क्या योगी सरकार अपराधियों की पहचान जातिगत प्रतीकों के आधार पर कर रही है?

यूपी सरकार ने 50 के करीब अपराधियों की लिस्ट बनाई है जिसमे मुख्तार अंसारी का नाम पहले नंबर और अतीक अहमद को 4 पर रखा है. हालांकि योगी सरकार ने डीएसपी ज़ियाउल हक़ की हत्या के साथ दर्जनों मुक़दमे

झेल रहे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया का नाम सूबे के अपराधियों की लिस्ट में नही रखा है. जबकि बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की गोली मारकर हत्या करने वाले योगेश राज तक का नाम इस लिस्ट में मौज़ूद नही.

आश्चर्य तो तब होता है जब मुज़फ्फरनगर कचहरी में जेल से तारीख़ पर आये विक्की त्यागी की जज के सामने अदालत में ही हत्या कर पिस्टल जज के सामने रखने वाले सागर मलिक का भी नाम इस लिस्ट में नही है.

बलिया के कौशल चौबे पर तो 2 लाख का इनाम भी रखा हुआ है, उसने पीडब्ल्यूडी परिसर में घुसकर फिल्मी स्टाइल में 4 हत्या ही तो की थी, शायद ये 4 मर्डर सरकार को कम लगे.

इसलिए इसे अपराधियो की फेहरिस्त में नही रखा गया है और अपराध की दुनिया में (उत्तर प्रदेश) गुड्डू पंडित को कौन नही जानता. लेकिन इस पर तो मानो सरकार ने रहमत ही बरसा दी है. क्योंकि जब अपराधियो का ज़िक़्र चले और गुड्डू पंडित का नाम ना आये ऐसा हो नही सकता है.

लेकिन सरकार ने इन सभी नामों को अपराधियों की लिस्ट में शामिल करने से पूरा परहेज़ किया है यानी ना किसी का रिकॉर्ड देखा ना उसका चलन देखा. कुछ नाम सही रखे है बाकी कुछ नामों को रखने के लिए मनमानी साफ़-साफ़ झलक रही है.

जब अपराधी जेल से बाहर हो समझो सत्ता उन्हें दूध पिला सांप से नाग बना रही है और हद तो तब हो गई जब लिस्ट में विकास दुबे नामक आतंकी का भी नाम शामिल नही किया गया है.

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