न्यायपालिका में फैले भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र


BY-THE FIRE TEAM


भले ही वर्तमान बीजेपी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में देश से भ्रष्टाचार खत्म करने का वादा किया था जो अभी तक पूरा नहीं कर सकी है जिसके कारण अभी भी विभिन्न विभागों में बहुत सुधार की आवश्यकता है.

भ्रष्टाचार का आलम यह है कि न्यायपालिका जैसी विश्वसनीय संस्था भी इसके शिकंजे में आ चुकी है. शायद यही वजह है कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने खुद प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसकी जानकारी दी है.

तथा बताया है कि इस समय न्याय पालिका में शीर्ष स्तर पर गहराई से भ्रष्टाचार की समस्या व्याप्त हो चुकी है जिसपर तत्काल कार्यवाही करने की जरूरत है.

आपको बता दें कि प्रधान न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश  एसएन शुक्ल को बहुत पहले से लगभग 18 माह से उनको हटाने की बात कर रहे हैं.

न्यायाधीश ने इस पत्र में लिखा है कि न्यायमूर्ति शुक्ला पर गंभीर प्रकृति के आरोप है और ऐसी स्थिति में उन्हें न्यायिक कार्य की अनुमति नहीं दी जा सकती है. अतः अग्रिम कार्रवाई के लिये फैसला लेने में ही भलाई है.

हालाँकि उच्चतम और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को कदाचार का दोषी पाए जाने की अवस्था में संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख किया गया है तथा इसे राष्ट्रपति की सहमति से ही दोनों सदनों में बहुमत का प्रस्ताव पारित होने पर हटाया जाना संभव है.

मिली जानकारी के मुताबिक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक खंडपीठ की अध्यक्षता करते हुये न्यायमूर्ति शुक्ला ने निजी मेडिकल कालेजों में 2017-18 के शैक्षणिक सत्र में छात्रों को प्रवेश देने पर प्रतिबंध लगाने संबंधी प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के आदेश का कथित रूप से उल्लंघन किया.

यद्यपि किसी न्यायाधीश को उसके पद से हटाने की माँग का यह मामला कोई नया नहीं है इनसे पहले उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी रामास्वामी रहे जिन्हे मई, 1993 में लोकसभा में कांग्रेस सदस्यों के सदन में मौजूद रहने के बावजूद मतदान से अनुपस्थित रहने की वजह से उन्हें पद से हटाने का प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था.

और दूसरे में कोलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन को पद से हटाने के लिये अगस्त, 2011 में राज्य सभा से प्रस्ताव पारित होने के बाद लोकसभा में इस पर चर्चा से पहले ही न्यायाधीश द्वारा पद से इस्तीफा  देने की वजह से यह भी परवान नहीं चढ़ सका था.

अब देखना यह है कि न्यायमूर्ति शुक्ला के केस में संसदीय समिति गठित की जाती है अथवा कौन सा कदम उठाकर कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी.

 

 

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