कर्ज चुकाने के लिए और भारतीय होने का फर्ज निभाने के लिए देवभूमि हिमाचल प्रदेश के लगभग 15000 आबादी वाले छोटे से मगर जागरूक शहर रोहडू के व्यापार मण्डल और संजीवनी सहारा समिति ने देश के इतिहास में आज एक इंसानी जज्बे का नया पन्ना जोड़ दिया।
वतनपरस्ती के ऐसे जज्बे को इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना और उसमें सर्वप्रथम देवभूमि के रोहडू क्षेत्र का जिकर होना जरूरी है, क्योंकि आज शहीद तिलकराज के परिवार के परिजनों की सहायता के लिए जिस तरह इस शहर के लोगों नें बीड़ा उठाया है वो भारत के इतिहास में पहली बार हो रहा है। जी हां इस शहर के व्यापार मण्डल और संजीवनी सहारा समिति के सदस्यों नें बीड़ा उठाया है कि वो शहीद तिलकराज के परिवार की मदद के लिए धन इकठ्ठा करके उस महान परिवार की छोटी सी मदद करके अपना भारतीय होने का फर्ज निभाएंगे। जिस माँ ने अपना बेटा हमारी सुरक्षा के लिए वतन के हवाले कर दिया तो क्या हम उस माँ बलिदानी परिवार की सुरक्षा में कुछ फर्ज नही निभा सकते?
मेरे छोटे भाई नरेन्द्र चौहान और गोपाल चौहान से मुझे ये जानकारी मिली की रोहडू शहर की जनता शहीद तिलकराज के परिवार के लिए आंतरिक राहत देने के लिए जुटी है और शीघ्र ही उनके लोग अमर शहीद के परिजनों को राहत राशि सौंप देंगे। ये एक ऐसा इतिहास लिखा जा रहा है एक ऐसा आगाज किया जा रहा है कि कभी भी किसी शहीद परिवार का मनोबल ना टूटे और कभी भी किसी शहीद का परिवार रोता बिलखता ना छूटे।
अगर कोई हमारी इफाजत में अपना बेटा, पति, भाई न्योछावर कर सकता है तो हम पर भी उनका कर्ज है कि हम उनके परिवार के प्रति अपना फर्ज निभायें और वतन की माटी का कुछ कर्ज चुकायें। जब वो सरहद पर जागते हैं तभी हम सकून की नींद सोते हैं.. जब वो शहीद होते हैं तो हम क्यों खामोश हो जाते हैं?
जी हां दोस्तों हम तभी उनकी शहादत को सलाम दे पाएंगे जब उनकी परिवार की इफाजत में कुछ वित्तीय सहयोग कर पायेंगे। भूख रोटी मांगती है तन कपड़ा माँगता है, बच्चा दूध माँगता है ये वास्तविकता है। सलाम से पेट नहीं भरता, तिरंगे से परिवार का तन नहीं ढकता। आंसुओं से दूध नहीं निकलता।
जी हां वास्तविकता से परिचय करवा रहा हूँ। सोये हुओं को जगा रहा हूँ। हमारा फर्ज है कि देश के इन रणबांकुरों को बेफिक्र कर दें। ताकि वो परिवारों की ज़िम्मेवारी हमपर छोड़कर देश की सुरक्षा में बेखौफ निकल चलें। जो आगाज आज रोहडू शहर से हुआ है उस आगाज को देश की हर घर दहलीज तक ले जाना ही सच्चे वतनपरस्त होने की पहचान है। अगर 70% हिन्दोस्तानी हर दिन एक रुपया भी अमर शहीद के नाम से रख दें तो एक दिन में 100 करोड़ कितना आसान है और कितना बड़ा इसका अंजाम है?
आज एक आग्रह करना चाहूंगा आप सबसे कि जब लड़ाई होती है तो सैनिको की जान-और सैनिक सामग्री का नुकसान होता और आज वो समय फिर आता लग रहा है। उस नुकसान की भरपाई महंगाई और परिवारों की बेबसी को जन्म देती है तो कृपया आज से अपना आंशिक अनुदान सिर्फ एक रुपया हर दिन अपने घर की गोलक में या गाँव कस्बे, गली, शहर में एक कमेटी बनाकर joint बैकं account में रखिये और समय आने पर देशहित में इस्तेमाल कीजिये।
दिल से नमन करता हूँ व्यापार मण्डल रोहडू और संजीवनी सहारा समिति रोहडू के सभी सदस्यों को जिन्होंने वतनपरस्ती का एक लाजवाब उदाहरण हिमाचल प्रदेश के सामने ही नहीं बल्कि पूरे देश के सामने रखा जिससे हमारे सैनिको और सैनिक परिवारों को आत्मबल और ज़िदगी का हल मिलेगा।
सरहदें लहू मांगती हैं ऐ मेरे वतनपरस्त, काफिर फरेब से कत्ल हैं करते, फिर भी बेखौफ़ सीना तानकर इफाजत वतन की करता हूं मैं,
मैं भी लाडला हूँ मेरी माँ का आँचल की छाँव छोड़ सरहद पर खड़ा हूँ,
तेरी इफाजत में हूँ कर रहा तू भी कम से कम मेरी माँ-घर संसार की इफाजत तो कर ले?
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं।