फिराक गोरखपुरी उर्दू के नामचीन शायरों में गिना जाने वाला नाम है .इनका जन्म 28 अगस्त 1896 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के एक पढे-लिखे परिवार में हुआ था. इनका मूल नाम रघुपति सहाय था .बचपन से ही इनमें उर्दू के प्रति गहरा लगाव रहा. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इन्होंने अंग्रेजी साहित्य के लेक्चरर के पद पर कार्य किया .
यह उर्दू के प्रति इनका जज्बा ही था कि अंग्रेजी का अध्यापक होने के बावजूद गुले नग़मा जैसी शायरी की किताब लिखा जिसके लिए इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार और साहित्य अकेडमी पुरस्कार से भी नवाजा गया .
फिराक ने लगभग 40,000 शायरी लिखी जो पाठकों के बीच आज भी लोकप्रिय हैं .इनकी उपलब्धियों के कारण 1968 में इन्हें पद्म भूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया . इनकी उर्दू की प्रसिद्ध शायरियां निम्नलिखित हैं-
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने ‘फ़िराक़’ को देखा है
उर्दू के अलावा अंग्रेजी और फारसी भाषाओं पर जिस कदर इनकी पकड़ थी उसी के परिणाम स्वरुप उन्होंने गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूत किया तथा अनेक विषयों को अपनी रचनाओं का आधार बनाकर एक नई ऊंचाई प्रदान की .दैनिक जीवन के कड़वे सच और आने वाले कल के प्रति उम्मीद दोनों को भारतीय संस्कृति और लोक भाषा के प्रतीकों से जोड़कर फिराक ने अपने शायरी का अनूठा महल खड़ा किया .
भारतीय संस्कृति की गहरी समझ होने के कारण उनकी शायरी में भारत की मूल पहचान रच बस गई है .वह धर्म निरपेक्षता के लिए लगातार आवाज उठाते रहे और इसे पुख्ता करने का हर संभव प्रयास किया .
वर्तमान समय में जब सांप्रदायिक ताकतें अप्रत्यक्ष रुप से उठती दिख रही हैं जैसे मॉब लिंचिंग की घटनाएं , दलितों पर अत्याचार, महिलाओं पर जुल्म ,शोषण ,बलात्कार आदि की घटनाएँ अंबेडकर जैसे महान व्यक्ति की मूर्ति को तोड़ने की घटना, मुसलमानों पर तीखा व्यंग करना आदि समस्याएं समाज में पनप रही हों तो फिराक की कविताएं और शायरिया स्वतः प्रसांगिक हो उठती हैं.
जिस तरीके से शासन-प्रशासन में बैठे लोगों तथा खुद समाज के पुरोधा बने तबकों पर अनेक प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं तो बरबस ही फिराक की बातों को स्थापित करने की जरूरत आन पड़ती है ताकि इस अखंड भारत जो गंगा जमुना तहजीब से पुष्ट हुई है, को बेहतर बनाने तथा खंडित होने से बचाना अनिवार्य हो जाता है.
By— thefire team