श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था अनुच्छेद 370 का विरोध, जानें क्यों ?


BY-THE FIRE TEAM


वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह के कश्मीर दौरे के बाद इस राज्य में लागू अनुच्छेद 370 की चर्चा पुनः गरमा गई है.

आपको बता दें कि यही वह धारा है जिसके कारण इस राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है. अपने दौरे के दौरान गृहमंत्री ने यहाँ के अनेक संगठनों, समुदायों और लोगों से मुलाकात की और यहाँ की स्थिति का जायजा लिया.

आजादी के बाद अंगेजों ने पाकिस्तान तो बना दिया किन्तु अभी भी उन लोगों ने ऐसे लूपहोल छोड़ रखे थे जिनके कारण देश के कई टुकड़े हो सकते थे.

इसी की वजह से यहाँ की तीन रियासतें- हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जो अपनी स्वतंत्रता को अलग बनाये रखना चाहती थीं.

कुछ आंतरिक परिस्थितियों के उत्पन्न होने के कारण कश्मीर के महाराजा हरी सिंह को भारत में अपनी रियासत का विलय, इस विलय पत्र (एनक्सेसन ऑफ इंस्ट्रूमेंट) पर हस्त्ताक्षर करके करना पड़ा, जिसके प्रावधानों को शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था.

यद्यपि नेहरू ने जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग तो बना लिया किन्तु फिर भी उन्हीं की पार्टी यानि कांग्रेस के लोगों ने ही कई जगह उनकी आलोचना की.

इन विरोधियों के अतिरिक्त एक और नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी का था जो जनसंघ से जुड़े थे, वे अब अनुच्छेद 370 के विरुद्ध उठ खड़े हुए और भूख हड़ताल शुरू कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि इसके कारण देश के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे.

अपना विरोध दिखाने के लिए उन्होंने आंदोलन शुरू किया और जम्मू-कश्मीर राज्य में घुसने का प्रयास किया तभी उनको पकड़कर जेल में डाल दिया गया. यहीं पर 23 जून,1953 को पुलिस हिरासत में ही उनकी मृत्यु हो गई.

अनुच्छेद 370 की विषेशताएँ :

  • अनुच्छेद 370 के तहत वैदेशिक सम्बन्ध रक्षा, मुद्रा, संचार पर कानून नबनाने का अधिकार संसद के पास है हालाँकि विशेष दर्जा के कारण इस राज्य पर भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 इस पर लागु नहीं होता
  • 1976 में पारित शहरी भूमि कानून और सूचना का अधिकार कानून भी यहाँ लागु नहीं होता है
  • भारत के अन्य राज्यों के लोगों को यहाँ सम्पत्ति खरीदने का भी अधिकार नहीं है.
  • अनुच्छेद 370 के उपबंध 3 के अंतर्गत यदि राष्ट्रपति चाहे तो इसके विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर सकता है किन्तु इसके लिए पहले यहाँ के राज्य सरकार से मंजूरी लेनी होगी.

इन अड़चनों के बाद भी इस राज्य के कानून में कई बदलाव किए गए हैं मसलन- सन 1965 तक यहाँ राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होता था, किन्तु संविधान में संशोधन करके अब इसमें बदलाव कर दिया गया है.

पहले इस राज्य में भारतीय नागरिकों के जाने पर अपने साथ पहचान पत्र रखना होता था जिसका कड़ा विरोध हुआ और अब इसे हटा लिया गया है.

चूँकि बीजेपी जब 2014 में अपनी सरकार बनाई थी तो उसने यहाँ से इस अनुच्छेद को हटाने का वायदा किया था किन्तु कर नहीं पायी.

अब पुनः 2019 में भी इस पार्टी ने सरकार बनाया है और अपने घोषणा पत्र में पुनः इसको लागू करने की बात दुहराई है.

वर्तमान में अमित शाह का कश्मीर आना उसी प्रक्रिया का हिस्सा माना जा रहा है और श्यामा प्रसाद के उद्देश्यों को अमली जामा पहनाने का प्रयास दिखता है.

 

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