BY-THE FIRE TEAM
सोमवार(29 अक्टूबर) से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले परअंतिम सुनवाई शुरू हो रही है. सुनवाई से ठीक पहले आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार का बयान आया है,
इसमें उन्होंने कहा है कि जिस तरह काबा, हरमंदिर साहब और वेटिकन को बदला नहीं जा सकता है, उसी तरह राम जन्मस्थान भी बदला नहीं जा सकता है, यह एक सत्य है.
Kaaba badla nahi ja sakta, Harmandir sahab badla nahi ja sakta, Vatican ko badla nahi ja sakta aur Ram jamansthaan ko badla nahi ja sakta, yeh ek satya hai: Indresh Kumar, RSS (28.10.18) pic.twitter.com/6Y6DTodIsH
— ANI (@ANI) October 29, 2018
आपको बता दें कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में अब सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच सुनवाई करेगी. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में शुरुआती सुनवाई 29 अक्टूबर को होगी और उस दिन ही नियमित सुनवाई की तारीख तय होगी.
चीफ जस्टिर रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी.
इससे पहले तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एम खानविलकर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच ने 2:1 के बहुमत से फैसला दिया था कि 1994 के संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है.
जिसमें कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही बेंच ने कहा था कि 1994 का इस्माइल फारुखी फैसला सिर्फ जमीन अधिग्रहण को लेकर था.
संविधान पीठ ने कहा था कि जमीनी विवाद से इसका लेना देना नहीं इसलिए सिविल मामले की सुनवाई होगी. हालांकि जस्टिस नजीर ने इससे असहमति जताते हुए कहा था कि संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार हो. जस्टिस मिश्रा तीन अक्तूबर को रिटायर हो चुके हैं. इसीलिए यह नई पीठ बनाई गई है.
एक नजर में पुराने विवाद की कहानी :
सुप्रीम कोर्ट की पीठ अयोध्या विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था.
बता दें कि राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था. इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था. फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए, जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए.
सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए. सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी. इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई.
मसलन एक पक्ष ने कहा मामला संवैधानिक पीठ में जाए, अन्य ने कहा जल्द निपटाएं. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी.
सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था.तभी से सुप्रीम कोर्ट में यह मामला लंबित है.