BY-DR. SAEED ALAM
देर से ही सही देश में अन्ना आंदोलन ने अपना असर तो दिखाया. आपको ले चलते हैं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जब प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे अपने सहयोगियों किरण बेदी, अरविन्द केजरीवाल, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण आदि के साथ देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाने तथा
ऐसी अन्य बुराइयाँ जो दीमक की माफ़िक देश को अंदर से खोखला करती जा रही थीं, के विरुद्ध बड़ा आंदोलन छेड़ा जिसे देश के हर कोने से लोगों का भारी समर्थन मिला, जिसकी गवाही आज भी दिल्ली का रामलीला ग्राउंड देता है.
अन्ना के इस आंदोलन का ही परिणाम था कि देश में मौजूद किसी भी राजनीतिक दल पर विश्वास नहीं दिखा ऐसे में ‘आप’ जैसी पार्टी अस्तित्व में आई (26 नवम्बर, 2012) और इसके मुखिया के रूप में अरविन्द केजरीवाल ने नेतृत्व संभाला.
उस मुहीम में सबको कुछ न कुछ फायदा अवश्य मिला केवल अन्ना को छोड़कर. मसलन केजरीवाल लोगों का समर्थन पाकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए, किरण बेदी पुद्दुचेरी की राज्यपाल हो गईं आदि.
2 अक्टूबर, 2012 को अरविंद केजरीवाल ने अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत कर दी. उन्होंने बाकायदा गांधी टोपी, जो अब “अण्णा टोपी” भी कहलाने लगी है, पहनी थी. उन्होंने टोपी पर लिखवाया, “मैं आम आदमी हूं।” अपने भावी राजनीतिक दल का दृष्टिकोण पत्र भी जारी किया.
राजनीतिक दल बनाने की विधिवत घोषणा के साथ उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी जो नेहरू परिवार की उत्तराधिकारी और संप्रग की मुखिया हैं, के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और भूमि-भवन विकासकर्ता कम्पनी डीएलएफ के बीच हुए तथा कथित भ्रष्टाचार का खुलासा किया और बाद में केन्द्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुई खुर्शीद के ट्रस्ट के खिलाफ आन्दोलन भी छेड़ा.
किन्तु जिस उद्देश्य को लेकर यह आंदोलन चलाया गया था उसको अभी तक पूर्णतः प्राप्त नहीं किया सका है. भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की जो बात कही गई थी वह भी अधूरी है. जैसे- मेहुल चौकसे, विजय माल्या, नीरव मोदी द्वारा देश को चुना लगाना, व्यापम घोटाला, राफेल विमान की सौदेबाजी, रक्षा मंत्रालय जैसी संवेदनशील जगह से फाइल चोरी होना आदि
यही वजह है कि अन्ना ने कांग्रेस एवं भाजपा को ‘धन से सत्ता एवं सत्ता से धन’ कमाने वाली पार्टियां करार देते हुए कहा कि देश की जनता जागरूक नहीं है और देश का लोकतंत्र लगातार खतरे में है.
हजारे ने आरोप लगाया कि लोकसभा एवं राज्यसभा में विधेयक बिना चर्चा के पास हो रहे हैं. बिना चर्चा के विधेयक पास होना लोकतंत्र के लिए खतरा है. उन्होंने एक बार फिर किसानों एवं जवानों की लड़ाई के लिए मार्च में दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन शुरू करने की बात कही.
हजारे ने कहा कि चार साल पहले जनता के दबाव में लोकपाल सहित 7 कानून पास हुए. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार एक तरफ तो भ्रष्टाचार खत्म करने का प्रचार करती है. दूसरी तरफ भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों व नेताओं के लिए कानून कमजोर किए जा रहे हैं.
अन्ना ने कहा कि 30 दिनों में काला धन लाने के नाम पर भाजपा ने केन्द्र में सरकार बनाई, लेकिन सरकार नहीं बताती कि कितना कालाधन आया.
बहरहाल, केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत न्यायाधीश पीसी घोष को देश का पहला लोकपाल नियुक्त कर दिया है. अब यह तो यह आने वाला समय ही बताएगा कि घोष अपने दायित्व को कितना निभा पाते हैं तथा जनता की अपेक्षाओं पर कितना खरे उतरते हैं ?