बुरहान वानी के बरसी पर कश्मीर घाटी में बंद का आह्वान


BY-THE FIRE TEAM


मिली सूचना के मुताबिक कश्मीर घाटी में आतंक का पर्याय माने जाने वाले बुरहान वानी जो हिज्बुल मुजाहिदीन का कमाण्डर था, की आज बरसी है जिसके आज तीन साल पुरे हो गए.

आपको बता दें कि बुरहान वानी को अनंतनाग के कोकेरनाग में ही 8 जुलाई, 2016 को एक भीषण मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने मार गिराया गया था.

इस घटना के बाद कश्मीर घाटी में लोगों द्वारा व्यापक प्रदर्शन हुए थे, जिसको दबाने में लगभग 85 आम नागरिकों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

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सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए एहतियात के तौर पर दक्षिणी कश्मीर के चार जिलों शोपियाँ, पुलवामा, कुलगाम और अनंतनाग में इंटरनेट सेवाएं बाधित कर दी गई हैं.

इसके अलावा संवेदनशील जिलों में हाई एलर्ट घोषित करने के साथ ही साथ घाटी में चल रही अमरनाथ यात्रा को भी स्थगित कर दिया गया है.

चूँकि वर्ष 2017 में 10 जुलाई को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रा के दौरान सात श्रद्धालुओं को मार डाला था. इसीलिए यह कदम उठाया गया है ताकि किसी भी श्रद्धालु के साथ कोई अप्रिय घटना न घटे.

इस सम्बन्ध में पुलिस के एक अधिकारी ने बताया है कि सुरक्षा बलों के काफिलों को भी जम्मू- श्रीनगर राजमार्ग से नहीं गुजरने दिया जायेगा.

आपको बताते चलें कि विगत दिनों में पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों से भरी बस को एक आतंकी अब्दुल वकाश ने कार द्वारा (आरडीएक्स से भरा) टकराकर उड़ा दिया जिसमें चालीस से अधिक जवान शहीद हो गए.

कौन था बुरहान वानी ?

कश्मीर के त्राल नामक स्थान पर पेशे से शिक्षक मुजफ्फर अहमद वानी के यहाँ 1994 को पैदा हुआ बुरहान बहुत ही कम उम्र में हथियार उठा लिया जिसके पीछे कई कारण बताये जाते हैं. जैसे- भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा उसके भाई को अकारण पीटना और निर्दोष लोगों को परेशान करना.

इन घटनाओं से आहत होकर उसने हिज्बुल मुजाहिदीन आतंकी संगठन ज्वाइन कर लिया और अपनी काबिलियत से उसका कमाण्डर भी बन बैठा.

वानी की युवावस्था, सोशल मीडिया के प्रति लगाव ने उसे कश्मीरी युवाओं के नजदीक ला दिया. उसकी पोस्ट और तस्वीरें तथाकथित भारतीय अत्याचार, हिंसा और अन्याय को दर्शाते थे. यह गतिविधि कहीं न कहीं कश्मीरी लोगों में रोष पैदा किया.

यही वजह है कि दक्षिणी कश्मीर की आवाम उसके प्रति झुकी. सोचने का पहलू यह है कि सरकार और यहाँ के राजनीतिक दल किसी सकारात्मक लक्ष्य की ओर कदम नहीं बढ़ा पा रहे है.

हालाँकि शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता हो जब सेना के जवान हों अथवा आम नागरिक, उनकी हत्या न होती हो. जरूरत है इस समस्या को यथा शीघ्र हल किया जाए,

ताकि इंसानियत को बचाया जा सके तथा युवाओं की ऊर्जा का इस्तेमाल देश को मजबूत बनाने और विकसित करने में किया जा सके.

 

 

 

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