BY-THE FIRE TEAM
हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष, मशहूर कवि और पत्रकार विष्णु खरे को ब्रेन हैमरेज के कारण दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यहाँ उन्होंने अपने जीवन की अंतिम साँस ली.
इनका जन्म मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में 1940 में हुआ था। उन्होंने इंदौर में इंग्लिश से एमए करने के बाद बतौर हिंदी पत्रकार करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने लखनऊ, जयपुर, दिल्ली समेत कई शहरों में हिंदी अखबार के संपादक की भूमिका निभाई.
खरे का पहला काव्य संग्रह ‘एक गैर रूमानी समय में’ था। 2008 में प्रकाशित ‘पठांतर’ उनके पांच काव्य संग्रहों में आखिरी था। खरे ने ब्रिटिश कवि टीएस इलियट की कविताओं समेत कई किताबों के अनुवाद भी किए.
विष्णु खरे की कविताएँ अपने भीतर समय और समाज का इतना गहरा द्वन्द्व, सामाजिक-राजनीतिक हलचलें और मर्मांतक यातनाओं की कथाएँ लिए हुए हैं कि एक तरह से विष्णु खरे की कविताएँ समकालीन हिन्दुस्तानी समाज का आईना ही नहीं, ‘इतिहास’ भी हैं.
मुक्तिबोध की तरह विष्णु खरे भी ऐसे दुर्बोध लेकिन जरूरी कवि हैं जिनकी किसी से तुलना नहीं हो सकती-और अगर करनी ही हो, तो अकेले मुक्तिबोध ही हैं जिनसे किसी हद तक उनकी तुलना सम्भव है.
मुक्तिबोध की तरह ही विष्णु खरे सिर्फ सच का ईमानदारी से पीछा करती कविताओं के कारण ही नहीं, बल्कि अपने विचारों, आलोचनात्मक लेखों तथा साहित्य, समाज और राजनीति पर अपनी एकदम मौलिक किस्म की टिप्पणियों के लिए भी जाने जाते हैं.
यहाँ उनसे प्रेरणा या कहें ‘रोशनी’ पाने वाले कवियों, लेखकों, पाठकों की एक लम्बी कतार है.
विगत कई वर्षों से से विष्णु खरे के निकट रहे प्रकाश मनु की पुस्तक ‘एक दुर्जेय मेधा विष्णु खरे’ इस विलक्षण कवि को नजदीक से देखने-जानने के लिए ‘एक अति संवेदी आईने’ सरीखी है.
जिसे पढ़ लेने का मतलब विष्णु जी के भीतर-बाहर की तमाम हलचलों का गवाह होने के साथ-साथ, अपने जाने हुए कवि को फिर से एक नये रूप में जानना है.
दरअसल यह पुस्तक जाने हुए विष्णु खरे के साथ-साथ, अभी तक न जाने गये विष्णु खरे की खोज की बेचैनी से ही उपजी है.
विष्णु खरे की कविताओं और अनूदित किताबों पर अनौपचारिक कमैंट्स के साथ-साथ उन पर लिखा गया प्रकाश मनु का लम्बा संस्मरण और समय-समय पर लिए गये चार खुले, विचारोत्तेजक इन्टरव्यू उनके भीतर चल रहे और निरन्तर तीव्र होते ‘महाभारत’ को हमारी आँख के आगे ले आते हैं.
विष्णु खरे का लम्बा बहुचर्चित आत्मकथा ‘मैं और मेरा समय’ भी इस पुस्तक में है जो विष्णु जी की आत्मकथा के पन्नों को कविता की-सी हार्दिकता में खोलता है.
चूँकि कवियों के विषय में यह सर्वविदित है कि” जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि” अक्षरशः सत्य बैठती है.
संभवतः यही वजह है कि कवियों, लेखकों,आलोचकों ने जिस तरह गूढ़ पहलुओं पर अपनी लेखनी चलाई है वह अद्भुत है.
लिहाजा खरे जी की रचनाएँ भी एक दस्तावेज़ के रूप में संगृहीत हैं जिससे प्रेरणा लेने की जरुरत है.
उम्मीद है, विष्णु खरे को समग्रता से देखने-जानने के उत्सुक लेखकों-पाठकों को उनकी रचनावों से सुख मिलेगा तथा ये अंततः समाजहित,देशहित में उपयोगी सिद्ध होंगी.