BY– सुशील भीमटा
आधुनिकता के दौर में हम हर पल को आधुनिक बनाना चाहते हैं। फ़िर बात चाहे रहन-सहन की हो या खान-पान की। और इसी के चलते बदलते वक़्त में पिछड़ते अन्नदाता यानी किसान भाई भी जैविक खेती को छोड़ कर आधुनिक खेती की ओर कदम बढ़ाने लगे और बुवाई से लेकर बेचने तक के सफ़र को देख कर आज हम यह कह सकते हैं कि खेती लगभग पूरी तरह आधुनिक हो गयी है।
मगर इस दौड़ में जैविक खेती को अपना कर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का ख़िताब हासिल किया है भारत देश के एक किसान भाई जगदीश पारीक ने।
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले जगदीश पारीक का जन्म 29 फरवरी 1948 को अजीतगढ़ में हुआ। अजीतगढ़ सीकर राजस्थान का वह गांव है, जहाँ पानी की कमी यहाँ के किसानों को बेहद मायूस करती है। यहाँ के ज़्यादातर परिवार खेती पर ही आश्रित हैं। इन्हीं में से एक हैं 70 वर्षीय जगदीश पारीक जो सुविधाओं का अभाव, मदद की उम्मीद के साथ देश को पहले पायदान पर लाने की ज़िद को पूरा करने की कोशिश में हैं।
पूर्व राष्ट्रपति व वैज्ञानिक स्व. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब को 12 किलो का गोभी भेंट किया था। अभी हाल ही में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा देवी जी को 25.15 किलो का गोभी भेंट किया था। वह जिससे मिलते हैं सभी को गोभी भेंट करते हैं। अभी तक छः राष्ट्रपतियों से मिल चुके और देश के तमाम अधिकारी से लेकर मंत्री स्तर के सम्मान व राष्ट्रपति से लेकर किसान वैज्ञानिक तक का सम्मान प्राप्त कर चुके जगदीश पारीक 2001 में अपनी जैविक कृषि से उगाई 11 किलो की गोभी के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज़ करवा चुके हैं।
सन् 1990 से वह देश के तमाम शीर्ष आईआईटी इंस्टीट्यूट व कृषि इंस्टीट्यूट में जाकर जैविक कृषि को करने की विधि बताते हैं। आज इंस्टीट्यूट्स को लेक्चर के लिए उनसे अपॉइंटमेंट लेना पड़ता है।
जगदीश पारीक बताते हैं कि,”पारिवारिक स्थिति के कारण मैं बचपन से ही किसान रहा। सुबह जल्दी उठ कर सब्जी बेचता फ़िर 10 बजे स्कूल जाता और 5 बजे स्कूल से वापस आकर अगली सुबह के लिए सब्जियों को तैयार करता था।
सन् 1957 से लेकर 1970 तक मामा जी से खेती सीखी थी। उसके बाद गोभी बोना शुरू किया। साथ ही कई प्रकार की सब्जी और फ़ल की पैदावार शुरू की। मुझे एक बार ख़्याल आया कि सभी वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हैं, मैं भी बनाऊँगा। फ़िर मैंने कद्दू, तोरई, घीया, गोभी जैसी कई सब्जियों की अच्छी पैदावार पर काम करना शुरू कर दिया।
मग़र सन् 1995 में एक मित्र की सलाह पर सिर्फ़ गोभी पर काम करना शुरू किया। सन् 2001 में 11 किलो की गोभी के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज़ हुआ। सन् 2012 में कृषि मंत्री शरद कुमार जी से “किसान वैज्ञानिक” की उपाधि प्राप्त की। अब अमेरिका के 27 किलो गोभी का रिकॉर्ड तोड़ना चाहता हूँ।”
जगदीश पारीक ने अपना ख़ुद का बीज भी बनाया है जिसे उन्होंने “अजीतगढ़ सलेक्शन” नाम दिया। इससे नई किस्म की गोभी को उगाया जाता है। कीट प्रतिरोधक क्षमता रखने वाले बीज की ख़ास बात यह है कि ग्रीष्म ऋतु (मुख्य माह जून से अक्टूबर तक) में भी आप इस बीज को बो सकते हैं।
गोभी की इस किस्म के लिए सन् 2001 में ग्रासरूट्स इनोवेशन अवॉर्ड से सम्मानित होने के बाद इनके बीज को आईपीआर (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) का भी धारक बना दिया है। जगदीश अब अपने बीज को पेटेंट करवाना चाहते हैं। इस बीज की जयपुर कृषि अनुसंधान केन्द्र ने जांचकर इसे आठ गुना अन्य किस्मों से ताकतवर बताया। वह अपने इस बीज को बेचते भी हैं। पिछले साल देश के कई राज्यों ने उनसे तकरीबन 1 कुंटल बीज खरीदे थे।
इसी के साथ जगदीश अपनी खाद भी ख़ुद तैयार करते हैं। गाय-भैंस के गोबर, निम व आंकड़े के पत्ते जैसी चीजों का कम्पोस्ट बना कर वह अपनी खाद तैयार करते हैं।
पानी की समस्या पर जगदीश का कहना है कि, “मैं अपने खेत के पास से गुज़रने वाले बारिश के पानी को मेड़ की सहायता से कुएँ में इकट्ठा कर लेता हूँ, और उसे रिचार्ज करके खेती के इस्तेमाल में लेता हूँ।”
2 हेक्टेयर में नींबू, बेल, गोभी, अनार, जोधपुरी बेर, देसी फ़ल-सब्जियों की पैदावार करने वाले जगदीश पारीक का लक्ष्य अब गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज़ करवा कर देश का नाम पहले नम्बर पर लेकर आने का है। इस कड़ी में वह सिर्फ़ दो किलो वज़न से पीछे हैं। अभी रिकॉर्ड 27.5 किलो का है, और वह 25.5 किलो तक का गोभी उगाने में क़ामयाब हो गए हैं।
उनका कहना है कि,”अभी तक सम्मान के अलावा सरकार ने कोई मदद नहीं की है। अगर सरकार मदद करे तो मैं इस रिकॉर्ड को एक दो साल में ही पूरा कर लूंगा। क्योंकि मैं इस किस्म की गोभी साल में तीन बार उगा सकता हूँ।”
वह कहते हैं कि,”मैं जब तक गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का ख़िताब नहीं ले लेता, तब तक ये तमाम सम्मान मेरे लिए फीके हैं”
इसी के साथ जगदीश पारीक देश के किसान भाइयों को भी कैमिकल युक्त आधुनिक खेती की जगह जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनका मानना है कि आधुनिक खेती ज़हरीले रसायन युक्त चीजों से की जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। जैविक खेती हमारा पारंपरिक खेती का तरीका है, जो पूर्ण रूप से प्राकृतिक है। हमें इसे अपनाना चाहिए। अपनी बात से वह अब तक कई किसानों को प्रेरित कर चुके हैं।
तो भई ये है जगदीश पारीक की कहानी। जिनकी मेहनत, लग्न और जुनून ने हमारे भारत देश का मस्तक विश्व स्तर पर ऊँचा किया है। उनकी यह कहानी हमें सीख देती है कि हमें अपने कर्म को पूरी तन्मयता से करना चाहिए, फ़ल एक दिन ज़रूर मिलता है।