शायद 1918 की अपेक्षा गांधी जी की जरूरत 2018 में ज्यादा है!

BYSALMAN ALI

आज हम एक ऐसे महान पुरुष की 150वीं जयंती मना रहे हैं जिसके विचारों से विश्व की पिछली तीन पीढ़ियों ने बहुत कुछ सीखा और आने वाली पीढ़ियां बहुत कुछ सीखेंगी। एक ओर गांधी जी की 150वीं जयंती पर दिल्ली में स्वच्छता सम्मेलन बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है जिसमें विश्व के कई देश शिरकत कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर उसी समय देश का अन्नदाता अपनी मांगों को लेकर पैदल ही दिल्ली की ओर कूच कर रहा है।

हम दिल्ली के पांच सितारा होटल में बोतल बंद पानी के साथ कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं तो दूसरी ओर देश के कई हिस्सों में लोग खाना न मिलने के कारण तड़प-तड़प कर मर रहे हैं। हम स्वच्छता की बात वहां से कर रहे हैं जहां के चपरासी की भी 30 हजार रुपये सैलरी है। वहीं दूसरी ओर इसी 30 हजार रुपये के कर्ज में दबा किसान अपनी जान को त्यागने पर बेबस है।

आज जब हम 21वीं सदी के साल 2018 में जी रहे हैं तब 1918 के उस गांधी की उस समय से ज्यादा जरूरत आ पड़ी है। इसका कारण हम, आप और लोकतंत्र के नाम पर बनी सरकार ही है। 1918 से 2018 आने में एक पूरी सदी का नाम बदल जाता है लेकिन समस्याएं जब उससे भी बेबत्तर हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति के कार्यों का जिक्र करना लाज़मी हो जाता है जिसने कोर्ट पैंट की आरामदायक जिंदगी को एक धोती में समेट दिया।

आज जब किसान मर रहा है, मजदूर परेशान है और पूंजीपति मालामाल हो रहा है तब फर्क क्या है 2018 और 1918 में? शायद घरेलू शासन का? और जब घरेलू शासन में भी किसान को अर्धनग्न अवस्था में दिल्ली के जंतर-मंतर पर आंदोलन करना पड़े तो जरूरी है हमको सौ साल पीछे चलकर उस व्यक्तित्व के बारे में जानने की जिसने जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को आत्मसात किया।

जब 1915 में गांधी जी अफ्रीका से भारत आए तो उनके पास कई विकल्प थे जिनमें वह किसी के साथ जुड़ सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने निर्णय लिया कि वह समूचे देश का भ्रमण करेंगे तथा जनसामान्य की यथास्थिति का स्वयं अवलोकन करेंगे।

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यही कारण था कि जब गांधी जी ने 1917 में चंपारण सत्याग्रह शुरू किया तो यह उसमें सफल रहे और अगले ही साल अहमदाबाद मिल हड़ताल(1918) जो कि प्रथम भूख हड़ताल थी, के जरिए अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर कर दिया। परंतु आज के समय क्या ऐसी कामना की जा सकती है कि कोई नेता सिर्फ जनता की समस्याओं को जानने के लिए पूरे देश का भ्रमण करे? शायद आपका भी उत्तर नहीं ही होगा।

और यदि करेगा भी तो वह कहीं ना कहीं राजनीतिक रूप से इस प्रकार बंधा होगा कि वह चाहेगा जैसे ही यह काम खत्म हो वैसे ही कुर्सी उसको मिल जाए। यहां पर भी सवाल कुर्सी का है जनता तो बस एक प्यान्दे जैसी है।

2018 के धर्म के पहलू ने भारत में शायद 1947 से भी ज्यादा साम्प्रदायिक रूप ले चुका है। जब राजस्थान में पहलू खान को महज इस बात पर मार दिया जाता है कि वह गाय लेकर जा रहा था, अखलाक को इस शक में मार दिया जाता है कि उसके घर में गाय का मांस है कश्मीर की उस बच्ची जिसके साथ रेप होता है उसके कातिलों का सपोर्ट इसलिए किया जाता है कि वे हिन्दू हैं तब गांधी जी की देश को बहुत ही ज्यादा जरूरत है।

क्योंकि गांधी जी का राम मानवता को सर्वोपरि रखता है। गांधी जी कहते थे कि बिना राम के हम अपनी कल्पना भी नहीं कर सकते और यह भी नहीं कि मैं किसी दूसरे धर्म की बुराई करने लगूं।

और आज जब पूरी बहस ही इसी मुद्दे पर हो रही है कि किसका धर्म अच्छा है किसका बुरा तब जरूरत तो है गांधी की। और जब किसानों पर प्रशासन महज इस बात से आंसू गैस के गोले दागने लगे कि वह अपनी मांगों को लेकर शांति मार्च कर रहे हैं तब तो और ज्यादा।

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शायद गांधी जी आज फिर वही नारा देते जो बरसों पहले दिया था कि देश की रेत से हम कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोल खड़ा कर देंगे। लेकिन अब कौन दे सकता है किसके अंदर इतनी हिम्मत अब तो अमित शाह ने बोल भी दिया है कि अगले 50 साल तक उनको शासन करना है।

आज जब व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से लेकर आईटी सेल वाले किशोरों का मष्तिष्क बदलने में दिन रात लगे हैं तब उनको कौन समझायेगा, शायद गांधी जी लेकिन अफसोस समझाना दूर की बात यहाँ स्वयं उन्ही को गाली दी जा रही है। अच्छा हुआ गांधी जी 2018 में नहीं हैं वरना उनको भी लोग न जाने क्या क्या बना देते।

एक सज्जन से मेरी मुलाकात हुई , वह बड़े ही ताव में गांधी जी को गाली दिए पड़े थे। गांधी जी ये…….गांधी जी वो…..। हमने पूछा भाई साहब क्या हुआ। तो बोले गांधी जी की वजह से भगत सिंह को फांसी हुई, इस बुड्ढे की वजह से पूरा देश बर्बाद हो गया।

हमने पूछा गांधी जी के बारे में क्या जानते हो? अब वह बिल्कुल चुपचाप खड़े हो गए, हमने कहा बोलिये भाई। तो बोले तुमसे ज्यादा जनता हूँ।
हमने कहा और भगत सिंह।…..फिर चुप।

यह वार्तालाप आज हर जगह मिल जाएगी,,,चाय के नुक्कड़ से नाई की दुकान तक। लेकिन सवाल है क्यों?
इसका जवाब आपको स्वयं अपने आपको देना है।
कहीं आप भी शिकार तो नहीं अफवाहों का??

“सलमान के साथ “ब्लॉग से साभार

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