BY-THE FIRE TEAM
आज देश में राममंदिर जिसका निर्माण अयोध्या में करने को लेकर जद्दोजहद किया जा रहा है और यही बड़ी राजनीति का केंद्र बिंदु भी बन चुका है.
वर्तमान बीजेपी सरकार ने इस पर स्टैंड लेते हुए यहाँ दुनिया की सबसे ऊँची राम की मूर्ति सरयू नदी के किनारे लगाने का वायदा किया था,
किन्तु मिली सूचना के अनुसार मूर्ति के लिए जमीन अधिग्रहण अब खटाई में पड़ता नजर आ रहा है. ऐसे में योगी सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को झटका लग सकता है.
दरअसल, जैसे ही प्रदेश सरकार ने पर्यटन विभाग को जमीन अधिग्रहण के संबंध में निर्देश दिया इसके विरोध में 65 जमीन मालिकों जो रामघाट कॉलोनी के हैं, ने मुआवजे को लेकर जिला प्रशासन पर गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कोर्ट की शरण में चले गए हैं.
इसका मुख्य कारण मुआवजा की राशि तथा उसकी दर में स्पष्टता का न होना है. आपको बता दें कि राम की मूर्ति बनाने के लिए पर्यटन विभाग ने 28.2864 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करने का लक्ष्य रखा है.
सरकारी आँकड़ों की अगर बात करें तो इस मूर्ति की ऊँचाई 151 मीटर तथा उसका आधार 50 मीटर की चौड़ाई लिए होगा, साथ ही 20 मीटर के छत्र से उसकी सुरक्षा का भी प्रबंध किया जायेगा.
इस प्रतिमा की सबसे बड़ी खासियत यह होगी कि इसे अयोध्या शहर के बाहर से भी देखा जा सकता है. ध्यान देने वाला पहलू यह है कि याचिकाकर्ताओं में मूर्ति स्थापना को लेकर कोई विरोध नहीं है,
वे तो केवल अपनी जमीन का उचित मूल्य चाहते हैं. उनका कहना है कि अहिग्रहीत होने वाली जमीन के बगल में ही रेलवे स्टेशन और बाई पास है,
जिसकी वजह से उन्हें जमीन का मुआवजा सर्कल रेट के चार गुने पर चाहिए और उन्होंने जो पहले से निर्माण करा रखा है उसका दुगुना भुगतान होना चाहिए ताकि उस राशि का प्रयोग वे अन्यत्र कर सकें.
ऐसे में अब, जब तक याचिकाकर्ताओं की समस्या दूर नहीं हो जाती तब तक इस प्रोजेक्ट को पूरा नहीं किया जा सकता है.