भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने की दिशा में हॉकी के खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का अहम योगदान रहा है. आज ही के दिन 29 अगस्त, 1905 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में हुआ था.
मेजर ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी को ओलंपिक खेलों में अनेक स्वर्ण पदक दिलाने का कार्य किया चाहे वह 1928 का ओलंपिक हो अथवा 1932 और 1936 का.
ऐसा कहा जाता है कि जब ध्यान चंद अपनी स्टिक से हॉकी खेलते थे तो ऐसा लगता था मानो हॉकी बॉल को स्टिक से चिपका करके भाग रहे हैं.
Dhyan Chand 115th Birth Anniversary: Interesting facts about the ‘Wizard of Hockey’ #Dhyanchandhttps://t.co/LRTAuSG0br pic.twitter.com/rAOUKOiZ7h
— Newsd (@GetNewsd) August 28, 2020
यह देख करके उनके हॉकी स्टिक तक की जांच की गई, हालाँकि ऐसा कुछ भी सबूत नहीं मिला. उनके योगदानों तथा खेलने की तकनीक को देखकर उन्हें हॉकी का जादूगर कहकर संबोधित किया जाता है.
उन्हीं की स्मृति में उनके जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और इस दिन विभिन्न खेलों से जुड़े अनेक खिलाड़ियों को पुरष्कृत किया जाता है.
"Practice like you’ve never WON, Play like you’ve never LOST."
DSYWMP’s Men's #Hockey Academy Players doing Dribbling & Goal Shooting practice at Major Dhyanchand Hockey Stadium, Bhopal.#FitIndiaMovement pic.twitter.com/QBI1ZeIHSD
— Directorate of Sports MP (@dsywmpofficial) June 19, 2020
ध्यानचंद से जुड़े कुछ प्रमुख तथ्य:
ऐसा कहा जाता है कि ध्यानचंद को हॉकी उनके पिता से विरासत में मिली थी जो आर्मी में थे. हालांकि शुरुआत के दिनों में ध्यानचंद का हॉकी की ओर कोई झुकाव नहीं था किंतु बाद के समय में इन्होंने रुचि दिखाते हुए हॉकी को प्रमुख स्थान पर पहचान दिलाई.
उनकी आत्मकथा रोमांस आफ हॉकी में इसका वर्णन है. ध्यानचंद को चांद की उजाली रातों में अपनी ड्यूटी करने के बाद प्रैक्टिस करने का मौका मिलता था इसीलिए इन्हें चंद कहा जाता है.
जर्मनी के प्रसिद्ध नेता एडोल्फ हिटलर ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर उन्हें जर्मन नागरिकता तथा जर्मन सेना में कर्नल का पद भी देने का ऑफर दिया किंतु ध्यानचंद ने इसे कभी नहीं स्वीकार किया.