BY–THE FIRE TEAM
- औसत तीन रुपया है बिहार में मरीज का सरकारी बजट
बिहार में बच्चों की मौत का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। 19 जून तक प्राप्त आंकड़े 151 बच्चों की मौत की पुष्टि कर रहे हैं, यह सरकारी आंकड़ा है। मीडिया इससे कहीं ज्यादा दिखा रही है।
बच्चों की मौत पर राजनीति भी शुरु हो गई है। आरोप प्रत्यारोप का दौर चालू है। बिहार के बीजेपी के ग़द्दावर नेता सुशील मोदी ने राबड़ी देवी से प्रश्न करना शुरू कर दिया है कि वो बताएं उनके समय में क्या हालत थी। हालांकि करीब 15 साल से बीजेपी-जदयू की सरकार है बिहार में।
सुशील मोदी को यह समझना चाहिए कि राबड़ी देवी के समय के हालात से उबरने के लिए ही जनता ने उनकी और नीतीश की पार्टी को चुना है। हर साल अगर ऐसी अव्यवस्था फैल रही है तो इसका जिम्मेदार जेल में बैठे लालू को माना जायेगा तब तो समस्या और विकराल हो जाएगी क्योंकि जेल में बैठ के वो क्या कर पाएंगे? कम से कम लालू को जेल से तो निकाल देते।
खैर बात करते हैं बिहार के स्वास्थ्य सेवाओं की तो यह देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहद खराब स्थिति में है।
बिहार में एक आम आदमी के इलाज के लिए सरकार हर दिन महज 3 रुपया खर्च करती है। यह आंकड़ा बेहत शर्मनाक है, पास के मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों की तुलना में।
बिहार में डॉक्टरों की भारी किल्लत है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार यहाँ 28391 की आबादी पर महज एक सरकारी डाक्टर है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैमाने के अनुसार यह आंकड़ा प्रति 1000 पर एक डॉक्टर होना चाहिए।
उत्तर प्रदेश की भी स्थिति काफी खराब है यहाँ 19962 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। वहीं, झारखंड में 18518, मध्य प्रदेश में 16996, छत्तीसगढ़ में 15916 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है।
कुछ पत्रकार बिहार में जाकर आईसीयू के वार्ड में डॉक्टर पर चिल्ला रहे हैं। इन पत्रकारों के अंदर शायद हिम्मत नहीं है कि सरकार से प्रश्न कर सकें। खैर टीआरपी खूब मिली उस महिला पत्रकार को लेकिन लोगों ने लताड़ भी खूब लगाई।
भारत तेजी से आहे बढ़ रहा है लेकिन स्वास्थ्य पर कुल जीडीपी का महज 1.3 फीसदी हिस्सा ही खर्च करता है। यह आंकड़ा मालदीव(9.4%), थाईलैंड(2.9%), भूटान(2.5%), श्रीलंका(1.6%) से भी कम है।