BY-SAJJAD HUSSAIN
आज जिस गलवान घाटी को चाईना अपनी जमीन बताकर खून-खराबा कर रहा है, उस गलवान घाटी का नाम एक
मुसलमान “गुलाम रसूल गलवान” के नाम पर रखा गया था.
गुलाम रसूल गलवान अपनी लिखी हुई किताब में बताते हैं कि जब 1892 में चार्ल्स डनमोर वहां आए, तब गलवान उनके साथ सफ़र पर निकले थे. चार्ल्स डनमोर के सातवें थे, डनमोर आयरलैंड में एक जगह का नाम है.
इन्हीं के साथ जब गुलाम रसूल गलवान निकले, तब उनकी उम्र बमुश्किल 14 साल की थी. इस सफ़र के दौरान उनका काफिला एक जगह अटक गया.
वहां सिर्फ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और खड़ी खाइयां थीं (जिसको आज finger one, finger two………….. finger eight आदि कहा जाता है. भारत वाली साइड से फिंगर वन शुरू होती हैं और भारत फिंगर eight का मालिक है.
उनके बीच से नदी बह रही थी, किसी को समझ नहीं आ रहा था कि यहां से कैसे निकला जाए? तब 14 साल के गलवान ने एक आसान रास्ता ढूंढ निकाला और वहां से काफिले को निकाल कर ले गए.
लद्दाखी इतिहासकार अब्दुल गनी शेख के मुताबिक़, गलवान की ये चतुराई देखकर चार्ल्स बहुत मूतासिर (impressed) हुए और उस जगह का नाम गलवान नाला रख दिया. गलवान के नाम पर अब वो जगह गलवान घाटी कहलाती है.
सर्वेन्ट ऑफ़ साहिब्स किताब की खासियत ये है कि ये गुलाम रसूल गलवान की टूटी-फूटी अंग्रेजी में उनके सफ़र नामा को बताती है. गुलाम रसूल गलवान ने अपने 35 साल के यात्राओं को अंग्रेजी, लद्दाखी, उर्दू और तुर्की ज़बान का बोलना सीख लिया था.
बाद में वो लेह में ब्रिटिश कमिश्नर के चीफ असिस्टेंट के ओहदे पर पहुंचे, उन की पैदाइश 1878 में हुई और 1925 में इंतकाल कर गए.
जिस गलवान घाटी के लिये चीन और हिन्दुंस्तान के बीच झगड़ा हो रहा है जिसमें हमारे 20 जवान शहीद हो गए हिन्दुंस्तान कहता है गुलाम रसुल गलवान हिन्दुंस्तानी था इसलिये वो घाटी भी हमारी है. लेकिन चाइना कह रहा है अगर ये जमीन तुम्हारी है तो कागज़ दिखाओ और ये साबित करो कि गुलाम रसुल गलवान हिन्दुंस्तानी है.
जो लोग कुछ दिन पहले 20 करोड़ मुसलमानों से कागज ढुंढने को कह रहे थे, आज वो एक मुसलमान के कागज खुद तलाश कर रहे है.
अल्लाह की लाठी में आवाज़ नहीं होती है और वो तुम्हारी साजिशों को तुम्हारे ही मुँह पर मार देता है. वो हर सय पे कादिर है. अल्लाह से डरो, सिर्फ और सिर्फ वही इस कायनात का बनाने और चलाने वाला है और वो ही जिसे चाहे इस जमीन का कुछ देर के लिए मालिक बना दे.
वो किसी को इज्जत देकर आजमाता है और किसी को पॉवर (सत्ता) देकर आजमाता है और किसी को औलाद और दौलत देकर देखता है. जब इंसान उसकी आजमाइश में फेल हो जाता है
और उसमें गुरूर आ जाता है तब उसको ऐसे जलील करता है कि उसकी समझ में नही आता. अल्लाह की नज़र में सब इंसान बराबर है चाहे वो उसको माने या ना-माने, अल्लाह को और उसकी शान में कोई फर्क नही पड़ता.