प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों की आवाज थे कुलदीप नैयर

95 वर्ष के कुलदीप नैयर का बीती रात नई दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया। वरिष्ठ पत्रकार के बड़े बेटे सुधीर नैयर ने बताया कि उनके पिता की मौत कल आधी रात के बाद 12 बजकर 30 मिनट पर एस्कॉर्ट अस्पताल में हुई। सुधीर ने बताया कि उनके पिता निमोनिया से पीड़ित थे और 5 दिन पहले उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

वरिष्ठ पत्रकार के परिवार में बेटे सुधीर नैयर के अलावा उनकी पत्नी व एक बेटा और है।

प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा संघर्षरत रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार की मौत पर मीडिया संस्थान से लेकर राजनीतिक दलों ने भी गहरा शोक जताया है।

प्रधानमंत्री मोदी से लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनके निधन पर शोक जताया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कुलदीप नैयर को बुद्धिजीवी बताते हुए कहा कि वरिष्ठ पत्रकार को उनके निर्भीक विचारों के लिए हमेशा याद किया जाएगा।

मोदी ने ट्विटर पर कहा “कुलदीप नैयर हमारे समय के बुद्धिजीवी थे। अपने विचारों में स्पष्ट और निर्भीक। बेहतर भारत बनाने के लिए आपातकाल, जन सेवा और प्रतिबद्धता के खिलाफ उनका कड़ा रुख हमेशा याद किया जाएगा’।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने पत्रकार के परिवार, उनके प्रशंसक और सहकर्मियों के प्रति संवेदना प्रकट की है। ममता ने ट्वीट किया; ” निडर पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर की मौत से दुखी हूं, मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, प्रशंसक और सहकर्मियों के साथ हैं।”

कुलदीप नैयर का जन्म 1923 में उसी सियालकोट(पाकिस्तान) में हुआ था जहां के फैज़ अहमद फैज़ थे। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय नैयर अमृतसर आ गए और फिर सदा के लिए दिल्ली में बस गए। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत उर्दू के एक अखबार अंजाम(अंत) से की थी।

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा है कि महान शायर हसरत मोहानी की सलाह पर नैयर ने उर्दू को छोड़कर अंग्रेजी का दामन थाम लिया था। अंग्रेजी पत्रकारिता की ओर मुड़ने के पश्चात वह पढ़ने के लिए अमेरिका गए और फीस जोड़ने के लिए उन्होंने वहां घास भी काटी तथा भोजन परोसने का काम भी किया।

थानवी आगे लिखते हुए बताते हैं कि पत्रकारिता की डिग्री लेकर लौटने के पश्चात नैयर ने पीआईबी में काम किया, उसके बाद गृहमंत्री गोविंदवल्लभ पंत और फिर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के सूचना अधिकारी भी हुए। आगे चलकर यूएनआई, स्टेट्समैन, इंडियन एक्सप्रेस में अपने काम से वह लोहा मनवाते चले गए। उन्होंने बताया कि नैयर का इंडियन एक्सप्रेस में एक स्तम्भ छपता था,’बिटवीन द लाइंस’ जो उस समय सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला स्तम्भ था।

BJP National President Shri Amit Shah met veteran journalist Shri Kuldip Nayar ji as a part of Sampark for Samarthan campaign at his residence in New Delhi_2
PHOTO-http://www.bjp.org

थानवी के अनुसार नैयर साहब के अनेक राजनेताओं और सरकार के बड़े बाबुओं से निजी संबंध रहे। यही संबंध उनकी स्कूप खबरों के प्रमाणिक स्त्रोत थे। बी पी सिंह ने उन्हें ब्रिटेन में भारत का राजदूत नियुक्त किया था, और आगे चलकर इंदरकुमार गुजराल ने राज्यसभा भी भेजा।

थानवी ने अपने लेख में आगे लिखते हुए कहा; “भारत-पाक दोस्ती के नैयर साहब अलमबरदार थे। उन्होंने ही सरहद पर मोमबत्तियों की रोशनी में भाईचारे के पैगाम की पहल की। इस दफा वे अटारी-वाघा नहीं जा सके। पर उन्होंने अमृतसर के लिए गांधी शांति प्रतिष्ठान से चली बस को रवाना किया।”

50 से भी ज्यादा अखबारों में संपादकीय लिखने वाले नैयर ने ‘बियॉन्ड द लाइंस: एन ऑटोबायोग्राफी’ और ‘बिटवीन द लाइंस’ जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं।

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