BY-THE FIRE TEAM
मिली सुचना के मुताबिक देश के सर्वोच्च न्यायालय ने बच्चों के साथ होने वाले यौन अत्याचारों को रोकने तथा उनको शोषण से छुटकारा दिलाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि-
ऐसे जिले जहाँ बच्चियों के साथ यौन शोषण के 100 से अधिक मामले दर्ज हैं वहाँ विशेष अदालत गठित करके उन पर त्वरित कार्यवाही की जाये.
इसके अतिरिक्त ऐसे मामलों के हल के लिए बच्चों से नरमी बरतते हुए उनको निपटायें ताकि उनके कोमल मन पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े.
दरअसल, कोर्ट ने यह ठोस फैसला देश में घटने वाली बच्चियों के साथ बलात्कार जैसी कुत्सित घटनाओं को देखते हुए उठाया है. एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि-
वर्ष 2019 में जनवरी से लेकर जून तक लगभग 24212 बलात्कार की घटनाओं को पुलिस ने दर्ज किया है जिनमे 11981 मामलों की जाँच पड़ताल जारी है जबकि 12231 मुकदमों में चार्जशीट दाखिल हो चुका है.
किन्तु यदि मुकदमों के ट्रायल का अनुपात देखें तो महज चार प्रतिशत मामलों को बमुश्किल निपटाया जा सका है. ये आँकड़े कानून वयवस्था की भी पोल खोलते नजर आ रहे हैं.
आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में बच्चियों के साथ सबसे अधिक बलात्कार के मुकदमे दायर किये गए हैं और यह देश में सबसे ज्यादा है.
समाज में ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमा घरों का सहयोग लेने की बात रखी है जहाँ दर्शकों को वीडियो क्लिपिंग दिखाकर जागरूक किया जा सकता है.
साथ ही अभियोजन पक्ष को अपने विश्वास में लेकर, जागरूकता कार्यक्रम, बच्चियों को हेल्प लाइन नंबर की सुविधा सार्वजनिक स्थानों, विद्यालयों में प्रदान करके भी उनको सशक्त किया जा सकता है.
पॉक्सो अधिनियम के तहत दाखिल मुक़दमों के ट्रायल देरी से प्रारम्भ होने की बड़ी वजह फोरेंसिक लैब न होना है जिसके कारण न्यायालय की कार्यवाही में बाधा उत्प्न्न होती रहती है.