मेरा नाम, मेरा सवाल अभियान की हुई शुरूआत


BYवीरेंद्र कुमार गुप्ता


समाज, सम्मान, सामाजिक न्याय और संविधान की आवाज़ बनेगा अभियान

संविधान पर हमला जनता पर हमला


लखनऊ:नाम बदले जाने की सियासत की रोशनी में मेरा नाम, मेरा सवाल अभियान की शुरूआत घंटाघर लखनऊ से हुई. यह अभियान समाज, सम्मान, सामाजिक न्याय और संविधान पर केंद्रित है. इंसानी बिरादरी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के तहत आम लोगों के साथ व्यापक जन संवाद हुआ.

वरिष्ठ राजनैतिक कार्यकर्ता शकील कुरैशी ने कहा कि धर्म की राजनीति कर रही मोदी-योगी की सरकार राम मंदिर निर्माण का राग अलाप रही है. उसे बताना चाहिए कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले को आस्था के नाम पर दरकिनार कैसे किया जा सकता है. सरकार संविधान की धज्जियां उड़ाने पर आमादा है.

बड़ी कुर्बानियों और कड़ी तपस्या के बाद देश आजाद हुआ और संविधान ने धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे का निर्माण किया. जन विरोधी सरकार इस ढांचे को ध्वस्त करने में लगी है. यह देश पर हमला है. जनता को इसे रोकने के लिए कमर कसनी होगी.

निजी कंपनी में कार्यरत मलिक शाहबाज ने कहा कि देश में आम लोगों की सुरक्षा खतरे में है. सबसे ज्यादा असुरक्षित महिलाएं और बच्चियां हैं. लेकिन सुरक्षा का सवाल सरकार की प्राथमिकता से बाहर है.

यही हाल रोजगार के सवाल का भी है. इन जरूरी मुद्दों पर सरकारी चुप्पी खतरनाक है. उसे तो जगहों के नाम बदलने की पड़ी है. इसके खिलाफ लोगों को सामने आने होगा.

अभियान के दौरान निजी बैंक में कार्यरत अभिनव सिंह ने कहा कि नोटबंदी ने गरीब आदमी समेत छोटे-मंझोले व्यापारियों तक को तबाह करने का काम किया. विकास में निवेश के नाम पर मोदी ने धुआंधार विदेश यात्राएं कीं लेकिन देश की जनता को उसका लाभ नहीं मिला. भला हुआ तो केवल कारपोरेट का.

खेती-किसानी चौपट हो गयी और किसान की मेहनत मिट्टी के मोल हो गयी. राजनीति में व्यवस्था नहीं, व्यवस्था में राजनीति हावी हो गयी.

जरी के काम से जुड़े मोहम्मद शब्बू खान ने पूछा कि शहरों के नाम बदलने से क्या होगा. जरी का दो तिहाई से अधिक काम बंद हो गया. इस धंधे से जुड़े सैकड़ों कारीगर बेराजगार हो गए. यह कैसा विकास है जो लोगों से उनकी रोजी-रोटी छीन ले.

चिकन कारीगर शिवकुमार ने तीखे लहजे में कहा कि बस विकास के नारे उछाले जा रहे हैं और उसकी आड़ में रोजगार छीना जा रहा है. कारीगर की हमारी पहचान गायब हो गयी. सरकार चाहे तो हमारा नाम भी बदल डाले.

पटरी दूकानदार भूपेंद्र ने कहा कि किसी का उद्धार नहीं हो रहा. केवल देश की लुटिया डुबाने का काम हो रहा है. यह झूठी और पाखंडी सरकार है. उसे खदेड़ना ही होगा.

हसनैन अब्बास ने कहा कि जगहों के नाम से क्या दिक्कत है. जहां का जो नाम है, उसे वैसा ही रहने दिया जाना चाहिए. जो नाम बचपन से सुनते आये हैं, उसकी जगह नया नाम जुबान पर कैसे चढ़ेगा. नाम बदलना तुगलकी दिमाग का काम है.

इंसानी बिरादरी से जुड़े उन्नाव के किसान मुर्तजा हैदर ने कहा कि नाम बदल से आपाधापी मचेगी. करोड़ों रूपये स्वाहा होंगे. इससे जनता का क्या भला होगा. इस फिजूलखर्ची का बोझ उसे ही उठाना होगा. अजीब दौर है कि अंग्रेजों के मुखबिर और चाटुकार देशभक्ति का सार्टीफिकेट बांट रहे हैं. यह देश का और हमारा दुर्भाग्य है.

इंसानी बिरादरी के खिदमतगार वीरेंद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि स्वच्छता के नाम पर बड़े-बड़े सरकारी कार्यक्रम हैं, भाषणबाजी और उपदेश हैं. इसके लिए पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है. लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हो रहा. गरीब बस्तियां गंदगी और उससे पैदा रोग-बीमारी से बेहाल हैं. सरकार को उनकी सुध नहीं. यह गरीबों के साथ भेदभाव है. सोचने की बात है कि शहरों का नाम बदल जाने से गरीबों को क्या मिलेगा.

जन संवाद में गुफरान चौधरी, मोहम्मद सिकंदर, आजाद शेखर, सूफियान, आशुतोष सिंह, आदिल, गुंजन, राजीव यादव, सृजनयोगी आदियोग शामिल थे.


द्वारावी-रेंद्र कुमार गुप्ताखि (दमतगार- इंसानी बिरादरी)

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