क्या प्रधानमंत्री उन कंपनियों के नाम ले सकते हैं जिन्होंने भारत की जनता के जमा पैसे से सस्ती दरों पर लोन लिया और उस लोन का दस लाख करोड़ बैंकों को वापस नहीं किया? क्या वित्त मंत्री उन कंपनियों के नाम ले सकते हैं? क्या अमित शाह नाम ले सकते हैं? क्या कांग्रेस से राहुल गांधी, चिदंबरम नाम ले सकते हैं? जब ये दोनों नेता लोन लेकर भागने वालों के नाम नहीं ले सकते हैं तो फिर ये बहस हो किस चीज़ की रही है?
जनता को समझना चाहिए कि वह एनपीए के विवाद में उसी तरह से उल्लू बनाई जा रही है जिस तरह से हिन्दू मुस्लिम विवाद के ज़रिए बनाई जाती है। अगर यह राजनीतिक विवाद किसी भी तरह से आर्थिक अपराध का है तो दस लाख करोड़ लेकर फरार अपराधियों के नाम लिए जाने चाहिए कि नहीं चाहिए। किसके राज में लोन दिया गया यह विवाद है, किसे लोन दिया गया इसका नाम ही नहीं है।
After two years of silence, I have decided to issue a comprehensive press statement … 1/5 pic.twitter.com/klbeh4rF8G
— Vijay Mallya (@TheVijayMallya) June 26, 2018
आज कल हर दूसरा नेता ख़ुद को मज़बूत नेता होने का दावा करता है तो यह बताने में क्या उसे डर लगता है कि वे कौन से लोग हैं, कौन सी कंपनियां हैं जिन्होंने बैंकों के कई लाख करोड़ लोन लेकर नहीं चुकाए। क्या हमारे राजनीतिक दलों ने इन कारपोरेट की दासता स्वीकार कर ली है? तो फिर आप महान भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिए इन दलों पर कैसे भरोसा कर सकते हैं? क्या यह शर्मनाक नहीं है?
भारतीय रिज़र्व बैंक क्यों नहीं बता देता है कि लोन डिफाल्टर कौन कौन हैं? रिज़र्व बैंक ने क्यों नाम ज़ाहिर करने से मना किया जबकि बैंकों में इसी रिज़र्व बैंक का आदेश टंगा होता है कि किसी भी बकायादार का नाम अख़बार में फोटो सहित छपवाया जा सकता है। आप ख़ुद जाकर बैंकों में देख लें और नहीं तो ये तस्वीर देख लें जो मैं नीचे लगा रहा हूं। क्या रिज़र्व बैंक की भी घिग्गी बंध गई हैं?
रफाल मामले में राहुल गांधी ने अंबानी और उनकी कंपनी का नाम लिया। ऐसा बहुत कम होता है कि नेता घराना का दर्जा प्राप्त कर चुके कंपनियों के मालिकों के नाम लेते हैं। मगर यह अपवाद है। ऐसा करने पर वह कंपनी एक राजनीतिक दल पर 5000 करोड़ का मानहानि कर देती है। मानहानि चुप कराने का नया हथियार है। पर प्रधानमंत्री को किस बात का डर है। अमित शाह ने तो कहा है कि 50 साल भाजपा का राज रहेगा। फिर दोनों क्यों नहीं पूरा चार्ट जनता के सामने रखते हैं कि कौन सी कंपनी, कौन से मालिक, कितना लोन, कितना एनपीए, किसके टाइम में हुआ।
सरकारी बैंकों के दस लाख करोड़ नहीं चुकाए गए हैं। इसी को नान परफार्मिंग असेट कहा जाता है। 6 अप्रैल 2018 को लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने बताया था कि मार्च 2015 में बैंकों का एनपीए 2 लाख 67 हज़ार करोड़ था। 30 जून 2017 को 6 लाख 89 हज़ार करोड़ हो गया। दो साल में चार लाख करोड़ से ज़्यादा बढ़ गया। यह किसकी सरकार में हुआ? कितना लोन यूपीए में दिया गया और कितना लोन मोदी सरकार के समय दिया गया? क्या यह जानने का आपको हक है कि नहीं है।
