आखिर क्यों पहुँचा यस बैंक बर्बादी की कगार पर?


BY-THE FIRE TEAM


पीएनबी घोटाला से लेकर पीएमसी कोआपरेटिव बैंक के घोटाले तक लगातार जो बर्बादी की कहानी शुरू हुई है, इसी कड़ी में देश की एक-एक संस्थाएँ धाराशाई होती जा रही हैं. आखिर अब यस बैंक भी नहीं बचा.

अब स्वाभाविक सा प्रश्न बनता है कि सरकार जो अनेक बार अपनी सफाई देती रहती है कि प्रधानमंत्री 18-18 घंटे काम करते हैं तो क्या यही उनके काम का नतीजा है?

आइये जानते हैं कि वे कौन से कारक हैं जिनके कारण सबसे अधिक ब्याज देने वाला निजी बैंक (यस बैंक ) जो वर्ष 2004 में स्थापित हुआ यह बैंक, आज खुद ही बर्बादी के कगार पर खड़ा है.

1.पारिवारिक कारण: जानकारों का कहना है कि  साल 2004 में राणा कपूर ने एक अपने रिश्तेदार अशोक कपूर को साथ लेकर इस बैंक को शुरू किया था किन्तु 26/11 की आतंकी घटना में अशोक कपूर की असामयिक मृत्यु हो गई.

ऐसे में अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और राणा कपूर के बीच बैंक के मालिकाना हक को लेकर विवाद छिड़ गया तथा इसके अलावे मधु अपनी बेटी को बैंक के बोर्ड मेंबर में भी शामिल करना चाहती थीं. यह कलह बैंक पर हावी रहने के रूप में जब तब दिखती रहती थी.

2.कॉरपोरेट घरानों का धोखा: आपको बता दें कि यस बैंक के ग्राहकों की सूची में रिटेल से ज्यादे कॉरपोरेट ग्राहक हैं. ऐसे में इस बैंक ने जिन कम्पनियों को ऋण दिया वो अधिकतर घाटे में हैं और उनमें से कई दिवालिया होने की स्थिति में पहुँच चुकी हैं. अतः यस बैंक की एसेट एनपीए में बदलने लगी जिससे बैंक पर दबाव बढ़ गया.

3.अभी भी बैंक पर 24000 करोड़ डॉलर की देनदारी: हालाँकि बैंक के पास करीब 40 अरब डॉलर की बैलेंस शीट है और सरकार भी इसे डूबने से बचाना चाहती है. यस बैंक को अपने कैपिटल बेस बढ़ाने के लिए 2 अरब डॉलर चुकाने होंगे,

इसके लिए बैंक ने अपना रेसोलुशन प्लान कई बैंकों जैसे एसबीआई, एचडीएफसी, एलआईसी  को सौंपा था किन्तु इनके साथ कोई बात नहीं बन पाई. इसके वजह से भी बैंक पर दबाव बढ़ गया.

अब आर बी आई का स्टैंड क्या हो सकता है? देश में जितने भी बैंक हैं उनका गाइड लाइनर आर बी आई है. ऐसे में वह यस बैंक के एसेट क़्वालिटी का मूल्यांकन करने के बाद यह तय कर सकता है कि इस बैंक का मर्जर करना है अथवा अथवा टेक ओवर.

 

 

 

 

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