रामराज में न्याय पाने के लिए कराहती महिला, जहाँ केवल आदेश दिए जाते हैं, जाँच नहीं होती है


BY-SAEED ALAM


वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में उत्तर प्रदेश राज्य में जो उहा-पोह मचा हुआ है वह वयवस्था के पुरोधाओं के समक्ष कई सवाल खड़े कर रहा है.

जिस कदर बाहुबली नेताओं ने न्याय प्रणाली को अपनी रखैल बना रखा है उससे निश्चित तौर पर आम लोगों का विश्वास डगमगाया है.

आखिर वे कौन सी ताकतें हैं जिनके विरुद्ध कार्यवाही करने को कोई भी प्रशासनिक मशीनरी खुद को तैयार नहीं कर पा रही है. अभी सोनभद्र में जिस प्रकार से एक ही परिवार के

अनेक लोगों की गोली मारकर नृशंस हत्या की गई है उससे स्वतः कानून वयवस्था की दुहाई देने वाले लोगों की पोल खुल जाती है. पुलिस जनता की सुरक्षा करने के लिए बनाई गई है,

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किन्तु सोनभद्र के पीड़ितों ने पुलिस की कार्यप्रणाली की तीखी आलोचना की है. यानि कि अगर पुलिस जिम्मेदारी के साथ अपना कर्तव्य पालन की होती तो शायद मनुष्यता के इतिहास में ऐसा काला सच नहीं लिखा जाता.

एक अन्य घटना जो मन को झकझोर देने वाली है, उन्नाव केस से जुड़ी है जिसमें एक विधायक कुलदीप सेंगर का नाम आ रहा है, इस पर एक महिला के बलात्कार का आरोप है.

आपको बता दें कि जब से इस पीड़ित युवती ने बाहुबली नेता के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया है तब से लेकर आज तक कई निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है.

मसलन स्वयं लड़की के पिता को मार डाला गया, वहीं उसकी दो चाचियों का हाल भी उसके पिता के जैसे हुआ और अब एक्सीडेंट का बहाना बनाकर पूरी साजिश के तहत प्रयास किया गया है.

हालाँकि पीड़िता गंभीर रूप से घायल हुई है तथा उसका इलाज चल रहा है, खुद पीड़िता की माँ ने रेप के आरोपी कुलदीप पर आरोप लगाया है कि उसे हमेशा फोन पर जान से मारने की धमकी दिया करता था.

ट्रक द्वारा कराया गया एक्सीडेंट उसी साजिश का हिस्सा है. दरअसल पीड़िता के चाचा महेश रायबरेली जेल में बंद हैं जिनसे मिलने लिए वह जा रही थी,

तभी गलत दिशा से आता ट्रक उसकी कार को टक्कर मार दिया जिसमें उसकी चाची की मृत्यु हो गई है और अब वह बिलकुल अनाथ हो गई है.

इस घटना से आहत प्रसिद्ध कवि और व्यंगकार कुमार विश्वास ने ट्वीट करके अपना मर्म जाहिर किया है.

लेखक और विद्वान का यह अहसास हमें बताता है कि देश में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है. अगर ऐसा नहीं होता तो मॉब लिंचिंग जैसी घटना नहीं घटित होती और न ही लगभग 62 हस्तियों में से 49 सीने जगत और

विभिन्न क्षेत्रों के विषेशज्ञयों  ने प्रधानमंत्री को दुःखद पत्र नहीं लिखा होता और देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय सरकार को चेतावनी नहीं देता कि ऐसी वारदातों की पुनरावृति को रोकने के लिए कानून बनाये.

सचमुच ये घटनाएं हमें अंदर से धिक्कारती हैं कि सत्ता पाने के लिए अभी और कितना हमारा नैतिक पतन होगा? क्या अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज उठाना पाप है? 

सचमुच, यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि जिस राज्य में दुनिया की सबसे ऊँची राम की प्रतिमा लगाए जाने की योजना पर कार्य हो रहा है और खुद यहाँ का मुख्यमंत्री साधु की परम्परा से आता है,

वह क्यों मूकदर्शक बना बैठा है और कोई ठोस कदम नहीं ले रहा है…?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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