विकासदुबे के एनकाउंटर पर असल विधवा विलाप तो अब होगा…

BY-KAILASH

न्यायपालिका की दुहाई देने वाले, मोमबत्ती गैंग, Human Rights Activists, वगैरह-वगैरह सब चूड़ियाँ तोड़ेंगी और फूट-फूट कर रोयेंगी.

एक आम नागरिक जब अपने समाज में होने वाले जघन्य अपराध जैसे रेप के बाद मर्डर, कानपुर में पुलिस वालों की हत्या, इत्यादि जैसे घटनाओं को देखता या सुनता है तो हर आम नागरिक अपराधियों को मारने की बात करता है.

इसमें कोई संदेह नहीं कि न्यायपालिका के तहत अपराधियों को सज़ा मिलना चाहिए पर सवाल यह है कि क्या हमारी न्यायपालिका का सिस्टम इतना बढ़िया है कि हम दुर्दांत अपराधियों को सज़ा मिलते देख पाते हैं?

कितने सालों तक खून के आँसू रोने पड़े थे निर्भया की माँ को? कितने साल हो गए 1984 के दंगे?

अंग्रेज़ी में एक कहावत है “JUSTICE LATE is JUSTICE DENIED”

यह कहावत हमारे देश में 100% लागू होता है, जब मृतकों के परिवार के आँसू सूख जाते हैं, अपराधियों को सज़ा दिलाने के चक्कर में मृतकों के परिवार वालों की हालत मरने जैसी हो जाती है तब जाकर कहीं अपराधियों को सज़ा सुनाई जाती है.

सज़ा सुनने के बाद उसे जेल में कैसी सज़ा दी जाती है ये भी जग – जाहिर है।

हमारे यहाँ विकास दुबे जैसे बाहुबली कुख्यात अपराधी जेल में बैठकर भी अपना साम्राज्य चलाते हैं।
कितनी पीड़ा होती होगी उन परिवारों पर जिनका विकास दुबे जैसे हत्यारे गुनहगार होते हैं।

थू है ऐसी न्याय व्यवस्था पर। घिन्न आती है ऐसे न्याय व्यवस्था पर…सब चिल्लाते हैं सऊदी जैसा कानून लाओ, बाबाजी का कानून बहुत ही लूला-लंगड़ा-अपाहिज़ है.

अब जब सऊदी जैसा थोड़ा सा ट्रेलर क्या दिखा दिया UP पुलिस ने सब विधवा विलाप करेंगे और सरकार इस विधवा विलाप के लिए भी तैयार रहे.

HUMAN RIGHTS, LEFTIST सब अपना-अपना script लिख रहे होंगे. उम्मीद है जिस तरह योगी जी ने सभी मण्डलों के टॉप अपराधियों की लिस्ट जारी की है उन सब के साथ भी विकास दुबे जैसा ही हस्र हो अपराधियों की समाज में कोई जगह नहीं है.

नियम-कायदे-कानून ये सब जनता की भलाई के लिए हैं, हत्यारों, बलात्कारियों, आतंकियों के लिए नहीं होने चाहिए
HUMAN RIGHTS भी humans के लिए होने चाहिए, न कि दानवों के लिए

(यह लेखक के निजी विचार हैं Agazbharat News का इससे कोई संबंध नहीं है)

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