देश की प्रमुख महिला राजनेत्रियाँ जिन्होंने राजनीति को नई धार दिया


BY-THE FIRE TEAM


महिलाओं का राजनीति में जगह बनाना बहुत टेढ़ी खीर रहा है. फिर भी अनेक महिलाओं ने इन सामाजिक चुनौतियों को धत्ता बताकर जिस मजबूती से अपनी योग्यता का लोहा समाज से मनवाया है वह काबिले तारीफ है.

आज उन्हीं महिलाओं से जुड़े तथ्यों को हम एक-एक करके देखेंगे-

1. प्रतिभा पाटिल- देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में जानी जाने वाली प्रतिभा पाटिल 1962 में महाराष्ट्र विधानसभा की सदस्य के रूप में राजनीति में शामिल हुईं.

गांधी परिवार के साथ उनकी भद्र शर्तों ने उन्हें 2006 में राष्ट्रपति पद का दायित्व निभाने में सक्षम बना दिया. इन्होंने 2007 से 2012 तक भारत के 12वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया और महिला सशक्तिकरण के पक्ष के समर्थन में आगे रहीं.

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2. सोनिया गांधी- देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी का कार्यकाल सबसे लंबा था. नेहरू गांधी परिवार के प्रतिष्ठित वंश की सदस्या, इस प्रखर महिला नेता ने 1998 में राजनीति में प्रवेश किया.

वर्ष 2006 में इन्होंने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का गठन किया तथा 2017 में अपना दायित्व अपने पुत्र राहुल गांधी को सौंपकर वह कांग्रेस के अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत हो गईं.

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 3. मायावती- दलित राजनीति का एक बड़ा चेहरा जिसके उदय को पी. वी. नरसिम्हा राव ने राजनीति में लोकतंत्र के चमत्कार के रूप में वर्णित किया है, इस क्षेत्र में महिला के रूप में उनके संघर्ष ने इन्हें अपौरूषेय बना दिया.

शुरूआत से ही विनम्र, खुशमिजाज मायावती का राजनीति से कोई संबंध नहीं था हालांकि दलित राजनेता काशीराम ने उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए राजी किया.

इन्होंने 1995 में उत्तर प्रदेश की प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में ऐतिहासिक जीत के साथ प्रसिद्धि पाई तथा इस समय बसपा सुप्रीमो का पदभार संभाल रही हैं.

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4. शीला दीक्षित- शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित केंद्रीय मंत्री होने के साथ-साथ नेहरू गांधी परिवार के करीबी सहयोगी थे.

इंदिरा गांधी ने शीला की राजनीतिक क्षमता और जुनून को तब देखा जब वह अपने पिता के साथ-साथ काम कर रही थीं. अंततः वह दिल्ली की सबसे लंबे कार्यकाल तक कार्य करने वाली मुख्यमंत्री बन गईं.

इस राजनेत्री ने भारत में महिलाओं की स्वतंत्रता और सम्मान की पर्याप्त सुरक्षा के विषय में समाज की भर्त्सना की है क्योंकि सामाजिक बंधन के कारण ही महिलाएं हाशिये पर चली गईं.

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5. ममता बनर्जी- बंगाल की राजनीति में अहम भूमिका निभाने तथा ‘दीदी’ के नाम से लोकप्रिय ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत काफी पहले की थी.

उन्होंने 1997 में तृणमूल कांग्रेस पार्टी की स्थापना की, जो बंगाल का सबसे शक्तिशाली विपक्ष बन गया.  2011 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के 34 साल के शासन को समाप्त कर, यह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं.

ममता ने हाल ही में तृणमूल कांग्रेस में 35 प्रतिशत महिलाओं के लिए जिसमें 50 प्रतिशत स्थान स्थानीय निकायों में आरक्षित कराकर गर्व व्यक्त किया है.

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6. वृंदा करात- ऐसा बताया जाता है कि वृंदा करात ने राजनीति के विवादास्पद संसार में शामिल होने के लिए वायुसेना में अपनी नौकरी छोड़ दी.

इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में अपनी शिक्षा काल के दौरान ही सक्रिय रूप से राजनीति शुरू कर दी थी. 2005 में यह राज्यसभा में सी.पी.आई. (एम) की प्रतिनिधि चुनी गईं.

उसी वर्ष यह सी.पी.आइ. (एम) के पोलित ब्यूरो की पहली महिला सदस्य बनीं, जो पार्टी की सबसे शक्तिशाली निर्णय लेने वाली संस्था है.

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