BY-THE FIRE TEAM
लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता तथा बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधती रॉय ने भारत में भीड़तंत्र के बढ़ते दबदबे को लेकर भय प्रकट किया और कहा कि यह देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए यह एक बहुत बड़ा खतरा है.
वर्ष 1997 में अपने पहले उपन्यास ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ को लेकर विश्व के इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीतने वाली रॉय को उनके लेखन को लेकर कानूनी रुप से अदालत में घसीटा गया था.
उन्होंने नूर इनायत खान स्मारक व्याख्यान देते हुए कहा, ‘लगाम कसने का काम अब भीड़ के जिम्मे है. हमारे यहां कई समूह हैं जो अपने ढंग से अपनी पहचान पेश करते हैं, अपना प्रवक्ता नियुक्त करते हैं,
अपना इतिहास झुठलाते हैं और फिर सिनेमाघरों को जलाना, लोगों पर हमला करना, किताबें जलाना और लोगों की हत्या करना शुरू कर देते हैं.’
दिल्ली की इस लेखिका ने कहा कि साहित्य और कला के अन्य रूपों पर भीड़ की हिंसा और हमले उन अदालती मामलों के चक्र से ज्यादा भयावह है, जिससे वह गुजरी हैं.
आपको बता दें कि नूर इनायत खान द्वितीय विश्व युद्ध में एक अहम किरदार थीं. भारतीय मूल की ब्रिटिश गुप्तचर थीं, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र देशों के लिए जासूसी की.
ब्रिटेन के स्पेशल ऑपरेशंस एक्जीक्यूटिव के रूप में प्रशिक्षित नूर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांस के नाज़ी अधिकार क्षेत्र में जाने वाली पहली महिला वायरलेस ऑपरेटर थीं.
जर्मनी द्वारा गिरफ़्तार कर यातनायें दिए जाने और गोली मारकर उनकी हत्या किए जाने से पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वे फ्रांस में एक गुप्त अभियान के अंतर्गत नर्स का काम करती थीं.
फ्रांस में उनके इस कार्यकाल तथा उसके बाद आगामी 10 महीनों तक उन्हें यातनायें दी गईं और पूछताछ की गयी, किन्तु पूछताछ करने वाली नाज़ी जर्मनी की ख़ुफिया पुलिस गेस्टापो द्वारा उनसे कोई राज़ नहीं उगलवाया जा सका.
उनके बलिदान और साहस की गाथा युनाइटेड किंगडम और फ्रांस में प्रचलित है.उनकी सेवाओं के लिए उन्हें युनाइटेड किंगडम एवं अन्य राष्ट्रमंडल देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मान जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया गया.
उनकी स्मृति में लंदन के गॉर्डन स्क्वेयर में स्मारक बनाया गया है, जो इंग्लैण्ड में किसी मुसलमान को समर्पित और किसी एशियाई महिला के सम्मान में इस तरह का पहला स्मारक है.
आपको बताते चलें कि विगत भीमा कोरेगाँव मामले में जिस तरह से जानेमाने नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और उनके घरों की तलाशी के सिलसिले में कई शहरों में छापेमारी हुई वह ‘बिल्कुल डराने वाला’ था.
वहीं, कुछ अन्य ने इस सम्बन्ध में कहा कि यह ‘एक तरह से आपातकाल की घोषणा’ है. छापेमारी के बाद जानीमानी लेखिका ने कहा कि जो कुछ हो रहा है, वह पूरी तरह खतरनाक है.
अपनी बात को बढ़ते हुए रॉय ने कहा कि वकीलों, कवियों, लेखकों, दलित अधिकार कार्यकर्ताओं एवं बुद्धिजीवियों को ऊटपटांग आरोपों में गिरफ्तार किया जा रहा है जबकि भीड़ की शक्ल लेकर हत्या करने वाले, दिनदहाड़े लोगों को धमकाने और उनकी हत्या करने वाले लोग खुला घूम रहे हैं
यह साफ बताता है कि भारत किधर जा रहा है.’ उन्होंने कहा कि हत्यारों को सम्मानित और संरक्षित किया जा रहा है जबकि न्याय के लिए बोलने वालों या हिंदू बहुसंख्यकवाद के खिलाफ बोलने वालों को अपराधी बनाया जा रहा है. अरुंधति ने कहा, ‘जो कुछ हो रहा है वह निश्चित तौर पर खतरनाक और निराशाजनक है. यह निश्चित तौर पर लोकतान्त्रिक मूल्यों के विरुद्ध है.