BY–SALMAN ALI
वर्तमान समय में पूंजीवाद के एक नए रूप ने रोजगार रूपी पहलू पर कहीं-ना-कहीं सोचने पर मजबूर तो कर ही दिया है।
प्रत्येक साल ना जाने कितनी रिपोर्ट प्रकाशित होती हैं जो बेरोजगारी पर नए-नए डाटा हमारे सामने लाती हैं।
रोजगार के विषय पर हम एक बार पुनः सोचने पर मजबूर हुए जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि रोजगार की नहीं अपितु योग्य उम्मीदवार की कमी है।
योगी जी ने एक टीवी चैनल को अपने दिए गए साक्षात्कार में कहा कि 137000 शिक्षकों की नियुक्ति की जानी है लेकिन योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पा रहे हैं, जो परीक्षा पास करें और नौकरी करें।
इसके साथ-साथ उन्होंने पुलिस विभाग का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने बताया कि लाखों पद खाली पड़े हैं।
योगी जी की इस बात से हम सहमत भी हो सकते हैं कि शायद योग्य उम्मीदवार ना हों लेकिन कई प्रश्न हैं जो सोचने पर मजबूर तो कर ही देते हैं कि क्या वाकई योग्य उम्मीदवार नहीं हैं या फिर कुछ अलग ही मसला है।
मसला नंबर एक
मसलों में सबसे बड़ा मसला तो यही है कि क्या सरकार अब अपने बचे हुए कार्यकाल के दौरान युवाओं को योग्य बनाएगी और उसके बाद अगले कार्यकाल में नौकरी देगी?
अब यदि ऐसा होगा तो फिर मोदी सरकार पर भी प्रश्नचिन्ह तो लग ही जाता है क्योंकि पिछले 3-4 साल से यह सरकार युवाओं को रोजगार देने के लिए स्किल इंडिया प्रोग्राम चला रही है।
और इसके लिए अरबों रुपया खर्चा भी किया जा चुका है। तो क्या यह रुपया जो कि जनता का था वह डूब गया है क्योंकि इसका नुकसान तो ले-देकर जनता को ही भुगतना पड़ेगा और यदि कहीं इसके लिए विश्व बैंक से लोन लिया गया होगा तब तो यह जनता का पूंजीगत नुकसान हो जाएगा क्योंकि ब्याज तो लंबे समय तक चलता रहेगा।
मसला नंबर दो
दूसरे मसले में वर्तमान सरकार के साथ-साथ पिछली सरकारों पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है। क्योंकि जिस हिसाब से योगी जी ने कहा कि योग्य उम्मीदवार नहीं हैं उससे फिर सैकड़ों विश्वविद्यालयों के चलने का क्या मतलब?
क्या यह सिर्फ डिग्री बांट रहे हैं जोकि अलग-अलग जगहों पर अपनी दुकानें खोले हुए हैं?
एक विश्वविद्यालय का खर्च भी अरबों में होता है और उसका पैसा भी जनता से ही जाता है? तो क्या जनता से लिए गए पैसों से सरकार उच्च गुणवत्ता रूपी शिक्षा प्रदान करने में असमर्थ है?
इसके साथ-साथ यदि सैकड़ों विश्वविद्यालय खुले हुए हैं और उसमें हजारों शिक्षक पढ़ा रहे हैं तो क्या वह भी पढ़ाने के योग्य नहीं हैं?
तो क्या आने वाले समय में इन शिक्षकों को भी हटाया जाएगा। बहर हाल संविदा नामक एक नया युग तो चालू हो ही चुका है जो हटाने-बढ़ाने का काम कर ही रहा है।
अब यदि ऐसा है तो क्या आने वाले समय में योगी सरकार इन विश्वविद्यालयों की स्थिति को सुधारेगी और उसके पश्चात जो नए युवा पढ़कर निकलेंगे उनको रोजगार दिया जाएगा।
अगर ऐसा होगा तो कम से कम इसमें 5 से 7 साल का समय तो लग ही जाएगा क्योंकि बीए, एमए करने में लगभग 5 से 7 साल तो लग ही जाते हैं।
मसला नम्बर तीन
मसला नंबर 3 योग्य उम्मीदवार के साथ-साथ सरकार के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि जिस हिसाब से परीक्षा का पैटर्न बना हुआ है वह तो कहीं योग्य उम्मीदवार का चयन कर ही नहीं पाता।
दरसल वहां गुणा भाग सिखाया जाता है और नौकरी दी जाती है खाद्य विभाग के रूप में।
मसला नंबर चौथा
यह मसला स्वयं योगी सरकार से संबंधित है। क्योंकि योग्य उम्मीदवार को जानने के लिए कम से परीक्षा तो करानी ही पड़ेगी।
दरसल जिस हिसाब से पिछले एक साल में उत्तर प्रदेश सरकार ने नौकरी से संबंधित परीक्षाएं आयोजित की हैं और जिस प्रकार से यह परीक्षाएं पूर्णतया फेल रही हैं।
उसको देखते हुए तो योग्य उम्मीदवार का चयन कर पाना मुश्किल ही नजर आता है। क्योंकि शायद आपको भी याद नहीं होगा कि पिछले एक साल में एक भी परीक्षा उत्तर प्रदेश में पूरी हो पाई हो।
मसला नंबर पांच
इस मसले के अंतर्गत ना केवल सरकार बल्कि जनता को भी लाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
क्योंकि यदि सरकार योग्य उम्मीदवार की बात कह सकती है तो क्या जनता को सरकार से उन मंत्रियों के बारे में नहीं पूंछना चाहिए जो कि शायद कक्षा पांच भी पास नहीं है।
मैं अपने लेख में उन मंत्रियों के पढ़ाई से संबंधित किसी मसले का जिक्र तो नहीं करना चाहता परंतु उम्मीद है कि आप यह जानने का प्रयास जरूर करेंगे कि हमारे प्रतिनिधि जोकि हमारे भविष्य को बनाने की बात कहते हैं वह कितना पढ़े हैं।