BY-THE FIRE TEAM
उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने शनिवार को कहा कि राफेल लड़ाकू विमान करार के मामले में वित्तीय भ्रष्टाचार और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता दोनों पहलू हैं जबकि बोफोर्स कांड में ऐसा नहीं था.
भूषण ने यहां एक सम्मेलन में कहा, ‘‘राफेल करार में न केवल भ्रष्टाचार हुआ, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता भी हुआ. बोफोर्स कांड 64 करोड़ रुपए के कमीशन का मामला था, लेकिन उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौते का पहलू नहीं था.”
जबकि राफेल करार में 20,000 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी समझौता किया गया जब उनसे पूछा गया था कि क्या राफेल मुद्दे की तुलना बोफोर्स कांड से की जा सकती है.?
Wow! Rafale money trail is coming out. Dassault bought shares of loss making, zero revenue, Reliance Airport developers Limited for 1200 rupees per share, effectively giving it a bounty of 284 cr, soon after Modi's Rafale deal with Dassault. https://t.co/VgAUm2AnyO
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) November 1, 2018
इससे पहले प्रशांत भूषण ने दावा किया था कि राफेल लड़ाकू विमान सौदा ‘‘इतना बड़ा घोटाला है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते”.
उन्होंने आरोप लगाया था कि ऑफसेट करार के जरिये अनिल अम्बानी के रिलायंस समूह को ‘‘दलाली (कमीशन)” के रूप में 21,000 करोड़ रुपये मिले. उन्होंने इस सौदे से जुड़ी कथित दलाली की 1980 के दशक के बोफोर्स तोप सौदे में दी गयी दलाली से तुलना की.
अंबानी ने इससे पहले आरोप से इनकार किया था. भूषण ने आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने केवल सौदे में अनिल अम्बानी की कंपनी को जगह देने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से ‘समझौता’ किया, भारतीय वायु सेना को ‘बेबस’ छोड़ दिया.
उन्होंने कहा, ‘‘राफेल सौदा इतना बड़ा घोटाला है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. बोफोर्स 64 करोड़ रुपये का घोटाला था जिसमें चार प्रतिशत कमीशन दिया गया था. इस घोटाले में कमीशन कम से कम 30 प्रतिशत है.”
बोफोर्स घोटाला क्या था ?
सन् 1987 में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी.
उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया. इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता हैं.
यह ऐसा मसला है, जिस पर 1989 में राजीव गांधी की सरकार चली गयी थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह हीरो के तौर पर उभरे थे.
यह अलग बात है कि उनकी सरकार भी बोफोर्स दलाली का सच सामने लाने में विफल रही थी. बाद में भी समय-समय पर यह मुद्दा देश में राजनीतिक तूफान लाता रहा.
इस प्रकरण के सामने-आते ही जिस तरह की राजनीतिक हलचल शुरू हुई, उससे साफ है कि बोफोर्स दलाली आज भी भारत में बड़ा राजनीतिक मुद्दा है.