महावीर चक्र और परमवीर चक्र से सम्मानित कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार शहीद अब्दुल हमीद के जन्म दिवस पर उनका हम सब नमन करते हैं जिन्होंने 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध में अपनी
अद्भुत साहस और वीरता को दिखाते हुए दुशमनो के शक्तिशाली कई अमेरिकन पैटन टैंकों को धवस्त कर दुशमनो को मुहतोड़ जवाब देते हुए वीर गति को प्राप्त हुए.
शहीद वीर अब्दुल हमीद की कहानी
आईये आज इस आर्टिकल में जानते हैं देश की आन-बान-शान की खातिर दुशमनो से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए देशभक्त शहीद अब्दुल हमीद के जीवन के बारे में.
अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले में स्थित धरमपुर नाम के छोटे से गांव में एक गरीब मुस्लिम परिवार मे हुआ था.
उनके पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था. उनके यहाँ परिवार की आजीविका को चलाने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम होता था. लेकिन अब्दुल हमीद का दिल इस सिलाई के काम में बिलकुल नहीं लगता था, उनका मन तो बस कुश्ती दंगल और दांव पेंचों में लगता था.
क्युकी पहलवानी उनके खून में थी जो विरासत के रूप में मिली उनके पिता और नाना दोनों ही पहलवान थे. वीर हमीद शुरू से ही लाठी चलाना कुश्ती, करना और बाढ़ में नदी को तैर कर पार करना, और सोते समय फौज और जंग के सपने देखना तथा अपनी गुलेल से पक्का निशाना लगाना उनकी खूबियों में था और वो इन सभी चीजों में सबसे आगे रहते थे.
उनका सबसे अच्छा गुण था दूसरो की हर समय मदद करना, जरूरतमंद लोगो की सहायता करना और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना और उसे बर्दास्त ना करना. गुण ऐसी ही घटना एक बार उनके गाँव में हुयी जब एक गरीब किसान की फसल को जबरजस्ती वहा के
ज़मींदार के लगभग 50 गुंडे काट कर ले जाने के लिए आये तब हमीद को यह बात का पता चला और उन्हें यह बात बर्दास्त नहीं हुयी और उन 50 गुंडों से अकेले ही भीड़ गए. जिसके कारण उन सभी गुंडों को भागना पड़ा. और उस गरीब किसान की फसल बच गयी.
एक बार तो अपने प्राणों की बाजी लगा कर गाँव में आई भीषण बाढ़ में डूबती दो युवतियों की जान बचायी. और अपने साहस का परिचय दिया.
अपने जीवन यापन के लिए रेलवे में भर्ती होने के बावजूद उनका मन तो बस देश प्रेम के प्रति लगा था और सेना में भर्ती होके देश की सेवा सच्चे मन से करना था. आखिरकार हमीद का सपना पूरा हुआ और सन 1954 में सेना के अन्दर भर्ती हो गये और अपना कार्यभार संभाला.
1962 में चीन का हमला भारत पर हुआ तब वीर हमीद को मौका मिला अपने देश के लिए कुछ कर दिखाने का उस युद्ध में हमारी सेना का एक जत्था चीनी सैनिको के घेरे में आ गया जिसमे हमीद भी थे. वह लगातार मौत को चकमा दे मुकाबले के लिए डटे रहे मोर्चे पर लेकिन उनका शरीर लगातार खून से भीगता जा रहा था और उनके साथी एक एक कर के कम होते जा रहे थे.
लेकिन इसके विपरीत वीर हमीद की मशीनगन मौत के गोले उगल रही थी, दुशमनों पर और एक समय आया धीरे-धीरे कर के उनके पास उपलब्ध गोले और गोलिया ख़त्म हो गए. अब हमीद करे तो क्या करे जैसी स्थिति में आ गए. और खाली हो चुकी मशीन गन का क्या करे दुशमनो के हाथ ना लगे,
इसलिए अपनी मशीनगन को तोड़ डाला और अपनी वीरता के साथ समझदारी दिखाते हुए बर्फ से घिरी पहाड़ियों से रेंगते हुए वहा से निकल पड़े.
