BY-SAEED ALAM KHAN
भारतीय लोकतंत्र में जब से क्षेत्रीय दलों के प्रभाव में वृद्धि हुई है तभी से सरकारों के बनने और बिगड़ने का समीकरण बहुत बदल गया है. खासकर यह जोड़-घटाव राज्य-विधान सभाओं के
चुनाव में तो और अधिक मुखर होकर उभरा है. वर्तमान समय में आप महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए इलेक्शन का ताजा उदाहरण देख सकते हैं, आपको बता दें कि यहाँ दोनों राज्यों में चुनाव प्रचार
के दौरान चाहें बीजेपी का घोषणा पत्र हो या जेजेपी सबने एक आदर्श चुनाव की वकालत किया था, किन्तु नतीजे आते ही उन आदर्शों का क्या हुआ यह किसी से छिपा हुआ नहीं है.
जी हाँ, मै आपका ध्यान जेजेपी के एक प्रमुख उम्मीदवार तेज बहादुर यादव (जो 2019 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ बनारस से अपना परचा सपा के सहयोग भरा था,
हालाँकि निर्वाचन आयोग ने उनकी उम्मीदवारी समाप्त कर दी थी), की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ. ये हरियाणा राज्य में जेजेपी के एक बड़े चेहरे के रूप में मैदान में थे
किन्तु जब इन्हीं की पार्टी ने अपने सिद्धांतों से समझौते कर लिया और आज बीजेपी को अपनी दस सीटों से समर्थन देकर सरकार बनाने जा रहे हैं तो इन्होंने जेजेपी के विरुद्ध कई आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया है.
यह राजनीतिक सौदेबाजी ही है जिसके अंतर्गत मनोहर लाल खट्टर पुनः मुख्यमंत्री तथा दुष्यंत चौटाला जो जेजेपी प्रमुख हैं को उपमुख्यमंत्री का पद दिया जाएगा,
यद्यपि जेजेपी के इस स्टैंड को कांग्रेस ने तीखा व्यंग्य करते हुए कहा है कि-जेजेपी ने भाजपा को समर्थन देकर अपने मतदाताओं के साथ धोखा किया है, जनता इसका जवाब देगी.
कमोबेश ऐसी ही स्थिति महाराष्ट्र राज्य में भी चल रही है जहाँ सीटों की खरीद-बिक्री भाजपा और शिवसेना अपने अपने उम्मीदवारों को लेकर कर रही हैं, जहाँ ऐसी
भी सूचना प्राप्त हुई है कि दोनों दलों के उम्मीदवार मुख्यमंत्री के रूप में अपना आधा-आधा कार्यकाल पूरा करेंगे.
अब हम बात करते हैं कि आखिर राजनीतिक दलों के लिए उप प्रधानमंत्री या उप मुख्यमंत्री का पद हासिल करना इतना क्यों जरूरी हो जाता है कि वे सारे नैतिक मूल्यों और आदर्शों को
ताक पर रखकर जनता के मंसूबों पर पानी फेर कर सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थों को ही महत्व देते हैं.
यदि संविधान के प्रकाश में इन दोनों ही पदों- उप प्रधानमंत्री या उप मुख्यमंत्री का विश्लेषण किया जाये तो इनका कोई स्थान नहीं है. साथ ही संविधान में ऐसे
किसी कर्तव्य की भी चर्चा नहीं की गई है कि उप प्रधानमंत्री या उप मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री के अनुपस्थिति में कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेगा. हाँ, इतना जरूर है
कि वह केंद्रीय मंत्री के बराबर सुरक्षा और दायित्व जरूर निभा सकता है. लेकिन आज के समय में यदि इन पदों की खुले तौर पर घोषणा की जाती है तो यह केवल राजनीतिक विवशता है.
ऐसे बहुतेरे उदहारण हैं जिनमें उत्तर प्रदेश भी एक है जहाँ एक साथ दो-दो उप मुख्यमंत्रियों के नामों की घोषणा की गई है दिनेश शर्मा और केशव मौर्या के रूप में.
इससे ज्यादा कुछ नहीं यानि कि हम कह सकते हैं कि जिन मजबूरियों के कारण हमने सरकार बनाई है वह निर्भीकता पूर्वक बिना किसी बाधा के कार्य करे
बस इसी की पूर्ति के लिए इन पदों का सृजन किया गया है.