सूने हो गए पारम्परिक बाज़ार लेकिन सज गईं डिजिटल दुकानें

BY-THE FIRE TEAM
त्योहारों का मौसम एक तरफ जहां नई ऊर्जा और उत्साह लेकर आता है वही बाजारों की भी रौनक को कई गुना बढ़ा देता है. किंतु जैसे जैसे खरीदारी शक्ति लोगों की बढ़ती जा रही है वैसे वैसे अब बाजार का रूप भी अपने अन्दर बदलाव लाता जा रहा है.
इन्हीं बाजारों का नाम है –डिजिटल दुकाने जहां किसी भी व्यक्ति को अब आने और जाने की जरूरत नहीं है. बल्कि वह केवल अपने मोबाइल, लैपटॉप पर ही मनपसंद चीजों को चुनकर मंगा सकता है. अब केवल ऑर्डर करने की जरूरत रह गई है.
ऐसे बाजारों को प्रोत्साहन देने में फ्लिपकार्ट ,अमेजॉन, स्नैपडील इत्यादि कंपनियों ने अहम भूमिका निभाई है बल्कि यूं कहें कि इनमें लगातार इजाफा ही होता जा रहा है.
वैसे तो पूरे साल ही ये कंपनियां तरह-तरह के प्रस्तावों के ज़रिए आपको लुभाने में जुटी रहती हैं. अब इन सब से ग्राहकों को फायदा हुआ तो ई-कॉमर्स का कुल कारोबार भी बढ़ा और आगे भी तेज़ी से बढ़ने के आसार हैं.
एक ही जगह पर मोबाइल, टीवी, वाशिंग मशीन ,पर्दे ,कपड़े, पूजा की सामग्री, देवी- देवताओं की मूर्तियां आदि के अतिरिक्त अन्य सारी चीजें जो आपकी जरूरत रखती हैं, अब उन्हें छुट के साथ बड़ी सहजता से प्राप्त किया जा सकता है.

यह बाजार यहीं नहीं रुका है बल्कि खाने-पीने की वस्तुएं भी इनसे अछुती नहीं रहीं जैसे पिज्जा ,बर्गर, इडली, डोसा, मोमोस, हॉट डॉक और अन्य भी कई खाद्य वस्तुएं आपकी पहुँच के करीब हैं.

एक बात और, खास बैंकों के डेबिट या क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करेंगे तो कैश बैक यानी चुकाई गई कुल कीमत का एक हिस्सा वापस भी हो जाएगा. है ना मज़े?

आपके तो मज़े हैं, लेकिन ईट-पत्थर से बनी दुकान में बैठे दुकानदारों की पेशानी पर बल पड़ रहे हैं. साल में यही तो मौका होता है ज़्यादा कमाई का.पहले से ही आपस में घमासान है,

अब बीते कुछ सालों से डिजिटल दुकानों ने मुसीबतें और बढ़ा दी हैं. तकनीक की भाषा में कहें तो ये ऑनलाइन बनाम ऑफ़लाइन की लड़ाई है.

वैसे ये कहा जाता है कि भारतीय ग्राहक ख़रीदारी का अनुभव सामान छू कर, कई दुकानों का चक्कर लगाकर, विंडो शॉपिंग के मज़े लेकर और कुछ मोलभाव कर सामान खऱीदना चाहते हैं. किन्तु इन बाजारों के उभरने से यह मजा समाप्त हो गया है

इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की मानें तो ई-कॉमर्स बाज़ार का आकार 2017 के 38.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2026 तक 200 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.

केवल खुदरा बिक्री की बात करें तो इस साल ये 31 फीसदी की तेज़ी के साथ 32.7 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. डिजिटल दुकान से होने वाली खरीद का करीब आधा (48 फीसदी) इलेक्ट्रॉनिक सामान (मोबाइल, टीवी वगैरह) के नाम है तो कपड़े 29 फ़ीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है.

यहां ये भी अहम है कि इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की गिनती 50 करोड़ तक पहुंच गई है और अगले तीन सालों में ये संख्या 82 करोड़ से भी ज़्यादा हो जाएगी, यानी डिजिटल दुकान के लिए ज़्यादा से ज़्यादा संभावित ग्राहक.

शॉपिंग

वैसे एक बात है, पारम्परिक दुकानदार भी अपनी तरफ से जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. कहीं एक ख़रीद पर एक मुफ़्त का वादा है तो कहीं लकी ड्रॉ में सोने-चांदी के सिक्के से लेकर इलेक्ट्रॉनिक सामान देने की बात.

छूट वगैरह तो मिलेगी ही. उम्मीद लगाए हैं कि अबकी दिवाली काफी अच्छी होगी. लेकिन इन दुकानदारों की परेशानी भी कम नहीं. एक तरफ जहां मार्जिन पर दवाब है, वहीं ज़्यादा छूट दे दिया तो बिल्कुल ना घाटा-ना मुनाफे पर सामान बेचना पड़ेगा.

पूंजी की लागत भी बढ़ी हुई है. अब ऐसे में डिजिटल दुकानों के मुक़ाबले ज़्यादा छूट या उससे कहीं ज़्यादा बड़ा ऑफर देना भी आसान नहीं. मतलब ये हुआ कि पारम्परिक दुकानदारों के लिए चुनौतियां बड़ी हैं.

हालांकि पारम्परिक दुकानदारों के लिए अहम बात ये है कि आज भी देश में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा लेन-देन नकद में होता है. दूसरी ओर समाज का एक बड़ा तबका डिजिटल दुकान पर अपने कार्ड या बैंक की जानकारी देने से हिचकता है.

बहरहाल इतना तो तय है कि हमारे प्रधानमंत्री ने जिस डिजिटल इंडिया नारा दिया था वह सच होता दिख रहा है. पेटीएम ,कार्ड ट्रांसफर, स्वैप कार्ड , क्रेडिट भुगतान आदि उन्हीं ख्वाबों के हिस्से हैं.

आज तेजी के साथ उभरता इ-कॉमर्स का व्यवसाय आने वाले समय का भविष्य है. ऐसा लगता है कि पेपर करेंसी का अस्तित्व बीते जमाने की बात होगी जैसे कभी आधा ,ढेला,कौड़ी आना, पौने का जमाना था जो अब खत्म हो गया है.

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