BY-THE FIRE TEAM
केंद्र की मोदी सरकार ने एक और ऐतिहासिक कदम उठाते हुए देश के सबसे बड़े रेल रोड ब्रिज का लोकार्पण किया जो अपना सामरिक महत्व रखता है.
असम के बोगीबील में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने देश के सबसे लंबे रेल-सह-सड़क पुल का उद्घाटन किया। ये पुल भारत के लिए कई मायनों में इसलिए भी बेहद खास है, क्योंकि इसे इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना बताया जा रहा है।
Dibrugarh: Visuals from #Bogibeel Bridge which will be inaugurated by Prime Minister Shri @narendramodi on December 25. #Assam
Pictures: ANI pic.twitter.com/9AefPaw2lY
— Akashvani आकाशवाणी (@AkashvaniAIR) December 24, 2018
बता दें कि ये पुल भारत के सबसे भारी टैंक का भार भी सह सकता है। इसके अलावा इमरजेंसी में पुल पर फाइटर जेट की भी लैंडिंग हो सकती है।
बता दें कि इस पुल की कुल लंबाई 4.94 किलोमीटर है। आपको बता दें कि इस पुल की आधारशिला 1997 में रखी गई थी। और इसका निर्माण 2002 में शुरू किया गया था।
👉India's longest Rail-Road bridge (4.94km)
👉Rail tracks on lower deck, 3-lane road on Top
👉Reduces train distance b/w Itanagar-Dibrugarh from 800km to 180km
👉Faster access to hospital, institutes & airport at Dibrugarh
👉Can act as landing strips for Air Force#BogibeelBridge pic.twitter.com/CvcElCyaok— Sir Jadeja fan (@SirJadeja) December 25, 2018
इस रेल रूट पर तिनसुकिया-नाहरलगुन इंटरसिटी एक्सप्रेस सप्ताह में पांच दिन चलेगी। असम के तिनसुकिया से अरूणाचल प्रदेश के नाहरलगुन कस्बे तक की रेलयात्रा में लगने वाले समय में 10 घंटे से अधिक की कमी आएगी।
रेलवे प्रवक्ता नितिन भट्टाचार्य के मुताबिक, मौजूदा समय में इस दूरी को पार करने में 15 से 20 घंटे के समय की तुलना में अब इसमें साढ़े पांच घंटे का समय लगेगा। इससे पहले यात्रियों को कई बार रेल बदलनी पड़ती थी।
कुल 14 कोचों वाली तिनसुकिया-नाहरलगुन इंटरसिटी एक्सप्रेस में चेयर कार होगी। रेलगाड़ी तिनसुकिया से दोपहर में रवाना होगी और नाहरलगुन से सुबह वापसी करेगी।
बता दें कि इस पुल पर कुल खर्च 5,900 करोड़ रुपये आया है। इससे दिल्ली और डिब्रूगढ़ के बीच ट्रेन यात्रा में लगने वाला समय करीब तीन घंटा कम होकर 34 घंटा रह जाएगा जो फिलहाल 37 घंटा है।
जानकारी के मुताबिक, परियोजना की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने 22 जनवरी 1997 को रखी थी जबकि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में 21 अप्रैल 2002 को इसका काम शुरू हुआ था।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने 2007 में इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया था।
इस पुल से अरुणाचल प्रदेश में चीन बॉर्डर के पास मौजूद सैनिकों की आवाजाही और उन तक सामग्रियों का भेजा जाना भी आसान हो जाएगा। इस पुल से असम से अरूणाचल प्रदेश की यात्रा में लगने वाला वक्त काफी घट जाएगा।