BY-THE FIRE TEAM
देश के जाने-माने लेखक और प्रख्यात कवि गौहर रजा ने उन्नाव पीड़िता के दर्द को अपनी कविताओं में उतारा है. इनकी रचनाएँ न केवल व्यक्ति बल्कि वयवस्था की खामियों को उजागर करती हैं.
साथ ही साथ न्याय देने वाले पुरोधाओं को कटघरे में भी खड़ी करती हैं. कवि ने कहा है कि जब साजिश को दुर्घटनाओं का नाम दे दिया जाये तथा षड्यंत्रकारियों को शासक की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया जाता है
तो इस दशा में लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या ही नहीं होती अपितु सम्पूर्ण शासन प्रणाली से ही विश्वास उठ जाता है. गौहर रजा यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने बताया कि हत्यारों को राष्ट्र का झंडाबरदार बना देना,
भड़काऊ लोगों को माला पहनाना और राजनितिक साजिश में कमजोर लोगों को मार डाला जाना आदि ऐसी हरकतें हैं जो केवल कुंठा और भ्रष्टाचार को ही बल देती हैं.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह बहुत ही ज्यादा शर्मनाक है कि- हत्यारा जेल में सुविधाओं का आनंद लेता है जबकि भीड़ निर्दोष लोगों की मॉब लिंचिंग कर देती है.
और व्यव्श्था में बैठे लोगों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है. यहाँ तक कि न्यायाधीश भी सही आदमी के पक्ष में निर्णय देने से कतराते हैं. जब घरों की पहचान मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों, चर्च के रूप में दिखाया जाता है.
युवा रोजगार की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते हुए भटकते फिरते हैं लेकिन उन्हें उनके मनमाफिक काम के अवसर नहीं मिलते हैं. इन युवकों को लूटपाट और आगजनी में भिड़ा दिया जाता है.
इन विकट परिस्थितियों में कवि योग्य लोगों से आह्वान करता नजर आता है. उनसे इच्छा जाहिर करता है कि वे इस चुनौती से निपटने का मार्ग बनाएं तथा समाज और देश को सही दिशा दें जिससे उन्नति और विकास हो.