आज सम्प्रदायिकता का वायरस कोरोना से भी अधिक खतरनाक चुनौती हो चुका है


BY-THE FIRE TEAM


वर्तमान में कोरोना वायरस जिस प्रकार महामारी बनकर दुनिया के सामने आया है उसने ग्रामीण से लेकर शहरी जीवन तक की कार्य संस्कृति को बदल कर रख दिया है.

आपको बता दें कि यद्यपि इस वायरस ने लोगों को अप्रतक्ष्य रूप से नैतिकता का पाठ पढ़ाया है लेकिन अभी भी कई ऐसे नासमझ हैं जो इस वास्तविकता को समझना नहीं चाहते हैं और जब तब इंसान के विरुद्ध जाकर जहर उगल रहे हैं.

कुछ समय पूर्व दिल्ली में जब से तब्लीगी जमात के कुछ लोगों को कोरोना से संक्रमित पाया गया है तभी से सम्पूर्ण मुस्लिम समाज के लोगों को निशाना बनाकर सरकारी, गैर-सरकारी स्तर पर

योजनाबद्ध तरीके से नफरत-अभियान तथा मिडिया ट्रायल करके प्रताड़ित किया जा रहा है. इस प्रकार के दोहरा चरित्र अपनाने से अंतर्राष्ट्रीय हलकों में भी भारत की थू-थू हो रही है.

इसका संज्ञान लेते हुए खुद प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया था कि- “कोरोना वायरस नस्ल, जाति, रंग, भाषा आदि देखकर संक्रमित नहीं करता है, लिहाजा आप शांति और सौहार्द बनाये रखें.”

इसी प्रकार का बयान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी दिया था जिसमें उन्होंने भाजपा नेताओं से अपील किया था कि कोरोना को लेकर साम्प्रदाइक नफरत फ़ैलाने वाले बयान से उनको बचना चाहिए.

ऐसे बहुतेरे उदाहरण हैं जिनकी बीना पर यह कहा जा सकता है कि भाजपा नेताओं को अपनी राजनिती चमकाने का अवसर मिल गया है, तभी तो वे सब्जी और फल बेचने वालों का आधार कार्ड देख रहे हैं.

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तथा हिन्दू तथा मुसलमानों के लिए अलग वार्ड बनाकर इलाज करने की वकालत कर रहे हैं, इसी प्रकार पुलिस भी सड़कों पर चलने वाले लोगों का नाम पूछ-पूछ कर पिटाई कर रही है.

यहाँ तक कि राशन और भोजन भी जरूरतमंदों को उनके समुदाय के अनुसार मुहैया कराया जा रहा है. सोचने का पहलू यह है कि आखिर ये हरकतें करके हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं और देश को किस पहचान के रूप में स्थापित करना चाहते हैं?

 

 

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