BY-THE FIRE TEAM
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण का मुद्दा क्यों गरमाया हुआ है ? क्या बीजेपी इन चुनावों में हिंदुत्व के सहारे है, यह विश्लेषण का विषय हो सकता है.
किन्तु पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही है. दरअसल अब इस अयोध्या में राम मंदिर के सहारे शिवसेना अब महाराष्ट्र के बाहर निकलने की तैयारी कर रही है.
Uddhavji Thackeray's presence in Ayodhya has turned the city saffron. The devotees excitement for Ram Mandir have reached the peak. Happiness and excitement is in the air of Ayodhya.#RamMandir #ThackerayInAyodhya #UddhavThackeray #ShivSena pic.twitter.com/tXMWSNHWAF
— Amit Bhadricha – अमित भाद्रीचा (@AmitBhadricha) November 24, 2018
पार्टी को इस बात का पूरा अंदाजा हो गया है कि महाराष्ट्र में अब बीजेपी उससे नंबर-2 पार्टी बनकर नहीं रह सकती है. इसलिए अब अस्तित्व बचाए रखने के लिए शिवसेना ने अयोध्या का मुद्दा थामा है.
लेकिन इस बात की भनक आरएसएस और बीजेपी को पहले ही लग चुकी थी जब विजयादशमी के मौके पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे 25 नवंबर को अयोध्या जाने का ऐलान किया.
गौरतलब है कि उससे पहले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मौके की नजाकत को भाँपकर मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग कर दी.
अतः मोहन भागवत के इस बयान ने उद्धव ठाकरे की रणनीति पर पानी फेर दिया और इसके बाद से उद्धव ठाकरे के निशाने पर संघ प्रमुख भी आ गए.
इसके अलावा आरएसएस से जुड़े संगठन विश्व हिंदू परिषद ने भी 25 नवंबर को धर्म संसद का ऐलान कर दिया और पूरे देश से लाखों कार्यकर्ताओं को अयोध्या पहुंचने का ऐलान कर दिया.
https://twitter.com/swaamishreeh108/status/1065547281766785024
जितनी तेजी से उद्धव ठाकरे 25 नवंबर को अयोध्या आने के पहले बयान और कार्यक्रम कर रहे थे उसी तरह वीएचपी भी उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों में सक्रिय हो चुकी थी.
धर्मसंसद को देखते हुए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का एक दिन पहले ही यानी 24 नवंबर को अयोध्या पहुंचने का कार्यक्रम है. वो अयोध्या में रैली को संबोधित कर साधु-संतों के साथ बैठक भी करेंगे.
वहीं उत्तर प्रदेश में शिवसेना का कॉडर इतना मजबूत नहीं है इसलिए ठाकरे के साथ महाराष्ट्र से शिवसैनिक आ रहे हैं.
इसके अलावा इस पूरी कवायद के पीछे सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई भी हो सकती है ताकि जनवरी में जब कोर्ट इसकी तारीख तय करने के लिए बैठे तो उसको इस मुद्दे की अहमियत के बारे में भी बताया जा सके. फिलहाल 1992 के बाद अयोध्या एक बार फिर किले में तब्दील है.