एक बैंकर ने बताया है कि जब कोई लोन एनपीए घोषित हो जाता है तो उस पर ब्याज़ नहीं लगता है। इसलिए एनपीए की जो नई राशि आप देखते हैं वो नए लोन की होती है। अगर यह सही है तो क्या मोदी सरार के समय एनपीए ज़्यादा हुआ? क्या आप यह जानते हैं कि यूपीए के समय जो कारपोरेट लोन नहीं चुका पा रहा था, उसे एनडीए के समय फिर से लोन मिला या लोन मिलना बंद हो गया? यह सब जाने बग़ैर आप एनपीए को लेकर बहस क्या कर रहे हैं।
है दम तो राजनीतिक दल के कार्यकर्ता अपने पोस्टरों में उन कंपनियों और उनके मालिकों का फोटो लगाकर गली गली में घूम कर दिखाएं जिन्होंने जनता के पैसे से लोन लेकर नहीं चुकाए। पोस्टर फाड़ना और सभा-सेमिनार नहीं होने देना इस तरह की हरकतें आसान हैं, मगर वे ऐसा नहीं कर पाएंगे।
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विजय माल्या आज न कल भारत आ जाएंगे। उन्हें लेकर प्रतीक बना दिया जाएगा कि बड़ा भारी काम कर दिखाया। लेकिन भागे तो और भी हैं। जतिन मेहता तो 6712 करोड़ का लोन लेकर भागा है। वो कब आएगा? ललित मोदी का क्या हुआ। आज के इंडियन एक्सप्रेस में ख़ुश्बू नारायण की ख़बर छपी है। नीरव मोदी भागने से तीन महीने पहले वानोतू नाम के देश की नागरिकता लेने का प्रयास कर रहा था। यह एक छोटा सा द्वीप है। बताइये देश छोड़ कर ये सब द्वीप जा रहे हैं और नेता लोग हम जनता को दीपुआ बना रहे हैं। मेहुल चौकसी एंटीगुआ का नागरिक हो गया। ललित मोदी की स्टोरी तो ग़ायब ही हो गई।
मार्च 2018 में शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी के प्रेस कांफ्रेंस की ख़बर हिन्दू बिजनेसलाइन में छपी है। मोदी सरकार के मंत्री हरदीप पुरी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने मेहता को भागने में मदद की। मेहता को 2010 से 2013 के बीच किस बैंक ने कब और कितना लोन दिया इसका पूरा ब्यौरा दिया है। जबकि वे वित्त मंत्री नहीं, शहरी विकास मंत्री हैं। उनके अनुसार जयेश मेहता 10 नवंबर 2012 को ही सेंट किट्स और नेविस की नागरिकता ले चुका था। दिसंबर 2014 में जतिन मेहता ने सिंगापुर में भारतीय उच्चायोग के सामने भारत का पासपोर्ट सरेंडर कर दिया।
अगर जतिन मेहता को भगाने में कांग्रेस की सरकार ने मदद की तो ललित मोदी, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्य क्या बिना मदद के 13500, 9000 करोड़ का लोन गटकर भाग गए? दूसरी बात, इस प्रेस कांफ्रेंस से यह भी साबित होता है कि जब सरकार को सुविधा होती है तब वह एक दो बकायदारों के नाम, लोन की राशि बताती है। कब लोन दिया गया बताती है। तो फिर भारत के प्रधानमंत्री इन कंपनियों और इनके मालिकों के नाम क्यों नहीं ले रहे हैं, अमित शाह और राहुल गांधी क्यों नहीं ले रहे हैं? अगर यह बहस बग़ैर किसी नाम के, किसी डिटेल के हो रही है तो आप टीवी बंद कर दें। अख़बार पलट कर रख दें।
(यह लेख मूलतः रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है )