BY-THE FIRE TEAM
अमेरिका की एक संसदीय रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है कि हाल के दशकों में भारत में हिंदू राष्ट्रवाद एक उभरता राजनीतिक बल है जिससे यहां के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने का ‘‘क्षरण’’ हो रहा है.
इसमें चेतावनी दी गई है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म देश में ‘‘ बहुसंख्यक वर्ग की हिंसा ’’ की बढ़ती घटनाओं को ‘‘ प्रत्यक्ष और परोक्ष’’ दोनों प्रकार की मंजूरी देते हैं.
कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) ने अपनी रिपोर्ट में कथित धर्म-प्रेरित दमन और हिंसा के विशिष्ट क्षेत्रों का जिक्र किया है.
इसमें राज्य स्तरीय धर्मांतरण निरोधी कानून, गोरक्षा के लिए कानून हाथ में लेना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कथित हमले और गैर सरकारी संगठनों के अभियानों को भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपराओं के लिए हानिकारक माना गया है.
आपको बता दें कि सीआरएस रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस की आधिकारिक रिपोर्ट नहीं है और न ही यह सांसदों के विचारों की अभिव्यक्ति करती है.
बल्कि इस तरह की रिपोर्ट स्वतंत्र विशेषज्ञ तैयार करते हैं ताकि सांसद इन पर गौर कर सकें और उचित फैसले ले सकें.
रिपोर्ट का शीर्षक है ‘‘ इंडिया : रिलिजियस फ्रीडम ईशूज ’’जिसमें बताया गया है- संविधान द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता की स्पष्ट रूप से रक्षा की गई है. भारत की आबादी में हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा है.
बीते दशकों में हिंदू राष्ट्रवाद उभरता राजनीतिक बल है और यह कई मायनों में भारत की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है तथा देश की धार्मिक स्वतंत्रता पर नए हमलों की वजह बन रहा है.’’
आपको बताते चलें कि विगत कुछ वर्षों में अमुक समुदायों के विरुद्ध जिस तरह की घटनाएं घटी हैं वह बहुत चिंता जनक हैं. दलितों पर अत्याचार ,मुस्लिम समुदाय के लोगों से राष्ट्रवादी होने का सबूत माँगना, गो रक्षा के नाम पर उनकी हत्याएं करना आदि कई प्रश्न खड़ा करती हैं.
यह रिपोर्ट 30 अगस्त की है और इसकी प्रति पीटीआई को गुरुवार को प्राप्त हुई है. यह रिपोर्ट टू प्लस टू वार्ता से पहले अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों के लिए तैयार की गई थी.
कई सांसदों ने विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से कहा था कि इस वार्ता के दौरान वह भारतीय नेताओं के समक्ष धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाएं.
(साभार-पीटीआई)