चीन के युद्ध में वीरता और समझदारी का परिचय देने वाले जवान अब्दुल हमीद को 12 मार्च 1962 में सेना ने हमीद को लॉसनायक अब्दुल हमीद बना दिया और इसी तरह अपनी बहादुरी का परिचय देते रहे और दो से तीन वर्षों के अन्दर हमीद को नायक हवलदारी और कम्पनी क्वार्टर मास्टरी भी प्राप्त हो गयी.
पाकिस्तान ने 8 सितम्बर 1965 की रात में भारत पर हमला बोल दिया और दोनों देश के बीच जंग शुरू हो गयी तब एक बार फिर वीर हमीद को अपनी जन्म भूमि के लिए कुछ करने का मौका मिल गया.
#आखिरी_ख़त
इस मोर्चे में जाने से पहले वीर हमीद ने अपने भाई के नाम एक ख़त लिखा और उस ख़त में उन्होंने लिखा कि पल्टन में उनकी बहुत इज्जत होती है जिन के पास कोई चक्र होता है. देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र जरूर लेकर लौटेंगे..
पकिस्तान के पास उस समय सबसे घातक हथियार के रूप में था “अमेरिकन पैटन टैंक” जिसे लोहे का शैतान भी कहा जा सकता हैं और इस पैटन टैंकों पर पकिस्तान को बहुत नाज था और पाक ने उन्ही टैंको के साथ “असल उताड़” गाँव पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया.
उधर पकिस्तान के पास अमेरिकन पैटन टैंकों का ज़खीरा इधर भारतीय सैनिको के उन तोपों से मुकाबला करने के लिए कोई बड़े हथियार ना थे. था तो बस भारत माता की दुशमनो से रक्षा करते हुए रणभूमि में शहीद हो जाने का हौसला था और हथियार के नाम पर साधारण “थ्री नॉट थ्री रायफल” और एल.एम्.जी थे. और इन्ही हथियारों के साथ दुशमनो के छक्के छुड़ाने लगे हमारे सभी वीर सैनिक.
इधर वीर अब्दुल हमीद के पास अमेरिकन पैटन टैंकों के सामने खिलौने सी लगने वाली “गन माउनटेड जीप” थी. पर दुशमनो को यह नहीं पता था उस पर सवार वीर नहीं परमवीर अब्दुल हमीद हैं जिनका निशाना महाभारत के अर्जुन की तरह हैं.
जीप पर सवार दुशमनो से मुकाबला करते हुए हमीद पैटन टैंकों के उन कमजोर हिस्सों पर अपनी गन से इतना सटीक निशाना लगाते थे जिससे लोह रूपी दैत्य धवस्त हो जाता. और इसी तरह अपनी गन से एक एक कर टैंको को नष्ट करना शुरू कर दिया.
उनका यह पराक्रम देख दुश्मन भी चकित से रह गए. जिन टैंको पर पकिस्तान को बहुत नाज था. वह साधारण सी गन से धवस्त हो रहे थे. वीर हमीद को देख भारतीय सैनिको में और जोश आ गया पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने में लग गए.
एक के बाद एक कर सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया हमीद ने. असल उताड़ गाँव पाकिस्तानी टैंको की कब्रगाह में बदलता चला गया. पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान बचा कर भागने लगे लेकिन वीर हमीद मौत बन कर उनके पीछे लग लगे थे.
और भागते हुए सैनिको का पीछा जीप से करते हुए उन्हें मौत की नींद सुला रहे थे तभी अचानक एक गोला हमीद के जीप पर आ गिरा जिससे वह बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए. और 9 सितम्बर को भारत का यह लाल हम सब को छोड़ वीरगति को प्राप्त हो गया जिसकी अधिकारिक घोषणा 10 सितम्बर को की गई.
इस युद्ध में वीरता पूर्वक अदुभुत पराक्रम का परिचय देने वाले वीर हमीद को पहले महावीर चक्र और फिर सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया.
उसके बाद भारतीय डाक विभाग ने 28 जनवरी 2000 को वीर अब्दुल हमीद के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया और इस डाक टिकट पर रिकाईललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हामिद का एक रेखा चित्र बना हुआ है.
चौथी ग्रेनेडियर्स ने महावीर चक्र और सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत शहीद वीर अब्दुल हमीद की स्मृति में उनकी क़ब्र पर एक समाधि का निर्माण किया और हर साल उनकी शहादत पर एक विशेष मेले का आयोजन होता हैं.